हैदराबाद नगर निगम चुनाव…भाजपा की दक्षिण भारत में जोरदार इंट्री

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राकेश कुमार अग्रवाल
ग्रेटर हैदराबाद म्यूनिसपल काॅरपोरेशन ( जीएचएमसी ) में भाजपा का हाई वोल्टेज चुनाव प्रचार फुस्स पटाखा साबित नहीं हुआ बल्कि चुनाव परिणामों ने भाजपा को दक्षिण भारत में नई जमीन तैयार करने का मौका दे दिया है . चुनाव परिणाम भाजपा के लिए बडी सुखद खबर लेकर आए . पार्टी ने छलांग लगाते हुए 44 सीटों का न केवल इजाफा किया बल्कि एआईएमआईएम को तीसरे स्थान पर धकेलते हुए निगम में दूसरे स्थान पर काबिज हो गई .
4 दिसम्बर को देर रात सम्पन्न हुई मतगणना में सत्तारूढ तेलंगाना राष्ट्र समिति की भाजपा ने चूलें खिसका दीं . 99 सीटों के साथ दो तिहाई बहुमत से निगम पर काबिज टीआरएस के लिए यह चुनाव दु:स्वप्न की तरह साबित हुआ . सत्तारूढ टीआरएस को 44 सीटों का घाटा हुआ . टीआरएस ने 44 सीटें खोईं तो भाजपा को सीधा 44 सीटों का फायदा हुआ . हालांकि निगम में सबसे बडे दल के रूप में अभी भी तेलंगाना राष्ट्र समिति ( टीआरएस ) बनी हुई है . टीआरएस 99 सीटों से 55 सीटों पर आ गई है . लेकिन टीआरएस अकेले दम पर इतनी सीटें नहीं जीत सकी कि जिससे वह अपना मेयर और डिप्टी मेयर बनवा सके .
असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी ऑल इंडिया मजलिस ए इत्तेहादुल मुसलमीन इन चुनावों में अपना पिछला प्रदर्शन दोहराने में कामयाब रही . पुराना हैदराबाद एआईएमआईएम का अपना गढ माना जाता है जिसके दम पर उसने अपनी 44 सीटें बरकरार रखीं लेकिन भाजपा को दूसरे स्थान पर काबिज होने से वह नहीं रोक सकी . जहां तक कांग्रेस का सवाल है . पार्टी ने यथावत दो सीटें हासिल कीं लेकिन राष्ट्रीय पार्टी के लिए यह प्रदर्शन कोई उत्साह न जगा सका . पार्टी को यदि फिर से रिवाइवल करना है तो उसे यह अच्छी तरह से समझना होगा कि राजनीति में वन डे वंडर के दिन लद गए हैं . कोई भी चुनाव हो उसके लिए न केवल सटीक रणनीति बनाई जाए बल्कि उस पर सालों पहले अमल करना जरूरी है . सबसे बडी बात संगठन का एकजुट होना भी जरूरी है . इसका संदेश जब तक धरातल पर नहीं जाएगा . कार्यकर्ता मोटीवेट नहीं होगा तो वो वोटर को कैसे पार्टी के पक्ष में मतदान के लिए मना पाएगा .
पहली बार किसी म्यूनिसिपल काॅरपोरेशन के चुनावों की धमक राष्ट्रीय स्तर पर महसूस की गई जीएचएमसी चुनावों में भाजपा ने पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे पी नड्डा , गृह मंत्री अमित शाह , उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ , महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री देवेन्द्र फडनवीस , केन्द्रीय मंत्री प्रकाश जावडेकर , युवा मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष तेजस्वी सूर्या ,पार्टी के दिग्गज रणनीतिकार भूपेन्द्र यादव व स्मृति ईरानी जैसे नेताओं को चुनाव प्रचार में उतार कर चुनावों को सुर्खियों में ला दिया था . पार्टी ने ढेर सारे वादे भी किए. पार्टी की रणनीति सफल भी रही .
निजामों के इस शहर के चुनाव परिणामों की धमक पूरे तेलंगाना राज्य में महसूस की जाएगी .
ठीक दो साल पहले 2018 में तेलंगाना में हुए विधानसभा चुनावों में टीआरएस प्रचंड बहुमत से सत्ता पर काबिज हुआ था . के . चंद्रशेखर राव के नेतृत्व में तेलंगाना राष्ट्र समिति ने 119 विधानसभा सीटों में से दो तिहाई से अधिक 88 सीटें जीतकर फतेह हासिल की थी . कांग्रेस 28.4 प्रतिशत वोटों के साथ दूसरे स्थान पर रही थी . कांग्रेस को 21 सीटों से संतोष करना पडा था . एआईएमआईएम को सात सीटें हासिल हुई थीं जबकि भाजपा को महज 7.5 फीसदी मत मिले थे . गनीमत यह थी कि भाजपा अपना खाता खोलने में सफल रही थी . पार्टी को महज एक सीट हासिल हुई थी .
दो साल बाद हैदराबाद नगर निगम चुनाव परिणामों से भाजपा ने राज्य में यह संदेश दे दिया है कि उसको कमजोर आँकना भारी भूल होगी . अभी तीन साल का पार्टी के पास पूरे राज्य में अपने पैर जमाने के लिए पर्याप्त वक्त है . तेलंगाना राष्ट्र समिति के मुखिया व राज्य के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव के लिए यह चुनाव परिणाम आंखें खोल देने वाले हैं . भाजपा ने नगर निगम चुनावों में कांग्रेस को भी संदेश दे दिया है कि यदि पार्टी अभी भी न चेती तो 2023 में भाजपा व टीआरएस में आमने – सामने का मुकाबला होगा .
तेलंगाना में एआईएमआईएम के पास सात सीटें हैं जो उसने हैदराबाद शहर से जीती थीं . एआईएमआईएम को राज्य में प्रासंगिक बना रहना है तो उसे परम्परागत मुसलमान वोटों के साथ अन्य तबकों को भी अपने साथ जोडना होगा . और हैदराबाद के बाहर भी अपनी जमीन तलाश करनी होगी . हाल ही में हुए विधानसभा उपचुनाव में दुब्बक सीट को भाजपा ने टीआरएस से हथियाकर यह संदेश तो दे ही दिया था कि वह तेलंगाना में धीरे धीरे ही सही मजबूती से अपने कदम जमा रही है . वैसे भी हैदराबाद महानगर पांच लोकसभा व 24 विधानसभा सीटों का प्रतिनिधित्व करता है .
भाजपा का जहां तक सवाल है वह हमेशा चुनावी मोड में रहती है . पार्टी अध्यक्ष जे पी नड्डा 120 दिन के राष्ट्रीय दौरे पर निकल चुके हैं . वे आगामी चार माह तक उन सभी राज्यों के दौरे करेंगे जहां आगामी वर्ष में चुनाव होना हैं .
अगले वर्ष बंगाल और तमिलनाडु में चुनाव होना है . बंगाल में भाजपा ने ऐडी चोटी का जोर लगा रखा है . हालांकि तमिलनाडु में भाजपा बेहतर स्तर पर नहीं है . नगर निकाय चुनावों को भी भाजपा ने किस शिद्दत से लडा है . उसने दो सीट व दो कमरे वाली पार्टी जो केवल उत्तर भारत तक सीमित थी के लिए अब अन्य राज्यों में जिस तरह से स्वीकार्यता बढ रही है उससे कांग्रेस को संभलने की जरूरत है . क्योंकि सभी राज्यों में क्षेत्रीय दल अपना वजूद बनाए हुए हैं . जबकि भाजपा की बढत कांग्रेस की कीमत पर हो रही है . यह कांग्रेस के लिए खतरे की घंटी से कम नहीं है .

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