आज से ठीक ११५ वर्ष पहले २९ अगस्त १९०५ में इलाहाबाद के राजपूत परिवार में ध्यानसिंह की जन्म हुआ था। फौजी पिता सोमेश्वर सिंह व माता श्यामा देवी की सात संतानों में ध्यानसिंह का दूसरा नंबर था। बडे भाई मूल सिंह व छोटे भाई रूप सिंह के अलावा रामकली व सुरजा देवी को मिलाकर ध्यानसिंह की ४ बहनें थीं। सोमेश्वर सिंह का स्थानांतरण इलाहाबाद से झांसी हुआ तो वे बच्चों को लेकर झांसी आ गए। सोमेश्वर सिंह को फौज में होने का फायदा यह मिला कि उन्होंने अपने मंझले बेटे ध्यानसिंह को भी सेना में भरती करवा दिया। उस समय ध्यान सिंह महज १६ वर्ष के थे। उन्हें फर्स्ट ब्राहमण रेजीमेंट में सिपाही पद पर नियुक्ति मिल गई। ध्यानसिंह कैसे बने ध्यानचंद इसकी कहानी आप मेरे यू ट्यूब चैनल # कह के रहेंगे पर देख और जान सकते हैं।
१९२८ के ओलंपिक खेलों में उनके द्वारा दागे गए १४ गोलों से उन्हें हाकी के जादूगर का खिताब मिला।
देश में ही नहीं दुनिया भर में ध्यानचंद व रूपसिंह के खेल को सराहा गया। लंदन ओलंपिक खेलों में ३ भारतीय खिलाडियों को मानद सम्मान से नवाजा गया था। ओलंपिक खेल गांव को जोडने वाले ३ मेट्रो स्टेशनों का नाम ३ भारतीय हाॅकी खिलाडियों के नाम पर रखा गया था। ये तीन खिलाडी थे मेजर ध्यानचंद, उनके छोटे भाई रूप सिंह व लेसली क्लाउडियस।
कैप्टन रूपसिंह के नाम से जर्मनी के शहर म्यूनिख में आज भी एक स्ट्रीट है।
मेजर को भारत रत्न से नवाजने का निर्णय अगर सरकार लेती है तो सही मायने में नेशनल गेम हाॅकी कहलाने पर गर्व होगा।
# भारत रत्न फाॅर मेजर ध्यानचंद !