हम विश्व गुरु हैं या फिर दूसरे देशों के नकलची

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यह कहते हुए हम फूले नहीं समाते कि दुनिया को ज्ञान हमने दिया . शून्य की खोज भारत ने की . नालंदा और तक्षशिला जैसे शिक्षा केन्द्र हमारे यहां थे . सही मायनों में हम विश्व गुरु हैं .

लेकिन क्या हमारा वर्तमान ऐसा ही है ? हमारी सरकारें आज भी पश्चिमी देशों या दुनिया के दूसरे देशों में लिए जा रहे फैसलों को देर सवेर लागू भर करती हैं . कोविड १९ मतलब कोरोना महामारी के मामले में ही ले लीजिए चीन ने ७६ दिन बाद लाॅकडाउन खोला तो कमोवेश इतने ही दिनों बाद भारत ने लाॅकडाउन खोला . कोविड पेशेंट को क्वारंटीन कराना, आइसोलेट करना , कंटैनमेंट जोन बनाना जैसे कदम सभी पश्चिमी देशों में अपनाए गए फार्मूलों पर आधारित थे जिन्हें अपने देश पर लागू किया गया .
अब जबकि यूरोप , अमेरिका , चीन और ईरान में शिक्षण संस्थाओं को खोल दिया गया है . तो हमारे यहां भी २१ सितम्बर से हाईस्कूल इंटर के छात्रों को स्कूल विजिट करने की इजाजत दे दी गई है . जिससे संभावना जताई जा रही है कि अक्टूबर माह से अपने देश में भी सेकेंडरी , सीनियर सेकेंडरी स्कूल , कालेज व यूनिवर्सिटी खोल दी जायेंगी .

एक तरफ जब देश में कोरोना का आगाज भी न हो पाया था तब से शिक्षण संस्थाओं को बंद कर दिया गया था . अब जबकि कोरोना पाजिटिव पेशेंट के नित नए रिकार्ड बन रहे हैं तब पश्चिमी या दूसरे देशों द्वारा लिए गए फैसलों की नकल पर उन्हें अपने देश में एक माह बाद उन्हीं फार्मूलों या नियम शर्तों पर लागू करना क्या यह साबित नहीं करता कि हर फैसलों में हम पश्चिमी देशों या दुनिया के दूसरे देशों के पिछलग्गू हो गए हैं . भले हम अपने मुंह मियाँ मिट्ठू बनते रहें .
हमारा देश आबादी , खानपान , रहन सहन , रीति रिवाज , जलवायु , सभी मामलों में दूसरों से अलग है तो फिर हम अपने देश , देशवासियों और अपने देश की परिस्थितियों के आधार पर अपने फैसले क्यों नहीं लेते ? क्या दुनिया के दूसरे देश हमारे लिए नीतियाँ तय करेंगे ? हमारी सरकारों के सलाहकार अपनी मेधा का इस्तेमाल खुद क्यों नहीं कर रहे हैं ? चिकित्सा का तो पूरा प्रोटोकाॅल ही पश्चिमी देशों से हूबहू ले लिया गया है .

आखिर उधार की हंडिया ही हर बार चूल्हे पर चढाई जाएगी . क्या हम ये मान लें कि हमारी शिक्षा दोयम दर्जे की है और संकट काल में हमारे पास हमारे खुद के दिमाग से उपजे अपने कोई प्लान नहीं हैं .

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