9/11 की तारीख देश ही नहीं पूरी दुनिया के लिए न भूलने वाली तारीख है। आज की तारीख से जुडी जिन दो घटनाओं का मैं जिक्र कर रहा हूं संयोग से दोनों का संबंध अमेरिका से है।
2001 में आज के दिन अलकायदा ने चार विमानों का अपहरण कर उनमें से दो को वर्ल्ड ट्रेड सेंटर से टकरा दिया था। इस नए तरह के आतंकी हमले में 19 आतंकियों समेत लगभग 70 देशों के 3000 निरीह नागरिक आतंकवाद की भेंट चढ गए थे।
दूसरा मामला अमेरिका के ही शहर शिकागो का है जहां 1893 में आयोजित विश्व धर्म सम्मेलन में भाग लेने के लिए वेलूर मठ के स्वामी रामकृष्ण परमहंस के शिष्य स्वामी विवेकानंद लंबी यात्रा के बाद अमेरिका पहुंचे थे। दक्षिण गुजरात के काठियावाड के लोगों ने विवेकानंद को शिकागो सम्मेलन में जाने का सुझाव दिया था। तत्पश्चात तमिलनाडु के राजा भास्कर सेतुपति ने भी उन्हें ऐसा ही सुझाव दिया था। इसके बाद स्वामी जी कन्याकुमारी पहुंचे थे। हालांकि स्वामी जी मुम्बई से याकोहामा वहां से एक्सप्रेस आफ इंडिया जहाज से बैंकुअर और फिर वहां से ट्रेन से शिकागो पहुंचे थे। सम्मेलन के पांच सप्ताह पहले ही विवेकानंद 25 जुलाई 1893 को शिकागो पहुंच गए थे। महंगा शहर , न खर्चे के लिए पैसे न ही पर्याप्त कपडे। कडाके की ठंड में उन्हें एक रात यार्ड में खडी मालगाडी में भी गुजारनी पडी थी।
127 वर्ष पहले आज ही वो दिन भी आया जब स्वामी जी ने 11 सितम्बर 1893 को विश्व धर्म सम्मेलन को संबोधित करते हुए अपने संबोधन की शुरुआत माइ डियर ब्रदर्स / एंड सिस्टर्स से की थी। उनके संबोधन मात्र से ही समूचा हाल तालियों की गूंज से गुंजायमान हो गया था। उन्होंने अपने संबोधन में हवाला देते हुए कहा था कि मुझे गर्व है कि ” मैं एक ऐसे धर्म और देश से हूं जिसने दुनिया को सहनशीलता और सार्वभौमिक स्वीकृति का पाठ पढाया है। ”
आज के इस दौर में यदि सहनशीलता और सार्वभौमिक स्वीकृति होती तो शायद वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर आतंकी हमले जैसी घटनाएँ न होतीं। न ही दुनिया का परिदृश्य इतना बदरंग होता। जरूरत है स्वामी जी द्वारा दिखाए रास्ते को अंगीकार करने की। तभी हम बेहतर दुनिया के वासी कहला पाएंगें।