केवल वक्त ही नहीं समाज में धीरे धीरे ही सही बहुत कुछ बदल रहा है . बदलते समय के साथ आ रहे बदलावों को हम नोटिस करें या न करें ये हम पर है . और तो और तमाम धारणायें , हमारी परम्परायें और रीति रिवाज भी बदल रहे हैं .
आज मैं उन चंद बदलावों पर बात कर रहा हूं जिनके बारे में दो तीन दशक पहले तक बात करना भी लोग गवारा नहीं करते थे . उ. प्र. के महाराजगंज जिले के कोठीभार थाना क्षेत्र के बडहरा चरगहा के मोतीटोला की रहने वाली चार बच्चों की मां रीता ने अपने पति के होते हुए अपने बडे बेटे दिलीप के निधन पर स्वयं बेटे को मुखाग्नि दी .
तमाम प्रांतों में मुखिया के निधन के बाद घर के उत्तराधिकारी को पगडी की रस्म के साथ घर की कमान सौंपी जाती है . आमतौर पर पगडी बडे बेटे को बाँधी जाती है . गुजरात से इस परम्परा के उलट एक समाचार पढने को मिला जब मां के निधन पर भाई के होते हुए बहन ने मुखाग्नि दी . पगडी की रस्म में तो उपस्थित पूरा परिवार व समाज के लोग तब आश्चर्यचकित रह गए जब बडे भाई की सहमति पर छोटी बहन के सिर पर उत्तराधिकार की पगडी बाँधी गई . और तो और पगडी स्वयं बडे भाई ने बाँधी .
बदलाव की एक और खबर आई उ.प्र. के हमीरपुर जिले के छोटे से गांव बिहूनी से . बिहूनी निवासी डा. प्रमोद गुप्ता जाने माने बाल रोग विशेषज्ञ हैं एवं झांसी में उनका नर्सिंग होम संचालित है . कुछ समय पूर्व डा. गुप्ता की मां का निधन हो गया . डा. गुप्ता ने मां की तेरहवीं पर गांव की २५ कन्याओं को घर बुलाकर उन्हें पांच – पांच हजार रुपए की फिक्स डिपाजिट ( एफडी ) सौंपी .
ये रस्में शास्त्रोक्त हैं या नहीं . इन प्रकरणों में धर्म व दर्शन क्या कहता है . ये सभी बातें बहस का विषय हो सकती हैं. दोनों पक्षों से ढेरों तर्क रखे जा सकते हैं. इन्हें परम्परागत सामाजिक धार्मिक ढांचे को तोडने की साजिश भी कहा जा सकता है . लेकिन एक बात तो तय है कि वक्त के साथ धारणाओं व परम्पराओं में भी बदलाव आता है . शिक्षा भी इस बदलाव में अहम रोल निभाती है . लेकिन सबसे बडा सवाल यह है कि क्या हम भी थोडा बहुत बदलने को तैयार हैं या नहीं .