क्या हैं लोकसभा में पारित हुए दोनों किसान विधेयक, किसलिए हो रहा है इनका विरोध

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रिपोर्ट – दुर्गेश सिंह

विपक्षी दलों के जबरदस्त विरोध के बावजूद दो कृषि विधेयक गुरुवार को लोकसभा में पारित हो गए। इससे पहले एक विधेयक मंगलवार को लोकसभा में पारित हुआ था। इन विधेयकों के विरोध में शिरोमणि अकाली दल से मंत्री हरसिमरत कौर बादल ने गुरुवार को मंत्री पद से इस्तीफा तक दे दिया। इन विधेयकों को लेकर पहले भी कई किसान संगठन विरोध-प्रदर्शन कर चुके हैं। भाजपा इन विधेयकों को किसानों के लिए वरदान बता रही है तो कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों का कहना है कि इन विधेयकों से किसानों को नुकसान ही होगा। हम आपको बता रहे हैं कि क्या हैं ये विधेयक और क्यों इनका विरोध हो रहा है…

गुरुवार को लोकसभा में दो कृषि विधेयकों ‘कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सरलीकरण) विधेयक 2020’ और ‘कृषक (सशक्तिकरण और संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा पर करार विधेयक 2020’ पर चर्चा हुई। इससे पहले आवश्यक वस्तु (संशोधन) अध्यादेश, 2020 मंगलवार को पारित हो गया था। कृषि मंत्री नरेंद्र तोमर ने लोकसभा में कहा कि नए विधेयक किसान विरोधी नहीं हैं और ये किसानों को उनकी उपज का बेहतर मूल्य दिलाएंगे। वहीं, विपक्षी दलों ने इन विधेयकों को छोटे किसानों के लिए नुकसानदायक करार देते हुए विधेयकों को संसद की स्थायी समिति के पास भेजने की मांग की थी।

किसान क्यों कर रहे हैं विरोध
किसान यूं तो तीनों अध्यादेशों के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे हैं लेकिन सबसे ज्यादा आपत्ति उन्हें पहले अध्यादेश के प्रावधानों से हैं। उनकी चिंताएं मुख्य रूप से व्यापार क्षेत्र, व्यापारी, विवादों का हल और बाजार शुल्क को लेकर हैं। किसानों ने आशंका जताई है कि जैसे ही ये विधेयक पारित होंगे, इससे न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) प्रणाली को खत्म करने का रास्ता साफ हो जाएगा और किसानों को बड़े पूंजीपतियों की दया पर छोड़ दिया जाएगा। हरियाणा, पंजाब और उत्तर प्रदेश आदि राज्यों में किसान इन विधेयकों का विरोध कर रहे हैं।

नए विधेयकों में शामिल हैं ये प्रावधान
नए विधेयकों के मुताबिक अब व्यापारी मंडी से बाहर भी किसानों की फसल खरीद सकेंगे। पहले फसल की खरीद केवल मंडी में ही होती थी। केंद्र ने अब दाल, आलू, प्याज, अनाज और खाद्य तेल आदि को आवश्यक वस्तु नियम से बाहर कर इसकी स्टॉक सीमा समाप्त कर दी है। इसके अलावा केंद्र ने कॉन्ट्रैक्ट फॉर्मिंग (अनुबंध कृषि) को बढ़ावा देने पर भी काम शुरू किया है। किसान संगठनों का आरोप है कि नए कानून से कृषि क्षेत्र भी पूंजीपतियों या कॉरपोरेट घरानों के हाथों में चला जाएगा और इसका नुकसान किसानों को ही होगा।

विपक्षी दलों ने विधेयकों पर क्या कहा
लोकसभा में विधेयकों की चर्चा के साथ ही विपक्ष ने इनका जोरदार विरोध किया था। केरल से राज्यसभा सांसद एनके प्रेमचंद्रन ने कहा कि इन विधेयकों को पारित करने का कोई औचित्य नहीं है। उन्होंने कहा, ‘सरकार से मेरा विनम्र आग्रह है कि बिलों को जांच के लिए स्थाई समिति को भेजा जाए, अन्यथा यह भारत में कृषक समुदाय के लिए एक और आपदा होगी।’ वहीं, तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) पार्टी के सांसद कल्याण बनर्जी ने कहा कि इससे पूरा कृषि उद्योग निजीकरण की ओर बढ़ेगा और राज्यों के राजस्व को भी नुकसान होगा।

शिरोमणि अकाली दल के सांसद सुखबीर सिंह बादल ने लोकसभा में बोलते हुए गुरुवार को सुखबीर सिंह बादल ने साफ कहा कि शिरोमणि अकाली दल इस बिल का सख्त विरोध करता है। उन्होंने कहा कि किसानों को लेकर आए इन विधेयकों से पंजाब के हमारे 20 लाख किसान प्रभावित होने जा रहे हैं। 30 हजार आढ़तिए, तीन लाख मंडी मजदूर, 20 लाख खेतिहर मजदूर इससे प्रभावित होने जा रहे हैं। अकाली दल के अलावा पंजाब में कैप्टन अमरिंदर सिंह की सरकार ने भी मोदी सरकार की इन विधेयकों को लेकर आलोचना की थी।

द्रमुक के सांसद के शनमुगा सुंदरम ने कहा कि सरकार को खाद्य वस्तुओं पर निर्यात प्रतिबंध लगाना चाहिए था। उन्होंने कहा कि प्रस्तावित कानूनों में ऐसा कुछ भी नहीं है जिससे यह सुनिश्चित किया जा सके कि किसानों के साथ अनुबंध उचित होगा। शिवसेना के अरविंद सावंत ने कहा कि 75 फीसदी किसानों के पास पांच एकड़ से भी कम जमीन है। प्रस्तावित विधेयक उन किसानों को कैसे लाभ पहुंचाएंगे? वहीं, टीएमसी सांसद महुआ मोइत्रा ने लोकसभा में कहा कि ये विधेयक लाकर सरकार संघवाद की आत्मा पर हमले कर रही है।

किसान विरोधी नहीं हैं विधेयक : तोमर
कृषि मंत्री नरेंद्र तोमर ने कहा कि नया विधेयक किसान विरोधी नहीं है और यह किसानों को उनकी उपज का बेहतर मूल्य दिलाएगा। उन्होंने कहा कि इन विधेयकों से इंस्पेक्टर राज खत्म होगा, भ्रष्टाचार समाप्त होगा और किसान व व्यापारी देश में कहीं भी खरीद और बिक्री के लिए स्वतंत्र होंगे। वहीं, भाजपा सांसद जगदंबिका पाल ने कहा कि कांग्रेस जब-तब कृषि सुधारों को लेकर स्वामीनाथन रिपोर्ट की बात करती है। यह रिपोर्ट साल 2006 में जारी हुई थी, 2008 में इसे अंतिम रूप दिया गया था और कांग्रेस साल 2014 तक सत्ता में रही थी।

जदयू के संतोष कुमार ने विधेयक का समर्थन करते हुए कहा कि इस विधेयक को लेकर जो आशंकाएं जताई जा रही हैं वो निराधार हैं। उन्होंने कहा कि किसानों के लिए यह एक तोहफा है और उनकी तकदीर बदलने वाला है। वहीं, वाईएसआर कांग्रेस सांसद कृष्ण देवरायालु लावु ने कहा, ‘हम कृषि उत्पादन व्यापार और वाणिज्य विधेयक का स्वागत करते हैं। लेकिन सरकार यह सुनिश्चित करे कि कृषि विपणन में एकाधिकार की प्रवृत्ति से बचा जाए और यह सुनिश्चित किया जाए कि राज्यों को एपीएमसी बाजार में नुकसान की भरपाई की जाए।’

अब एमएसपी का क्या होगा?
विपक्षी दलों का तर्क है कि ये विधेयक एमएसपी (न्यूनतम समर्थन मूल्य) प्रणाली द्वारा किसानों को प्रदान किए गए सुरक्षा कवच को कमजोर कर देगा और बड़ी कंपनियों द्वारा किसानों के शोषण की स्थिति को जन्म देगा। हालांकि, कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने इन विधेयकों को परिवर्तनकारी बताते हुए कहा कि किसानों के लिए एमएसपी प्रणाली जारी रहेगी। इन विधेयकों के कारण इस पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। तोमर ने कहा कि यह किसानों को बांधने वाला विधेयक नहीं बल्कि किसानों को स्वतंत्रता देने वाला विधेयक है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी ट्वीट कर कहा है कि एमएसपी और सरकारी खरीद की व्यवस्था बनी रहेगी।

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