श्री कामदगिरि परिक्रमा मार्ग के ब्रह्मकुंड स्थित शनि मंदिर में चल रही श्रीराम कथा का पांचवा दिन
चित्रकूट: पयस्वनी की कृपा से ही उनके उदगम में कथा हो रही है। माता का उद्दार करने उनको पुनर्जीवित करने, सदानीरा बनाने के लिए कोई बाहर से नही आएगा। हमे और आपको अपनी प्रेम,करुणा और भक्ति से इसे सिंचित करना पड़ेगा। यहा प्रत्यक्ष रूप से कम अप्रत्यक्ष रूप से ज्यादा कथा सुन रहे है। भगवान जहां जाते है,वहाँ उद्दार ही होता। भगवान का कार्य या रास्ते पर चलने वाला दास होता है। भगवान जीवन चाहते है,अहिल्या को जीवन देते है। भूमिजा सीता का वरण करते है। भूमि को चीरकर नदिया बहती है। ये भक्ति रूपी सीता है। यही भक्ति है और भक्ति के अतिरिक्त किसी को भगवान के पास जाने का अधिकार नही। भक्ति बन्द होने पर भगवान दूर हो जाते है। इसी प्रकार जल के स्रोत बन्द करने पर मन्दाकिनी,पयस्वनी कैसे बहेगी।
शरीर की इंद्रियों को नियंत्रित करने की कला सिखाते हुए कहा कि बुध्दि सारथी है, मन लगाम है। अगर बुध्दि परमात्मा में लगाई तो मन रूपी घोड़ा सही जगह में पहुचेगा।
रामजन्म का उत्सव एक महीने तक मनाया गया। भक्ति में समय का पता नही चलता। अयोध्या का अर्थ है,जहाँ कभी युध्द न हुआ हो,जहाँ कभी द्वंद न हो वह है अयोध्या। जब भी भगवान का अवतरण होता है महादेव अपने आप दर्शन करने पहुँच जाते है।
इस दौरान कथा की व्यवस्था करने का काम सत्यनारायण मौर्य, अखिलेश अवस्थी, संत धर्मदास, संत गंगासागर, रामरूप पटेल आदि लोग कर रहे है। इस दौरान क्षेत्र के हजारों लोग मौजूद रहे।