राकेश कुमार अग्रवाल
बुंदेलखंड के चित्रकूट मंडल में अक्टूबर माह में घटी दो वीभत्स घटनाओं ने आम और खास सभी का ध्यान ही नहींं खींचा बल्कि दोनों वारदात मीडिया की सुर्खियां बनीं . पहली घटना का संबंध बांदा जिले के बबेरू कस्बे से है जहां के नेतानगर मोहल्ला निवासी 38 वर्षीय किन्नर यादव ने अपनी 35 वर्षीया पत्नी विमला को घर में उसके आशिक के साथ देख फरसे से पत्नी का गला काटकर धड से अलग कर दिया . और एक हाथ में कटे सिर को व दूसरे हाथ में फरसा लेकर घर से कोतवाली निकल पडा . दिनदहाडे जिसने भी इस वीभत्स दृश्य को देखा उसके रौंगटे खडे हो गए . घटना 9 अक्टूबर की थी .
दूसरी घटना हमीरपुर जिले के राठ कस्बे की है . जिसमें पति के विवाहेतर संबंध से बौखलाई पत्नी सीमा ने 20 अक्टूबर को अपनी सहेली पूजा की दिनदहाडे सडक पर चाकुओं से गोद कर हत्या कर दी . शादीशुदा दोनों महिलाओं के छोटे बच्चे भी हैं . विवाहेतर संबंधों से उपजे प्रतिशोध के चलते दोनों प्रकरणों का अंत खौफनाक रहा . पहली घटना में पति अपनी ही पत्नी की हत्या कर जेल चला गया . तो दूसरी घटना में एक महिला ने अपनी ही सहेली की नृशंसता पूर्वक हत्या कर जेल का रास्ता चुना .
उक्त दोनों घटनाओं ने समाज में एक नई बहस भी छेड दी .
भारतीय संस्कृति में विवाह को सबसे पवित्र रिश्तों में एक माना जाता है . जिसमें अग्नि को साक्षी मानकर सात जन्म और जन्म जन्मान्तर तक साथ निभाने की कसमें खाई जाती हैं . लेकिन हालात ऐसे बन रहे हैं जहां जीवन साथियों को एक जन्म भी साथ साथ रहना भारी पड रहा है .
ऐसे में तमाम सवाल उठना लाजिमी भी है . पहला सवाल यही है कि विवाहेतर संबंध पनप क्यों रहे हैं . इनके पीछे कौन जिम्मेदार है ? दूसरा सवाल क्या बढता पाश्चात्यकरण इसके लिए जिम्मेदार है या फिर यह उच्छृंखलता है जिसके कारण रिश्तों पर संकट गहरा गया है . तीसरा आर्थिक दबाब की इन संबंधों के पनपने में क्या भूमिका है ? चौथा क्या यह मानवीय स्वभाव है कि स्त्री पुरुष एक साथ एकाधिक लोगों से रिश्ता रखने की चाहत रखते हैं . एवं पांचवा सवाल कि क्या दाम्पत्य रिश्ते जो आपसी प्रेम एवं विश्वास पर टिके होते हैं उनकी बुनियाद दरक चुकी है . या फिर दाम्पत्य प्रेम का यह नया रूप उभर कर सामने आ रहा है जिसमें किसी तीसरे की इन्ट्री पति या पत्नी किसी को भी बरदाश्त नहीं है . इसको रोकने के लिए वे किसी भी हद तक जा सकते हैं भला इसका अंत जीवन भर का त्रास बन जाए .
कहते हैं कि अगर सवाल हैं तो जबाब भी होंगे ही . जबाबों को खोजने के लिए हमें चांद या मंगल पर या फिर किसी लैब में जाने की जरूरत नहीं है . सवालों के जबाब भी दम्पत्ति के इर्द गिर्द ही होते हैं . विवाहेतर संबंधों के पनपने में भला दम्पत्ति के अलावा तीसरा कौन जिम्मेदार हो सकता है . यदि पति पत्नी के रिश्ते में तीसरे की इन्ट्री हो रही है तो निश्चित तौर पर किसी न किसी एक पक्ष की उपेक्षा के कारण वैक्यूम बना और तीसरे की इन्ट्री का रास्ता खुला होगा . होता क्या है कि एक वक्त के बाद आपसी रिश्तों में नीरसता आने लगती है . जबकि रिश्ता रसों से सराबोर रहे इसके लिए दोनों की समान भूमिका होती है . इसलिए दोनों की यह जिम्मेदारी है कि एक दूसरे के प्रति लगाव और प्रेम कभी कम न हो . जहां तक रिश्तों में पाश्चात्यकरण का सवाल है तीन दशकों से समाज में खुलापन बढा है . खान पान , पहनावा , रस्म सभी जगह यह नजर भी आता है . फिल्मों , टी वी सीरियल और वेब सीरीज ने इसे और भी बढाया है . पहले संयुक्त परिवारों का चलन था इसलिए सास , ससुर आदि के रूप में तमाम बैरियर होते थे जिसके चलते विवाहेतर रिश्तों के पनपने की कोई सूरत ही नहीं होती थी . लेकिन एकल परिवारों के चलन ने इस बंधन से दोनों को आजाद कर दिया है . ऐसे में केवल आपसी विश्वास और सामंजस्य ही रिश्ते में तीसरे की इंट्री रोक सकता है .
आर्थिक दबाब एक बहुत बडा कारण है इससे इंकार नहीं किया जा सकता है . इच्छायें असीमित हैं उपभोक्तावाद चरम पर है . एक व्यक्ति की कमाई से गृहस्थी की गाडी नहीं चल पा रही ऐसे में आर्थिक रूप से समृद्ध व्यक्ति के प्रति झुकाव तीसरे की इन्ट्री का सबब बन जाता है . यदि दम्पत्ति एक दूसरे की जरूरत और भावनाओं का ख्याल रखें तो जरूरी नहीं है कि व्यक्ति अपनी छवि और रिश्ते को दांव पर लगाकर किसी नए रिश्ते की बुनियाद खडी करे . क्योंकि ये जरूरी नहीं है कि जो नया रिश्ता पनपेगा उसका हश्र पहले रिश्ते जैसा नहीं होगा . एक से अधिक लोगों से रिश्ते वैसे भी समाज में खुले रूप में स्वीकार्य नहीं है . चोरी छिपे पनपने वाले रिश्तों में मंतलब पूरा होते ही एक न एक दिन इस रिश्ते का अंत हो ही जाता है .
पति हो या पत्नी उनका बदला उपेक्षापूर्ण व्यवहार , मोबाइल पर घुमा फिराकर बात करना जैसे तमाम कारकों से एक दूसरे को आभास हो जाता है कि कहीं न कहीं कुछ गडबड जरूर है .
इसके बावजूद यदि मामला इतना आगे बढ जाए कि हाथ में गडासा , फरसा या चाकू लेना पडे तो बेहतर यही होगा कि या तो रिश्ते में पनपे अविश्वास की खाई को पाटा जाए या फिर उससे दूरी ही बना ली जाए . जैसा साहिर लुधियानवी ने फिल्म गुमराह में शब्दों के माघ्यम से भावों को कुछ इस तरह पिरोया था कि चलो इक बार फिर से अजनबी बन जाएँ हम दोनों ….