राकेश कुमार अग्रवाल
मंदिर मुद्दे के पटाक्षेप के बाद अब भाजपा शासित राज्यों में संघ और भाजपा अपने एजेंडे को धार देने में जुट गई है . मध्यप्रदेश में शिवराज सरकार इस मामले में अगुआ साबित हो रही है . पंचगव्य दर्शन पर काम करने वाली भाजपा गाय , गोबर , गौमूत्र , दूध व दही पर लम्बे अरसे से बात करती रही है . उत्तर प्रदेश में योगी सरकार भी गायों के मुद्दे को लेकर गंभीर है . गौवंश की बेकदरी न हो , अन्ना पशुओं के गौशालाओं में भेजा जाए . उनके चारा पानी , छाया का इंतजाम हो इसके लिए जिलों में आला अधिकारियों की तैनाती की गई है .
मध्य प्रदेश सरकार गायों के समुचित संरक्षण के लिए अभिनव कदम उठाने जा रही है जिसके तहत पहली बार कोई सरकार गौ संरक्षण के लिए अधिभार लगाने जा रही है . सेस से प्राप्त धन को सरकार गौशालाओं के विकास , उनकी अवस्थापना व चारा पानी के इंतजाम पर व्यय करेगी . सरकार ने एक कदम आगे बढते हुए मध्य प्रदेश में काऊ कैबिनेट का गठन कर डाला है . आगर मालवा क्षेत्र में गौ अनुसंधान केन्द्र खोलने का फैसला लिया है . उन्होंने गायों की रक्षा के लिए प्रदेश में मंत्री परिषद समिति के गठन की भी घोषणा की है . उन्होंने गौशालाओं को स्वावलम्बी बनाने की भी घोषणा की है .
2019 की पशुगणना के मुताबिक देश में कुल पशुधन 53 करोड 57.8 लाख है . देश में हर पांच साल बाद पशुगणना होती है . 2019 की गणना के अनुसार देश में गायों की संख्या 145.12 मिलियन है . 2012 की पशुगणना की तुलना में 2019 में 18 फीसदी की बढोत्तरी हुई है . मवेशियों की गणना के अनुसार देश में भेड , बकरी , व मिथुन वर्ग के पशुओं की संख्या में इजाफा हुआ है जबकि घोडे , टट्टू , सुअर , गधा , ऊँट , याक व खच्चर की संख्या में गिरावट आ रही है . मत्स्य पालन , पशुपालन व डेयरी मंत्रालय के अनुसार देश के पश्चिमी बंगाल , तेलंगाना , आँध्रप्रदेश , बिहार व म.प्र. में पशुधन में वृद्धि दर्ज की गई है जबकि गुजरात , राजस्थान व उत्तर प्रदेश में पशुधन में कमी आई है . जबकि गुजरात व उ. प्र में भाजपा की सरकार है .
जहां तक मध्यप्रदेश में अधिभार लगाने का सवाल है यह क्या व कितना होगा , किनसे वसूला जाएगा , कैसे वसूला जाएगा इसका रूप स्वरूप क्या होगा इस पर कोई स्पष्ट आदेश जारी नहीं हुआ है अलबत्ता सरकार ने मामूली सेस वसूलने की बात कही है . कभी शिक्षा , कभी स्वास्थ्य तो कभी सडकों के सुदृढीकरण के लिए सरकार सेस वसूलती रहीं हैं . वर्ष 2004 से 2019-20 के बीच शिक्षा पर 4.25 लाख करोड का सेस वसूला गया . 2007-08 में माध्यमिक और उच्च शिक्षा पर सेस वसूला गया .
यदि आँकडों का अध्ययन करें तो पशुपालन खेती से कहीं ज्यादा मुनाफे का धंधा है . आज भी गांवों में तीन चार दुधारू पशु रखने वाले पशुपालक दूध बेचकर परिवार का भरण पोषण कर लेते हैं . बीते तीन दशकों में देश में दूध और इससे जुडे उत्पादों की बिक्री में जबरजस्त वृद्धि दर्ज की गई है . गायों के बजाए भैंसपालन के प्रति पशुपालकों का रुझान बढा है. गायों की उन नस्लों को लोग ज्यादा तवज्जो दे रहे हैं जो पर्याप्त मात्रा में दूध देती हैं .
गायों को भारतीय संस्कृति में विशिष्ट दर्जा मिला हुआ है . दरअसल देशी गायों से मिलने वाला दूध , गोबर , गौमूत्र के उपयोगों के कारण उसकी महत्ता और भी बढ गई . लेकिन ज्यादातर पशुपालक देशी गाय को पालने के बजाए गाए की उन नस्लों को पालते हैं जो ज्यादा दूध देती हैं .
बरेली स्थित राष्ट्रीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान के पूर्व सहायक निदेशक डा. आर पी सिंह ने गाय की देशी नस्ल के उपयोगों पर किए गए अपने शोध में तमाम चौंकाने वाले तथ्यों को खुलासा किया था . उनके अनुसार यदि कोई मनुष्य यदि प्रतिदिन गाय के थूथन को 15- 20 मिनट सहलाए तो उसका ब्लड प्रेशर सामान्य रहेगा . उन्होंने कैंसर , एड्स व टीबी जैसी बीमारियों में देशी गाय के उत्पादों के इस्तेमाल के कारगर परिणाम बताए थे .
देश में जब तक संयुक्त परिवार थे हर घर में गाय या बकरी को पाला जाता था . लेकिन एकल परिवारों के चलन , घरों के बंटवारे , सरकारी नौकरी की दीवानगी , पशुओं से बढती इंसान की दूरी ऐसे प्रमुख कारण है कि धीरे धीरे गाय घरों से गायब हो गई . गनीमत है कि गांवों में लोग गौवंश को पाले हुए हैं . ऐसे में सरकार गौवंश के संरक्षण को लेकर जिस तरह से गंभीरता दिखा रही है वह एक सुखद संकेत है . बशर्ते इन मूक पशुओं पर राजनीति के बजाए इनके संरक्षण पर ईमानदारी से काम हो . ऐसी योजनायें भी बनाई जा सकती हैं जिनसे बेरोजगार नौजवानों को जोडा जा सकता है . उन्हें काम और दाम भी मिलेगा साथ में गौ संरक्षण में भी मदद मिलेगी .