राकेश कुमार अग्रवाल
संविधान दिवस पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने फिर से ” वन नेशन – वन इलेक्शन ” की वकालत की . वे ऑल इंडिया प्रेसाइडिंग ऑफीसर्स की कांफ्रेंस को संबोधित कर रहे थे .
जनवरी 2017 में भी पीएम मोदी वन नेशन – वन इलेक्शन की वकालत कर चुके हैं . आजादी के बाद से ही चुनावों को लेकर ही इस तरह की तमाम बातें होती हैं . इसके पक्ष में ढेर सारी दलीलें दी जाती हैं . लेकिन देश का जिम्मेदार नागरिक होने के नाते मैं देश में एक राष्ट्र एक चुनाव का पुरजोर विरोध करता हूं .
मैं आप सभी के समक्ष विनम्रतापूर्वक अपनी कुछ बातें रखना चाहता हूं . हम सभी वर्षों से पढते और सुनते आए हैं कि मनुष्य उत्सवधर्मी प्राणी है . उत्सव उसे रीचार्ज कर देते हैं . नई ऊर्जा से लबरेज कर देते हैं . इसलिए भारत में एक उत्सव के जाते ही अगले उत्सव की तैयारी शुरु हो जाती है . हमारे यहां जातियों के उत्सव हैं , धर्मों के उत्सव अलग हैं . क्षेत्र विशेष के अलग उत्सव होते हैं . खुशी के साथ साथ गम के भी उत्सव हैं . लेकिन लोकतंत्र में सभी उत्सवों पर भारी है चुनावी उत्सव . जिसमें सभी जाति , धर्म , वर्ग , सम्प्रदाय व लिंग के लोग बढ चढकर हिस्सेदारी करते हैं . यह उत्सव बाढ , भूकम्प जैसी प्राकृतिक आपदाओं में भी मनाया जाता है . आतंकवाद जैसी मानव जनित आपदा में भी और कोरोना जैसी विश्वव्यापी महामारी में भी . क्योंकि यह इकलौता ऐसा उत्सव है जो आपदाओं की सीमाओं से परे है . जाति , धर्म के उत्सव तो हम देशवासी मनाते ही रहते हैं.
चुनाव उत्सव नजदीक आते ही फिजा बसंती रंग में रंगने लगती है . अगर वन नेशन वन इलेक्शन लागू हो जाएगा तो हर चार – छह माह में नेताओं के रंगीन वसंती बयानों से हम सभी महरूम हो जायेंगे . इन रोचक बयानों के लिए भी पांच साल का इंतजार करना पडेगा . गांव – गांव , नगर – नगर में भारी भरकम बैनर , पोस्टर , फ्लेक्स नेता जी की चकचक हाथ जोड फोटो के साथ चस्पा हो जाते हैं . जिन नेताओं के आगे पांच साल जनता हाथ जोडे खडी रहती है अब उत्सव शुरु होते ही विज्ञान का रेसीप्रोकल वाला नियम लागू हो जाता है . हाथ जोडने व पैर पडने से उत्सव में आम मतदाता भी अपने को कुछ दिनों के लिए खास समझने लगता है. सबसे ज्यादा बल्ले बल्ले मीडिया हाउस की होती है . किसकी सरकार बनवाना है किसको जिताना व किसको हरवाना है सब मीडिया हाउस अपने अपने चैम्बर में बैठ कर तय करने लगते है . प्री पोल व एक्जिट पोल का धंधा पूरे शबाब पर होता है . अलग अलग एजेंसियाँ अलग अलग सरकार बनवाती हैं . चैनलों के डिबेट रूम में एक्सपर्ट आँकडे ऐसे परोसते हैं कि लगता है चैनल अपनी फेवरिट फलानी पार्टी की सरकार बनवा कर ही दम लेगा . हालत यह होता है कि कपिल शर्मा शो और सास बहू के सीरियल भी मनोरंजन के मामले में फीके नजर आते हैं . सोचो अगर पांच साल में केवल एक बार चुनाव होगा तो हम दर्शकों के मनोरंजन का क्या होगा ? अभी कम से कम साल में दो तीन बार चुनाव होता है तो हम सब का मन लगा रहता है . भले कभी हम बिहार न गए हों लेकिन मजाल कि हमने वहां के चुनाव का आनंद न उठाया हो . और तो और हैदराबाद के नगर निगम चुनाव का आनंद उठाने से भी हम नहीं चूके . प्रशांत किशोर जैसे चुनाव जिताने वाले रणनीतिकार को लगातार चुनाव होने के कारण काम मिलता रहता है . एक राज्य से फारिग होते हैं तो दूसरे राज्य का ठेका उनको मिल जाता है . सोचो अगर वन नेशन – वन इलेक्शन होगा तो पीके बाबू को तो नया काम धंधा तलाशना पडेगा . उन सत्ता के दलालों का क्या होगा जो लोकसभा , विधानसभा का टिकट दिलाने का ठेका लेते हैं . सत्ता के गलियारों में घूमने वाले ये कथित जुगाडू लोग भी बेरोजगार हो जाएंगे .
एक्जिट पोल के लिए लगने वाले युवाओं की फौज भी पांच साल के लिए बेरोजगार हो जाएगी . चुनाव परिणाम और एक्जिट पोल के परिणामों को लेकर होने वाले चुनावी मनोरंजन से भी करोडों लोग महरूम हो जायेंगे . चुनाव आते ही पियक्कडों की पौ बारह हो जाती है . जिसके कहने से उसकी पत्नी उसे वोट न दे वह वोटों का बडा ठेकेदार बन जाता है क्योंकि वह सैकडों वोट दिलाने का दावा जो करता है . मुफ्त की मुर्गा , बकरा पार्टी से लाखों लाख लोग हाथ धो बैठेंगे . हम पत्रकार तो चुनाव के दो माह पहले से कलम घिसना शुरु कर देते हैं जो प्रत्याशियों की घोषणा , मतगणना , जीत- हार के विश्लेषण तक अनवरत चलती रहती है . हम पत्रकार चुनावों में किसी वीवीआईपी से कम नहीं होते . हेलीकाप्टर पर बैठकर नेताजी के चुनाव प्रचार की कवरेज से लेकर चुनावी समीकरण के हम लोग स्पेसलिस्ट हो जाते हैं . भले हम पत्रकारों ने कभी वार्ड मेम्बरी का चुनाव न लडा हो . चुनाव अगर पांच साल बाद ही होंगे तो फिर हम लोगों को नई खबरें गढना पडेंगीं . ये खबरें चुनावी रस की जगह कहां ले सकती हैं . फिर वही धरना – प्रदर्शन , संगोष्ठी , सडक , पानी , बिजली की समस्याओं की नीरस खबरों तक सिमट कर रह जांएगे . छोटी विधानसभा और कस्बों के लोग जिन्हें अभी चुनावों के कारण कभी – कभार उडनखटोला देखने को मिल जाता है वन नेशन – वन इलेक्शन के कारण गांवों – कस्बों के लोगों को उडनखटोला देखने से हमेशा के लिए वंचित होना पडेगा . क्योंकि फिर तो उडन खटोला केवल वीआईपी सीटों की उडान भरेगा . राष्ट्रीय स्तर के नेताओं व स्टार प्रचारकों को केवल टीवी पर देखकर संतोष करना पडेगा . जिन छुटभैये नेताओं को बीसियों साल से झेल रहे उन्हीं को परमानेंट झेलना हमारी मजबूरी बन जाएगी . हम लोग दूसरे राज्यों के चुनावों का मजा नहीं ले पायेंगे . चुनाव के पहले अर्ध सैनिक बलों के बूटों की टाप , कंधे पर एके 47 के साथ फ्लैग मार्च भी नहीं देख पाएंगे . हम शांतिप्रिय इलाके के मतदाताओं को उन्हीं मोटी तोंद वाले अलसाए से पुलिसकर्मियों को देखकर संतोष करना पडेगा . टीवी पर पूरे देश के इतने आँकडे परोसे जाएंगें कि जिसे समझने के लिए या तो हमें गणितज्ञ होना पडेगा या फिर हम तो चकरा ही जाएंगे . मोदी जी आपने अचानक नोटबंदी की हमने अपनी जेबें खाली कर दीं , लाईनों में लग गए , आपने जीएसटी लागू किया हम कुछ नहीं बोले , आपने लाॅकडाउन लगाया हम घर में कैद हो गए आपने थाली बजवाई . हमारे घरों में बेटे के जन्म पर थाली बजाई जाती थी लेकिन बिना किसी प्रसव व जच्चा बच्चा के हमने थाली बजाई . आपने दिए जलाने को कहा हम दीपचंद बन गए . लेकिन अब प्यारे देशवासियो और बहनो भाईयो चाहते हैं कि आप सब कुछ करिए लेकिन चुनावों को बारह मास और पांचों साल चलने दीजिए . नहीं तो हमारे बच्चे और नई पीढी इस छमाही चुनावी मनोरंजन से वंचित रह जायेंगे . जिसके लिए पीढियाँ हम लोगों को माफ नहीं करेंगी.