राकेश कुमार अग्रवाल
नया साल जहां कोरोना वायरस से निपटने का साल होगा वहीं नए साल में पश्चिमी बंगाल के विधानसभा चुनावों पर पूरे देश की निगाहें होंगी . ममता बनर्जी क्या जीत की हैट्रिक लगा पाएगीं यह एक बडा सवाल है जिस पर विपक्ष की राजनीति की गणित व दूरगामी रणनीति तय होगी .
कांग्रेस के बाद वामपंथियों का गढ रहे पश्चिमी बंगाल में कांग्रेस से निकली एंग्री यंग लेडी ममता बनर्जी ने न केवल कांग्रेस को बल्कि वामपंथियों के गढ को ध्वस्त कर सत्ता हासिल की थी . एक समय था जब यह कल्पना से भी परे लगता था कि बंगाल से वाम दलों को कभी सत्ता से हटाया भी जा सकता है . क्योंकि 34 सालों से वामपंथी दल लगातार बंगाल की सत्ता पर काबिज थे . लेकिन राजनीति की तेजतर्रार व चतुर खिलाडी ममता बनर्जी ने यह 2011 में साबित कर दिखाया था जब अकेले दम पर तृणमूल कांग्रेस ने 184 सीटें हासिल कर वामपंथियों को सत्ता के किनारे लगा दिया था . 2016 के चुनावों में दूसरी बार ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस ने 44.91 फीसदी मतों के साथ 211 सीटें हासिल कर अपनी जीत को तृणमूल के काम को मिला जनादेश बताया था . तबसे पश्चिमी बंगाल में न कांग्रेस उबर पाई न ही वाम दल .
पश्चिमी बंगाल में मई 2021 में विधानसभा चुनाव होना है चुनाव आयोग समय पर चुनाव कराने की बात कह चुका है . पश्चिमी बंगाल की लगभग दस करोड की आबादी है जिसमें से लगभग सात करोड हिंदू हैं . राज्य में मतदाताओं की संख्या भी लगभग सात करोड है . जिसमें से लगभग तीस फीसदी मुस्लिम मतदाता हैं . आबादी के लिहाज से राज्य में 69 फीसदी हिंदू व 30 फीसदी मुस्लिम है . यह 30 फीसदी मुस्लिम मतदाता राज्य की लगभग 98 सीटों पर निर्णायक भूमिका निभाता है . गत दस वर्षों में बंगाल की राजनीति में बहुत कुछ बदल चुका है . वामपंथी दलों एवं कांग्रेस के चुनावी परिदृश्य में हाशिया पर जाने के बाद पैदा हुए खाली स्थान पर सुनियोजित रणनीति से काम करते हुए भाजपा ने उस जगह पर काबिज होने लायक माद्दा इन दस वर्षों में जरूर पैदा कर लिया है . 2011 में उपचुनावों में दो सीट पर भाजपा जीती थी . पार्टी को 19.5 लाख वोट मिले थे . 2016 के चुनावों में भाजपा ने छलांग लगाते हुए 56 लाख मत हासिल किए थे . राज्य में विधानसभा की 294 सीटें हैं जिनमें से 262 सीटों पर पार्टी ने अपनी मौजूदगी दर्ज कराई थी . इन सीटों पर पार्टी को 10000 से ज्यादा मत मिले थे . भाजपा ने वैष्णवनगर व मदारीहाट समेत तीन सीटों पर विजय हासिल की थी . भाजपा को इन चुनावों में 10.16 फीसदी मत मिले थे . जबकि सत्तारूढ तृणमूल कांग्रेस ने 44.91 मतों के साथ 211 सीटें हासिल की थीं .
2009 के लोकसभा चुनावों में बंगाल में तृणमूल कांग्रेस ने अपने सांसदों की संख्या 1 से बढाकर 19 कर ली थी . कमोवेश भाजपा के साथ भी ऐसा ही हुआ है . 2014 के लोकसभा चुनावों में भाजपा ने 17 प्रतिशत मतों के साथ दो सीटें जीतने में सफलता हासिल की थी . लेकिन 2019 के चुनावों में भाजपा ने रिकार्डतोड प्रदर्शन करते हुए 40.2 फीसदी मतों के साथ 18 सीटें जीतकर यह साबित कर दिया था कि बंगाल में तृणमूण कांग्रेस को टक्कर देने के लिए प्रतिद्वंदी पार्टी तैयार हो गई है . तभी से राज्य में हिंदू व मुस्लिम मतों के ध्रुवीकरण की राजनीति तेज हो गई है . क्योंकि 2019 के लोकसभा चुनावों में तृणमूल कांग्रेस का मत प्रतिशत तो बढा था लेकिन सीटों की संख्या 34 से घटकर 22 पर आ गई थी . भाजपा जिस तेजी से अपना ग्राफ बढा रही है वह चौंकाने वाला है . पार्टी ने 2016 के विधानसभा चुनावों में 66 सीटों पर 20 से 30000 वोट हासिव किए थे . 16 सीटों पर 30 से 40000 वोट पाए थे एवं 6 सीटें ऐसी थीं जिन पर पार्टी के उम्मीदवारों को 40 से 50000 वोट मिले थे . एआईएमआईएम के असदुद्दीन ओवैसी ने बंगाल चुनाव में पार्टी उम्मीदवारों को उतारने की घोषणा कर ममता बनर्जी का खेल बिगाडने का जैसा पुख्ता इंतजाम कर दिया है . भाजपा ने हाल ही में बिहार विधानसभा चुनाव व हैदराबाद नगर निगम चुनाव में शानदार प्रदर्शन किया है जिससे पार्टी के हौसले बुलंद हैं . पार्टी बंगाल में तीन सालों से प्राणपण से जुटी हुई है . एवं वह बंगाल में परिवर्तन को लेकर आश्वस्त नजर आ रही है . जहां तक ममता बनर्जी का सवाल है वे पलटवार करने में माहिर हैं . बंगाल है बंगालियों का जैसे जुमले उछालने वाली ममता ने कोरोना महामारी के दौरान भी दुर्गा पूजा के सामुदायिक आयोजन की अनुमति दी . सामुदायिक दुर्गा पूजा आयोजनों के लिए 50000 रुपए की आर्थिक मदद के अलावा राज्य के 8000 हिंदू पुजारियों के लिए 1000 रुपए महीना मानदेय , तीर्थ स्थलों का जीर्णोद्धार व मंदिरों की मरम्मत में सरकारी सहायता देकर ममता ने भी ध्रुवीकरण की भरसक कोशिश की है . चुनावी ऊँट किस करवट बैठेगा इसके लिए कुछ माह का इंतजार करना पडेगा जो बताएगा कि बंगाल में भाजपा की इंट्री होगी या ममता की हैट्रिक .