अब अपने ही तरेरने लगे आँखें

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राकेश कुमार अग्रवाल
महाराष्ट्र में जिस कांग्रेस केे समर्थन से शिवसेना सरकार चला रही है उसी शिवसेना ने अपने मुखपत्र सामना में कांग्रेस की तमाम कमियों का हवाला देते हुए संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन ( यूपीए ) की कमान मराठा छत्रप व राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी अध्यक्ष शरद पवार को सौंपे जाने की वकालत की है . कांग्रेस की कडी आलोचना करते हुए मुखपत्र ने लिखा है कि कांग्रेस जैसी ऐतिहासिक पार्टी में एक साल से पूर्णकालिक अध्यक्ष तक नहीं है .
संयुक्त प्रगतिशील संगठन 2004 में तब अस्तित्व में आया था जब किसी भी दल को केन्द्र में सरकार बनाने के लिए बहुमत नहीं मिला था . इसके पहले अटलबिहारी वाजपेयी राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन ( एनडीए ) बनाकर सरकार चला चुके थे . कांग्रेस ने तमाम दलों को साथ मिलाकर यूपीए का गठन कर साथी दलों के समर्थन से लगातार दो बार 2004 व 2009 में सफलता पूर्वक सरकार चलाई थी . वर्तमान में यूपीए के सहयोगियों में शिवसेना , डीएमके , राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी , झारखंड मुक्ति मोर्चा , केरल कांग्रेस , भारतीय मुस्लिम लीग , जम्मू कश्मीर कांग्रेस पार्टी , एआईएमआईएम , राष्ट्रीय लोकदल , एमडीएमके , सिक्किम डेमोक्रेटिक फ्रंट , क्रांतिकारी सोशलिस्ट पार्टी जैसे दल शामिल हैं . वर्तमान में लोकसभा में यूपीए की ओर से कांग्रेस के अधीर रंजन चौधरी एवं राज्यसभा में कांग्रेस के ही गुलाम नबी आजाद नेता हैं .
इटली में 9 दिसम्बर 1946 को जन्मी 74 वर्षीय सोनिया गांधी कैम्ब्रिज यूनिवर्सटी में राजीव गांधी के सम्पर्क में आईं . दोनों ने 1968 में शादी कर ली . इंदिरा गांधी की हत्या के बाद राजीव गांधी को पार्टी संभालने की जिम्मेदारी मिली . तमिलनाडु के श्रीपेरम्बदूर में चुनाव प्रचार के दौरान लिट्टे के आत्मघाती दस्ते ने उन्हें माला पहनाने के दौरान विस्फोट कर हत्या कर दी थी . पति राजीव गांधी की मौत के छह साल बाद 1997 में सोनिया ने राजनीति में कदम रखा . उन्होंने 1997 में कोलकाता में आयोजित अधिवेशन में पार्टी की प्राथमिक सदस्यता ग्रहण की . 14 मार्च 1988 को उन्हें पार्टी का अध्यक्ष चुन लिया गया . 2004 में सोनिया गांधी को प्रधानमंत्री बनने का मौका मिला था लेकिन उन्होंने प्रधानमंत्री पद स्वीकार करने से मना कर दिया था .
जहां तक क्रिकेट प्रेमी राजनीतिज्ञ मराठा छत्रप शरद पवार का सवाल है उनकी जडें कांग्रेसी हैं . वे चार बार महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री , केन्द्र में कृषि व रक्षा मंत्री भी रह चुके हैं . 1999 में पी ए संगमा , शरद पवार व तारिक अनवर ने विदेशी मूल का मुद्दा छेडते हुए भारत में जन्मे व्यक्ति को ही देश का प्रधानमंत्री बनाए जाने का मुद्दा उठाकर सीधा सोनिया गांधी के खिलाफ बगावत का झंडा बुलंद कर दिया था . विदेशी मूल के मुद्दे को उठाने का तात्पर्य था कि सोनिया की अगुआई की खिलाफत करना . शरद पवार , पी ए संगमा व तारिक अनवर की इस मांग पर तीनों को पार्टी से 6 वर्ष के लिए निकाल दिया गया . पार्टी से विदाई के बाद जून में इन्होंने राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के गठन की घोषणा कर दी . भले शरद पवार कांग्रेस से अलग हो गए . लेकिन कांग्रेस से उनका जुडाव कभी खत्म नहीं हुआ . 2009 में महाराष्ट्र में सरकार बनवाने के लिए उन्होंने विलासराव देशमुख को समर्थन दिया था . 2004 में केन्द्र में मनमोहन की सरकार को उन्होंने समर्थन दिया व मनमोहन सरकार में कृषि मंत्री बने . 21 साल से शरद पवार कांग्रेस से दूर होकर भी उसके करीब ही रहे .
मुखपत्र सामना में शिवसेना ने 80 वर्षीय शरद पवार को यूपीए की कमान सौंपे जाने की वकालत की है . शरद पवार को खांटी राजनीतिज्ञ बताते हुए सामना ने लिखा है कि मोदी , ममता से लेकर सभी समय समय पर शरद पवार से मदद लेते हैं .
शिवसेना के मुखपत्र सामना ने एक माह से अधिक समय से दिल्ली में चल रहे किसान आंदोलन में यूपीए की विफलता पर प्रहार किया है . उसके अनुसार यूपीए को किसानों के आक्रोष को लपककर सरकार के खिलाफ आवाज व आँदोलन को लीड करना चाहिए था .
पवार महाराष्ट्र की सशक्त गन्ना लाॅबी को नेतृत्व देने के साथ ही केन्द्रीय कृषि मंत्री रह चुके हैं . वे यदि यूपीए को नेतृत्व प्रदान कर रहे होते तो यूपीए देश में विपक्ष व किसानों की आवाज बनकर सरकार को ललकार रहे होते .
कांग्रेस के प्रमुख रणनीतिकार अहमद पटेल व मोतीलाल वोरा का निधन हो चुका है . करीब चार माह पहले पार्टी के 23 नेता चिट्ठी लिखकर वेदना जता चुके हैं . दूसरी ओर केन्द्रीय मंत्री स्मृति ईरानी अपने निर्वाचन क्षेत्र अमेठी से कांग्रेस व गांधी परिवार को निशाना बनाते हुए 2024 के लोकसभा चुनावों में रायबरेली से भी कांग्रेस का सूपडा साफ करने की बात कर रही हैं . कांग्रेस बिहार विधानसभा चुनाव हो या फिर हैदराबाद नगर निगम चुनाव पार्टी धमाकेदार प्रदर्शन करने में नाकाम रही है . पार्टी के अंदर से जब तक आवाजें उठती रहती हैं . अब सहयोगी शिवसेना द्वारा सोनिया गांधी को यूपीए के शीर्ष पद से बेदखल कराने के लिए फेंका गया दांव कांग्रेस पार्टी व उसके नेतृत्व पर एक तरह से सीधा हमला है जो कांग्रेस की कमजोरी को भी उजागर कर रहा है . इसे 2024 की आहट कहना तो जल्दबाजी होगी लेकिन इतना तो तय है कि कारगर विपक्ष की भूमिका निभाने में सोनिया गांधी का यूपीए गठबंधन नाकाम रहा है .

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