आवश्यक वस्तु अधिनियम 1955 (Essential Commodities Act- 1955) के दायरे से आलू, प्याज, दाल-चावल, खाद्य तेल-तिलहन जैसी वस्तुएं निकल गईं। इसके लिए इसेंसियल कमोडिटीज अमेंडमेंट बिल 2020 (The Essential Commodities (Amendment) Bill- 2020), को लोकसभा से बीते 15 सितंबर को ही मंजूरी मिल गई थी। राज्य सभा ने भी कल इस पर अपनी सहमति दे दी।
सरकार का कहना है कि इस आवश्यक वस्तुओं की सूची से इन वस्तुओं को निकालने से किसानों की आमदनी तेजी से बढ़ सकेगी। किसानों को उनकी उपज की बेहतर कीमत मिलेगी। कारपोरेट जगत अब खुलकर इस दिशा में रुचि ले सकेंगे। हालांकि विपक्षी दलों का कहना है कि धीरे-धीरे सब चीजें निजी क्षेत्र के हवाले की जा रही है। इससे आम आदमी महंगाई की चक्की में पिसेंगे।
क्या है आवश्यक वस्तु अधिनियम
बात 1950 के दशक की है। उस समय देश में गेहूं और धान जैसे अनाजों की भारी किल्लत थी। इसी के साथ कुछ अन्य आवश्यक वस्तुओं की भी कमी थी। ऐसे माहौल में आवश्यक वस्तुओं या उत्पादों की आपूर्ति सुनिश्चित करने तथा उन्हें जमाखोरी एवं कालाबाज़ारी से रोकने के लिये वर्ष 1955 में आवश्यक वस्तु अधिनियम (Essential Commodities Act) बनाया गया था। इसमें सिर्फ दाल, चावल, आलू, प्याज, ही नहीं, दवाएं, रासायनिक खाद, दलहन और खाद्य तेल, पेट्रोलियम पदार्थ आदि भी शामिल हैं। समय समय पर सरकार इसमें कुछ बदलाव भी करती रही है।
अब क्या हुआ है बदलाव
सरकार ने आवश्यक वस्तुओं की सूची में महत्वपूर्ण बदलाव किया है। अब इस सूची से अनाज, दाल-दलहन, खाद्य तेल-तिलहन, आलू और प्याज को इस सूची से हटा दिया है। इसका मतलब है कि अब इन वस्तुओं के भंडारण की सीमा (Stock Limit) हट गई है। अब इन वस्तुओं का ज्यादा भंडारण करने पर जेल नहीं होगी। कंपनियां या कोई व्यापारी इन वस्तुओं को किसी भी सीमा तक जमा करने को स्वतंत्र होंगे।
आम लोगों पर क्या होगा असर
आवश्यक वस्तु अधिनियम, 1955 के जरिए सरकार 65 साल से इन वस्तुओं की बिक्री, उत्पादन और आपूर्ति को नियंत्रित करती आ रही थीं, लेकिन अब ये खुले बाजार के हवाले है। कृषि उत्पादों जैसे अनाज, खाद्य तेल, तिलहन दाल, प्याज और आलू कि डी-रेगुलेट कर दिया है यानि अब सरकार इनके बाजार भाव में भी हस्तक्षेप नहीं करेगी। ऐसे में उद्यमी अपने मनमाफिक तरीके से किसानों से इन चीजों की खरीद करेगी और उसे अपने हिसाब से भंडारण करेगी। उसकी देश भर में अब स्वतंत्र आवाजाही भी हो सकेगी।
अब इसकी जरूरत नहीं
सरकार का कहना है कि जब देश में भुखमरी थी, अकाल पड़ता था, हमलोग बाहर से आए अनाज पर निर्भर थे, तब अनाज, दलहन, तिलहन, आलू-प्याज आदि को इसमें रखने की जरूरत थी। हरित क्रांति के बाद अब देश में अनाज, फल-सब्जियों का उत्पादन काफी बढ़ा है। अब भारत एक्सपोर्ट करने की स्थिति में है। पुराने कानून की वजह से हर जगह स्टॉक लिमिट लग जाता था, इसलिए सप्लाई चेन की दिशा में निजी निवेश नहीं हो पाया। बड़े कोल्ड स्टोरेज और साइलेज नहीं बन पाए। क्योंकि, उन्हें पाबंदी लगने का डर था। नए नियम से निजी निवेश बढ़ेगा। फल-फूल सब्जियों की सप्लाई चेन बेहतर होगी। साथ ही भंडारगृह तथा कोल्ड स्टोरेज का निर्माण होने से इन वस्तुओं के बरबाद होने का भी भय खत्म होगा।