पुलिस की छवि को अमानवीय होने से बचाइए

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राकेश कुमार अग्रवाल

ब्रितानी हुकूमत रही हो या फिर आजाद भारत , खाकी की छवि हमेशा सवालों के घेरे में रही है . आए दिन इस तरह के वाकयात मीडिया की सुर्खियां बनते हैं जब कानून का शासन लागू कराने वाले खाकी वर्दीधारी ही खुद कानून की धज्जियां उडाते हैं .
उत्तर प्रदेश के महानगर कानपुर शहर की एक घटना ने तो सभी को शर्मसार कर दिया . जहां एक पुलिस अधिकारी ने एक दिव्यांग भिखारिन से उसकी गुमशुदा नाबालिग बेटी को तलाशने के लिए गाडी में डीजल भरवाने के नाम पर 12000 रुपए वसूल लिए . मामला मीडिया की सुर्खियां बनने के बाद दो पुलिसकर्मियों को निलम्बित कर दिया गया और 27 दिन बाद भिखारिन की गुमशुदा बेटी भी बरामद कर ली गई .
कानपुर के ही निकट बिकरु कांड में एसआईटी ने जिन 11 लोगों की जांच के आदेश दिए हैं उनमें दो आईपीएस आफीसर पूर्व डीआईजी अनंत देव , पूर्व एस पी ग्रामीण प्रदुमभन सिंह , पूर्व एसपी व तत्कालीन चुनाव प्रभारी राजेश सिंह यादव , पूर्व सीओ लाइन आईपीएस बीबीजीटीएस मूर्थी , आरआई लाइन जटाशंकर , हेड मुहर्रिर सतीश कुमार , पूर्व थाना प्रभारी चौबेपुर राकेश कुमार भी शामिल हैं . एसआईटी ने अपनी जांच में अपराधी , पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों के गठजोड का खुलासा किया है . विकास दुबे और उनके गुर्गों का आपराधिक इतिहास होने के बावजूद पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों ने उन्हें क्लीन चिट देे दी थी .
विजिलेंस ने भ्रष्टाचार के आरोप में निलंबित आईपीएस अधिकारी अभिषेक दीक्षित के खिलाफ विभागीय कार्यवाही की सिफारिश की . भ्रष्टाचार के आरोप में शासन ने प्रयागराज के एसएसपी के पद से उन्हें 8 सितम्बर को निलम्बित कर दिया था . अगले ही दिन 9 सितम्बर को शासन ने महोबा के एस पी मणिलाल पाटीदार को निलम्बित करते हुए इन दोनों मामलों की जांच विजिलेंस को सौंपी थी . महोबा के तत्कालीन पुलिस अधीक्षक रहे मणिलाल पाटीदार पर एक कारोबारी को आत्महत्या के लिए उकसाने का मामला दर्ज किया गया था . चौंकाने वाली बात तो यह है कि बिकरू कांड के दहशतगर्द विकास दुबे को जहां पुलिस ने महज एक हफ्ते में मध्य प्रदेश के उज्जैन से धर दबोचा था वहीं महोबा एसपी मणिलाल पाटीदार गत पांच माह से फरार हैं एवं प्रदेश की काबिल पुलिस पांच माह बाद भी उनकी गिरफ्तारी तो दूर उनका सटीक सुराग तक नहीं लगा सकी है .
पुलिस हिरासत में मौतें होने की खबरें भी जब तब सामने आती रहती हैं . हाल ही में महोबा में घटी ऐसी ही एक घटना ने जनमानस को हिला दिया था . जब चोरी के एक मामले में पूछताछ के लिए कोतवाली में लाए गए युवा सब्जी विक्रेता की पुलिस हिरासत में मौत हो गई . महोबा के सुभाषनगर निवासी 35 वर्षीय पंकज सेन जो रामसजीवन का इकलौता बेटा था एवं सब्जी की फेरी लगाता था . पंकज की पुलिस हिरासत में रात को ही मौत हो गई थी . बेटे की मौत की खबर परिजनों को अगले दिन सुबह लगी . परिजनों ने पुलिस पर बेटे की हत्या का आरोप लगाया .
सवाल उठता है कि क्या वाकई पुलिस अमानवीय हो गई है या यह फिर यह उसकी फितरत है . या कानून का शासन बनाए रखने की जिम्मेदारी निभाने वालों को कानून को अपने बूटों तले रौंदने का अधिकार मिल गया है . ऐसा नहीं है कि पूरा सिस्टम ही सड गल चुका है .कभी कभी इसी विभाग से ऐसी रचनात्मक व सकारात्मक खबरें भी आती हैं जो बदलते वक्त के साथ कदमताल की तसवीर उकेरती हैं . ताज नगरी आगरा के एसएसपी बबलू कुमार ने पुलिसिंग का चेहरा बदलने की कोशिश शुरु की है . उन्होंने एमबीए , एमसीए , और अन्य प्रोफेशनल कोर्स करने के बाद पुलिस सेवा में आए वर्दी वाले 37 ऐसे पुलिस कर्मियों की सूची तैयार की जिनमें 20 सब इंस्पेक्टर 17 पुलिस कांस्टेबल शामिल हैं . वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक ने ऐसे पुलिस कर्मियों को इंटरनेट मीडिया मैनेजमैंट , क्राइम एंड क्रिमिनल ट्रैकिंग नेटवर्क एंड सिस्टम की जिम्मेदारी दी जाएगी . साथ ही उन्हें थाना दिवस अधिकारी का दायित्व सौंपा है .
दुर्भाग्य की बात है कि देश में तमाम पार्टियों की सरकारें बनने के बाद भी आज भी देश में ब्रितानी पुलिसिया सिस्टम काम कर रहा है . पुलिस सुधार को ले कर तमाम बार बातें हुई हैं . लेकिन हालात हर बार ढाक के तीन पात की तरह रहे हैं . मुद्दा यह भी है क्या यह जरूरी है कि जब शासन और सरकार के स्तर से पुलिस सुधार की शुरुआत हो तभी बदलाव होगा . अमानवीय होते पुलिस के चेहरे को मानवीय रूप तो विभाग में रहकर भी अपनी कार्यप्रणाली से किया जा सकता है . सैंया भए कोतवाल से कहावत अब सैंया भए कप्तान अब डर काहे का तक पहुंच गई है . कृपया चमकदार वर्दी को दागदार होने से बचाइए .

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