राकेश कुमार अग्रवाल
सर्वोच्च न्यायालय द्वारा यूपी के चर्चित माफिया मुख्तार अंसारी को यूपी के मुकदमों की सुनवाई के बाबत पंजाब से उत्तर प्रदेश शिफ्ट करने के आदेश के बाद मीडिया की सुर्खियों में कोरोना वायरस से भी बडी खबर माफिया डाॅन से जुडी खबरें रहीं . कानपुर के गैंगस्टर विकास दुबे की उज्जैन से कानपुर लाते समय हुई संदेहास्पद मौत के बाद इलेक्ट्रानिक मीडिया इस अंदेशे में और भी संवेदनशील था कि कहीं फिर से यूपी पुलिस बिकरू कांड के विकास दुबे जैसा हश्र मुख्तार अंसारी का न कर दे . इसलिए पुलिस के काफिले के साथ साथ मीडिया टीमें भी लगातार उनका पीछा कर रही थीं .
यहां एक बडा सवाल यह उठता है कि एक अपराधी इतना बडा कैसे हो जाता है जो सरकार और प्रशासन को धता बताकर समानांतर बेधडक होकर अपनी सत्ता चलाता है . और वही अधिकारी , सत्ता से जुडे लोग जिन्हें ऐसे अपराधी पर कार्यवाही करनी चाहिए वे कोई एक्शन तो लेना दूर उसके बगलगीर हो जाते हैं .
मुख्तार अंसारी को उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड की बांदा जेल में शिफ्ट कर दिया गया है . अब मुख्तार से जुडी खबरें तब फिर सुर्खियां बनेंगी जब उसे सुनवाई के लिए अलग अलग जगह अदालतों में ले जाया जाएगा . मुझे अच्छी तरह याद है जब प्रतापगढ कुंडा के रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया को बसपा सरकार ने बांदा जेल शिफ्ट किया था उस समय मैं एक टीवी चैनल में बांदा में कार्यरत था . उस समय आज की तरह चैनलों की मारामारी इतनी नहीं थी . मेरे सूत्र इतने अच्छे थे कि जब भी राजा भैया को सुनवाई के लिए बांदा से कहीं भी ले जाया जाता था तो मुझे पहले से जानकारी मिल जाया करती थी . मैं राजा भैया के बांदा से रवानगी और वापसी दोनों वक्त बाइट लेता और तत्काल खबर भेजने के लिए भागता था . क्योंकि राजा भैया से जुडी हर खबर की जिज्ञासा भले दर्शकों को हो या न हो लेकिन मीडिया जरूर इसे दर्शकों को परोसने के लिए उतावली रहती थी .
बुंदेलखंड डकैतों का गढ रहा है यहां पर समय समय पर तमाम डकैत गिरोहों का बोलबाला रहा है . बीस साल पहले जब डकैत पप्पू यादव ने बांदा के ही कालिंजर दुर्ग पर दिनदहाडे आठ बरातियों को गोली मारकर छलनी कर दिया था . म.प्र. की सतना पुलिस द्वारा पकडे जाने के बाद डकैत पप्पू यादव को भी बांदा जेल लाया गया था . पप्पू यादव को पुलिस जब भी जेल से कोर्ट में पेशी के लिए लाती थी तब भी मैं कोर्ट परिसर में दस्यु पप्पू यादव से मिलता और उसकी बाइट लेता था . तब भी मन में बस एक ही सवाल उभरता था कि क्या ये वही व्यक्ति है जिसने शासन , प्रशासन और आम जनमानस सभी को हलाकान कर रखा है .
बीते कुछ दशकों से भारतीय मीडिया में एक शब्द खूब इस्तेमाल हो रहा है . वह शब्द है माफिया . अंग्रेजी के पांच वर्णों से मिलकर बना यह शब्द की उत्पत्ति इटली बताई जाती है . जिसका अर्थ होता है मोर्टे अला फ्रांकिया इटैलिना आमेल्ला . अर्थात् इटली में आए हुए फ्रांसीसियों को मार दो . 18 वीं शताब्दी में जब फ्रांसीसियों ने सिसिली पर विजय प्राप्त की तो इटली में क्रांतिकारियों ने अंडर ग्राउण्ड रहते हुुए एक संगठन खडा किया था जिसे माफिया कहा जाता था . इस संगठन ने अपनी आक्रामकता के बल पर फ्रांस के सैनिकों को मौत के घाट उतार कर उसका शासन पूरी तरह खत्म कर दिया था . तभी से माफिया शब्द लोगों के दिलों में जा बसा . बाद में इसे सिसिली और अमेरिका के संगठित अपराधी गिरोहों ने इस्तेमाल किया . तमाम जानकारों का मानना है कि माफिया शब्द का मूल स्रोत अरबी है . अरबी में एक शब्द है मरफुद जिसका अर्थ होता है परित्यक्त या ठुकराया हुआ . अरबी से निकला यह शब्द 1863 में माफिउसी बना फिर 1870 में यह शब्द माफियासो के नाम से जाना गया . 1872 में यह माफिउसू और 1875 आते आते यह शब्द बदल कर माफिया हो गया . 1863 में प्लेसिडो रिज्जोटो ने एक नाटक लिखा था आई माफिउसी डेल्ला विकेरिया . जिसमें प्लेर्मो जेल के कैदियों के एक गुट का वर्णन है .
देश दुनिया में हर इलाकों में कुछ ऐसे असमाजिक तत्व होते हैं जो छोटे मोटे अपराध कर गली मोहल्ले के गुंडे बन जाते हैं . लेकिन इन गुंडों को माफिया कौन बनाता है यह एक बडा सवाल है . गुंडे से माफिया बनने का मतलब है सिस्टम का फेल्योर होना . जब पुलिसिंग और पालिटिक्स फेल होती है . कानून गुंडे के समक्ष बौना हो जाता है . पालीटिक्स ऐसे गुंडे को यूज करने के लिए प्रश्रय देती है . पालिटिशयन के इस मिशन में पुलिस कार्यवाही करने के बजाए उसी का साथ देती है . वही गुंडा एक दिन उसी व्यवस्था और सरकार को चुनौती देने लगता है . जब तक अपराधी और सत्ता के करीबियों का गठजोड रहेगा तब तक माफियाओं के किस्से लोगों के लिए किवदंतियां गढते रहेंगे . सबूतो , साक्ष्यों और गवाहों के अभाव में कोर्ट भी मजबूर रहेंगी . और माफिया भी पनपते रहेंगे .
कौन बनाता है गुंडों को माफिया
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