पृथक बुंदेलखंड राज्य की आवश्यकता क्यों?

112

रिपोर्ट – राकेश कुमार अग्रवाल

आजादी के लगभग 7 दशकों से बुंदेलखंड के निरंतर चला आ रहा आर्थिक , सामाजिक , सांस्कृतिक , औद्योगिक , भाषाई एवं मानवीय पिछड़ापन किसी से छिपा नहीं है. जो उत्तर प्रदेश , मध्य प्रदेश एवं केंद्र सरकारों द्वारा बरती जा रही उपेक्षा एवं सौतेले व्यवहार के कारण कायम है ।

बुंदेलखंड क्षेत्र की अपेक्षा का इससे बड़ा प्रमाण और कोई नहीं हो सकता कि इसके साथ के अन्य क्षेत्र जैसे हरियाणा , हिमाचल प्रदेश , महाराष्ट्र , असम , केरल आदि को आजादी के बाद राज्य का दर्जा दे दिया गया . जबकि राज्यों के पुनर्गठन हेतु 1956 में गठित आयोग की बुंदेलखंड को राज्य बनाने की संस्तुति को भी ठंडे बस्ते में डाल दिया गया ।

बुंदेलखंड राज्य की बात तो छोड़िए कभी भी बुंदेलखंड क्षेत्र के विकास के लिए आनुपातिक बजट तक नहीं दिया गया ।

उदाहरणत: भारत की आबादी में बुंदेलखंड का हिस्सा 1/45 वां है किंतु कभी भी ऐसे संपूर्ण केंद्रीय बजट का 1/45 वां भाग नहीं दिया गया। उत्तर प्रदेश के कुल क्षेत्रफल का हिस्सा 1/10 और आबादी 1/5 है , किंतु अनुपात में बुंदेलखंड संभाग को बजट आवंटित नहीं किया गया । मध्यप्रदेश में बुंदेलखंड का हिस्सा 1/4 तथा आबादी 1/8 है किंतु यहां भी इस अनुपात में कभी भी बजट का 1/4 हिस्सा नहीं दिया गया । जबकि इस क्षेत्र से सरकार को तेंदू पत्ता , ग्रेनाइट , हीरा , पत्थर , सीमेंट पत्थर आदि के उत्खनन से करोड़ों रुपए की आमदनी व राजस्व के रूप में भी करोड़ों रुपए प्राप्त होते हैं ।

उत्तर प्रदेश स्थित बुंदेलखंड से शासन को 375 करोड़ की आय तथा विकास पर केवल 12.0 करोड़ खर्च होता है । इसी प्रकार मध्य प्रदेश स्थित बुंदेलखंड से 550 करोड़ की आय तथा केवल 20 करोड़ व्यय होता है। उदाहरणार्थ केवल झांसी मंडल से बिक्री कर की मद में प्रदेश को सन 1994-95 में 50 करोड़ का राजस्व प्राप्त हुआ जबकि इसी वर्ष झांसी मंडल के विकास हेतु 72 करोड़ की योजना भेजी गई थी जबकि स्वीकृति केवल 12 करोड़ की कुल मिली थी । इसके अतिरिक्त बालू , गिट्टी , आयकर , पथकर , एक्साइज , मनोरंजन , कर आदि से करोड़ों रुपए प्राप्त होता है । सवाल यह है कि कहां जाता है बुंदेलखंड क्षेत्र से उगाहा गया धन ? बुंदेलखंड को सरकारों द्वारा दुधारू गाय समझने की प्रवृत्ति का अंत करने का एक ही उपाय शेष है।

पृथक बुंदेलखंड राज्य का निर्माण

बुंदेलखंड भू-भाग की विशेष परिस्थिति एवं विशेष मानसिकता के अनुरूप यहां रह रहे लोगों के द्वारा ही योजनाओं का निर्माण एवं उनका क्रियान्वयन हो तभी विकास की पृष्ठभूमि एवं वातावरण तैयार किया जा सकता है ।

अलग राज्य बनने पर हमारी अपनी सरकार , अपना बजट और अपने लोग होंगे जो इस क्षेत्र की मानसिकता में रचे बसे रहने वाले लोग होंगे ।

बुंदेलखंड राज्य बनने पर जनाकांक्षाओं के अनुरूप सारे साधनों का उपयोग बुंदेलियों के लिए हो सकेगा . बुंदेलियों के साधन , धन एवं खनिज आदि का उपयोग यहां के लोगोें के लिए हो सकेगा और उनका अन्य क्षेत्रों के विकास के लिए अनाधिकृत दोहन एवं श्रम का शोषण रुक जाएगा । जिस तरह से पंजाबियो को पंजाब , बंगाली को बंगाल , गुजरातियों के लिए गुजरात प्रदेश बना है तो बुंदेलखंड के लोगों के लिए बुंदेलखंड राज्य भी बनना चाहिए।

बुंदेलखंड राज्य और बुंदेलखंड मुक्ति मोर्चा
———– —————— ————-

बुंदेलखंड की दो करोड़ जनता के शोषण उत्पीड़न को मिटा कर सर्वांगीण विकास के उद्देश्य से 17 दिसंबर 1989 को नौगांव में शंकरलाल मेहरोत्रा के संयोजन में “बुंदेलखंड मुक्ति मोर्चा ” की स्थापना हुई . तथा अगस्त 1990 में ओरछा के सातार तट पर इसका विधिवत गठन पूर्व सांसद स्वतंत्रता संग्राम सेनानी लक्ष्मीनारायण नायक के नेतृत्व में हुआ । तब से मोर्चा लगाकर अपने उद्देश्य की पूर्ति में लगा रहा । मोर्चा ने प्रत्येक जनपद में पदयात्राएं कीं व सांकेतिक अनशन करके दोनों प्रदेशों के मुख्यमंत्रियों तथा केंद्रीय मंत्रियों को ज्ञापन दिए ।

25 अप्रैल 1993 को संपूर्ण बुंदेलखंड में टीवी प्रसारण रोको कार्यक्रम के अंतर्गत सैकड़ों बुंदेलखंडियों ने विभिन्न स्थानों पर टीवी प्रसारण रोका एवं गिरफ्तारियां दी । इन आंदोलनकारियों को जेल भेजा गया जिन्हें 5 दिन बाद बिना शर्त रिहा किया गया।

इसके पश्चात 23 जुलाई 1993 को दिल्ली में प्रधानमंत्री को ज्ञापन देने हेतु गए 3 हजार पुरुष एवं महिला आंदोलनकारियों को पुलिस ने गिरफ्तार किया।

23 अगस्त 1993 को दिल्ली में जंतर मंतर पार्क में 6 हजार से अधिक बुंदेलखंडी स्त्री – पुरुषों ने सामूहिक क्रमिक अनशन किया तथा 11 अनशन कारियों ने 5 दिन तक लगातार भूख हड़ताल की।

18 नवंबर 1993 को प्रधानमंत्री के झांसी प्रवास पर उन्हें ज्ञापन दिया गया मोर्चा के युवा कार्यकर्ताओं ने 8 मार्च 1994 को मध्यप्रदेश विधानसभा में पर्चे फेंक कर प्रदेश सरकार का ध्यान अपनी मांग की ओर आकर्षित कराया । इसी दिन मोर्चा के 5 हजार महिला और पुरुष बुंदेलखंडियों ने मध्यप्रदेश विधानसभा का घेराव किया तथा गिरफ्तारी दी।

20 अप्रैल 1994 को ओरछा (मध्य प्रदेश) में मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्रियों से मोर्चा के हजारों कार्यकर्ताओं के प्रतिनिधि मंडल ने मिलने का प्रयास किया। मुलाकात के पूर्व आश्वासन के बाद भी नियंत्रित सैकड़ों कार्यकर्ताओं को पुलिस ने लाठी एवं बंदूकों के बटों से हमला किया किंतु कार्यकर्ताओं ने घेरावकर कठोर चेतावनी दे दी तो दोनों मुख्यमंत्रियों ने माहौल देखकर वार्ता की तिथि निश्चित करके गोलमेज वार्ता का आश्वासन दिया । किंतु कई स्मरण पत्र दिए जाने के बाद भी आश्वासन को पूरा नहीं किया गया।
इसी कारण 11 सितंबर 1994 से मोर्चा ने रेल रोको अनिश्चितकालीन आंदोलन चरणबद्ध तरीके से प्रारंभ किया जिसमें 11 सितंबर को संपूर्ण बुंदेलखंड राज्य में 22 स्थानों पर रेलें रोकी व हजारों लोगों ने गिरफ्तारियां दी । निवाडी एवं झांसी में रेल रोकने के विभिन्न प्रयासों में सैकड़ों लोगों ने बार-बार गिरफ्तारियां दीं और एक-एक सप्ताह जेल में रहे ।
तत्पश्चात झांसी प्रवास काल में राज्यपाल से दिनांक 28 फरवरी को बुंदेलखंड मुक्ति मोर्चा के प्रतिनिधियों ने वार्ता की जिसमें राज्यपाल उत्तर प्रदेश ने बताया कि इस संबंध में वह स्वयं दो बार दोनों मुख्य सचिवों से वार्ता कर चुके हैं तथा मोर्चा की शीघ्र ही वार्ता कराई जाएगी।

Click