मौसम का पूर्वानुमान लगाने वाली एजेंसियां लगता है कि एक बार फिर गच्चा खा गई हैं . एक माह पहले जारी हुए पूर्वानुमान में झमाझम बारिश की भविष्यवाणी व्यक्त की गई थी लेकिन हालात इस कदर विकट हैं कि पानी बरसने का नाम ही नहीं ले रहा है . किसानों की पेशानियों पर बल पडे हुए हैं . सबसे विकट हालात बुंदेलखंड के हैं जहां खेती तो दूर घर गृहस्थी के लिए जल संकट उत्पन्न हो गया है . पानी की जुगाड में लोगों का आधा आधा दिन बीत रहा है . तीन चौथाई खेतों में बुबाई नहीं हो पाई . जिन किसानों ने बुबाई की है उनकी खेतों में खडी फसल मुरझाने लगी है . एक बार फिर से कृत्रिम बारिश कराए जाने की मांग जोर पकडने लगी है .
उत्तर प्रदेश में खरीफ की फसल पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं . क्योंकि पानी बरसाने वाले आसमानी काले बादलों ने फिर से एक बार दगा दे दिया है . जेठ के महीने से भी विकट हालात हैं . गर्मी और उमस पूरे शबाब पर है और पानी है कि बरसने का नाम नहीं ले रहा है . उत्तर प्रदेश के नब्बे फीसदी जिले सूखे की चपेट में हैं . प्रदेश में औसत वर्षा के पांचवे हिस्से के बराबर भी बारिश अभी तक नहीं हुई है जबकि आधा जुलाई निकल गया है . जिससे आशंका जताई जा रही है कि दक्षिण – पश्चिमी मानसून फिर दगा दे गया है . इस समय जब सभी ताल तलैए , पोखर , कुँए , नदी – नाले पानी से लबालब होने चाहिए . चारों ओर हरियाली होना चाहिए . खेतों में किसानी व जवानी होनी चाहिए उन खेतों से धूल उड रही है . बुंदेलखंड में तो दूर दूर तक जहां भी नजर डालिए खेत खाली नजर आ रहे हैं . डेढ साल से कोरोना ने अर्थ व्यवस्था पर ग्रहण लगा रखा था . ऐसे में अगर खरीफ की फसल सूखे के कारण चौपट होती है तो केवल किसान ही नहीं उससे जुडे सभी लोगों पर मार पडना तय है .
प्रदेश के 75 जिलों में से केवल बलिया और महाराजगंज में सामान्य से अधिक बारिश हुई है . जबकि गोरखपुर , देवरिया , सिद्धार्थनगर , प्रयागराज , कन्नौज , जालौन जिलों में लगभग सामान्य वर्षा रिकार्ड की गई है . कासगंज जिले में तो बारिश ही नहीं हुई है . जिससे हालात की भयावहता को सहजता से समझा जा सकता है .
बुंदेलखंड के चित्रकूट धाम मंडल की बात करें तो इस साल खरीफ की फसल के लिए 4, 35, 503 हेक्टेयर रकबा रखा गया था . इसमें से महज 25 फीसदी रकबे में बुबाई और कुछ हिस्से में रोपाई हो पाई है . अधिकांश खेत जुताई के बाद परती पडे हैं . खेतों से धूल उड रही है . खेतों से नमी गायब है . दलहन – तिलहन की बुबाई का वक्त बीता जा रहा है . धान की रोपाई नहीं हो पा रही है . बारिश न होने के कारण मूंगफली , उडद , मूंग , धान , सभी फसलों पर संकट मंडराने लगा है . मध्य जुलाई तक मानसून सीजन की लगभग आधी बारिश हो जाती है लेकिन हालात यह हैं कि आप कहीं भी जाइए आप भ्रम में पड जायेंगे कि यह वर्षा ऋतु है या फिर ग्रीष्म ऋतु . सबसे बडा संकट उन किसानों के सामने मुंह बाये खडा है जिन्होंने बुबाई कर दी थी . चटख तीखी धूप के कारण बोई गई फसल मुरझाने लगी है . तिल , उर्द , मूंग , ज्वार की फसलें खेत में ही नष्ट होने का खतरा बढ गया है ऐसे किसानों की तो जुताई , बुबाई , बीज आदि की लागत और मेहनत दोनों जाया जाने के कगार पर पहुंच गई हैं .
उत्तर प्रदेश को धान , मक्का , ज्वार , उर्द , मूंग , अरहर , मूंगफली व तिल के प्रमुख उत्पादक राज्य में शुमार किया जाता है . सरकारी आँकडे भी गवाही देते हैं कि प्रदेश में लगभग एक तिहाई क्षेत्रफल में इस बार धान बोया जा सका है . जबकि ज्वार की बुबाई का हाल तो और भी विकट है . ज्वार का एक पांचवा हिस्सा ही बोया जा सका है . उत्तर प्रदेश पानी को तरस रहा है जबकि बिहार में आवश्यकता से अधिक हुई बारिश ने वहां भी धान की रोपाई को प्रभावित किया है . यदि अभी भी बारिश नहीं होती है तो न केवल फसल उत्पादन गिरेगा बल्कि मंहगाई भी बढेगी . किसान – काश्तकार फिर सूखा राहत के लिए सरकार की तरफ टकटकी लगाएगें . लेकिन सबसे विकट हालात बुंदेलखंड के हैं . जहां पर पेयजल संकट भी है . लम्बे अरसे से बुंदेलखंड में कृत्रिम वर्षा कराए जाने पर सरकार विचार करती आई है . लेकिन जिस तरह की मानसून की स्थितियां पैदा हो गई हैं उससे बुंदेलखंड में कृत्रिम बारिश कराए जाने पर भी सरकार के लिए विचार करने का समय आ गया है . सूखे की आहट ने कोरोना के बाद एक और नई आपदा से निपटने को लेकर तैयार रहने को सतर्क कर दिया है .
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राकेश कुमार अग्रवाल