नेताजी सुभाषचंद्र बोस की 125वीं जयंती मनाई गई

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संपादकीय

भारत का राष्ट्रीय चरित्र हमारे महान वीरों, पूर्वजों और स्वतंत्रता के पुजारियों के पुरुषार्थ से पोषित समस्त विश्व के लिए सदैव आकर्षण का विषय रहा है। समय-समय पर यँहा की मिट्टी में नररत्नो ने जन्म लिया है।भारत के ओडिसा राज्य के कटक में 23 जनवरी 1897 को सुभाष चन्द्र बोस का जन्म संपन्न बंगाली परिवार में मशहूर वकील रायबहादुर जानकी नाथ बोस और प्रभावती देवी की कोख से हुआ था। सुभाष 14 भाईबहनों में 9वे थे और बचपन से निर्भीकता, तीक्ष्णबुद्धि एवं नेतृत्व कुशलता के गुणो से लबरेज थे। उनका बचपन संस्कारमय कर्म प्रणाली से गुजरा। उन्होंने देखा कि उनके पिता ने रायबहादुर की उपाधि अंग्रेजों के बंगाल में दमन के कारण छोड़ दी है और उनके भाई शरत चंद्र भी उन्हें देशप्रेम के लिए प्रेरित करते थे। उनकी प्रारम्भिक शिक्षा स्टीफेन कॉलेजिएट हाई स्कूल, कटक में हुई इंटरमीडिएट में वे मेरिट में प्रदेश में प्रथम आये थे। फिर दर्शनशास्त्र में स्नातक की डिग्री स्कोटिश कॉलेज कोलकाता से की।सिविल सर्विसेज की तैयारी के लिए सुभाष इंग्लैंड के कैम्ब्रिज में पढ़ने गए और इंडियन सिविल सर्विसेज में चौथा स्थान प्राप्त किया।उनके लक्ष्य में निरंतरता, निश्चितता और नियमितता थी, अभ्यास और वैराग्य की कसौटी पर कसा।उस वक़्त भारतीयों के लिए परीक्षा में पास होना तो दूर उंसमे बैठना भी एक चुनौती था। दो साल तक काम करने और तत्कालीन भारत की परिस्थितियों, जलियांवाला नरसंहार और भारत की आज़ादी के लिए काम करने के लिए अपने पद से स्तीफा दे दिया। देशप्रेम व स्वधर्म पालन के लिए देशसेवा द्वारा ही कार्यरत रहने की प्रतिज्ञा ली उनका ध्येय व प्रणाली सिर्फ देशप्रेम था। वे रामकृष्ण परमहंस,स्वामी विवेकानंद, अरबिंदो घोष, चितरंजन दास मुंशी, तिलक और लाला लाजपतराय से बहुत प्रभावित थे। 23 वर्ष में गांधी जी से प्रभावित होकर कांग्रेस से जुड़े देश के अंग्रेजी विरोधी आंदोलन को हवा दी , 1928 में साइमन कमीशन का विरोध किया, और हरिपुरा अधिवेशन 1938 में इसके राष्ट्रीय अध्यक्ष का पदभार संभाला, राष्ट्रीय योजना समिति का गठन किया, लेकिन गाँधीजी के प्रत्याशी पट्टाभि सितरंमैय्या को हराने को लेकर गाँधीजी ने अपनी निजी हार माना, और आज़ादी को लेकर भी दोनों के विचारों में मतभेद था,इसलिये सुभाष का1939 में कांग्रेसी विचारधारा से मोहभंग हो गया और फॉरवर्ड ब्लॉक नई पार्टी बनाई। द्वितीय विश्वयुद्ध में सुभाष ने जर्मनी और जापान की सहायता से अंग्रेजों को भारत से भागने का बीड़ा उठाया और ब्रिटीश साम्राज्य की चूले हिला दी। सिंगापुर से आज़ाद हिंद फौज खड़ी करके देश को एक सफल सैनिक नेतृत्व दिया।और जापान की सहायता से अंडमान निकोबार के द्वीप जीत लिए जिनका नाम आज़ाद द्वीप और स्वराज द्वीप रखा। रंगून में एक कार्यक्रम में उन्होंने देशवासियों के आव्हान किया और कहा कि ‘तुम मुझे खून दो में तुन्हें आज़ादी दूंगा’। जिससे पूरे देश की रगों मे आज़ादी का उबाल हिलोरें मारने लगा।महिलाओं ने अपने गहने उतार के दे दिए। सुभाष में कष्टों को हंसते हंसते स्वेच्छापूर्वक झेलने की गजब की संघर्ष प्रियता थी। अंग्रेज़ सरकार उनको किसी भी कीमत पर पकड़ने को तत्पर थी फिर भी सुभाष उनकी आँखों में धूल झोंकते हुए भेष बदलकर अफगानिस्तान,रुस से होते जर्मनी पंहुच गए और नाज़ी पार्टी के हिटलर से मुलाकात की और भारत की आज़ादी के लिए समर्थन मांगा। असंख्य संकुचितता ओ व मानसिक दुर्बलता ओ से देश को आगे लाने का बीड़ा उन्होंने उठाया, सादगी, कर्तव्यपरायणता के मार्ग पर चलना सिखाया और निराशा का अंधकार जब जब छाया तब तब ज्यादा उत्साह से पुनः जीवटता के बल पर पुनः कर्म में प्रवृत्त होना बताया। सुभाष ने महसूस किया कि लम्बे समय से चली आ रही गुलामी पहले मुगलों फिर अंग्रेजों के कारण जनमानस में एक हीनता, आलस्य एवं प्रमादी आ गयी है जिसे शिक्षा, कुशल नेतृत्व और सामाजिक चेतना की आवश्यकता है, उन्होंने अमर्यादित जीवन को सदैव पतन का कारण माना और नागरिकों से मर्यादित जीवन की मांग की, कहा ली पूरा देश एक ही परिवार है सबको मिलकर आगे आना होगा, देश को जागना ही होगा।इस तरह नागरिकों को सामाजिक कर्तव्यों और सामाजिक उपयोगिता का ज्ञान कराकर उत्थान के लिए प्रेरित करके राजनीतिक क्रांति ला दी।
सुभाष चंद्र बोस ने अपनी आभा से न सिर्फ भारतवर्ष वरन समस्त जगत को आलोकित किया, हमें कर्तव्यबोध, अनुशासन, आत्मप्रेरणा की शिक्षा दी।भारत को इसका युग धर्म वापस याद दिलाया और अब भारत आत्मगौरव के साथ आगे बढ़ रहा है विश्वगुरू बनने की ओर अग्रसर है, जरूरत है इन महापुरुषों के जीवन का अनुकरण, अनुसरण और आचरण किया जाए जिससे देश के लिए ज्वलंत निष्ठा पैदा हो सके। भारत सरकार ने इस वर्ष इंडिया गेट पर सुभाष चंद्र बोस की आदमकद 28 फ़ीट की मूर्ति लगाने का बहुत ही सराहनीय प्रयास किया है और जन्मदिन ‘पराक्रम दिवस’ से ही गणतंत्र दिवस उत्सव शुरुआत करने का फैसला किया है जो हर साल 24 जनवरी से होता था, यह प्रयास एक वीर सैनिक, महान योद्धा, उत्कृष्ट सेनापति और कुशल राजनीतिज्ञ के लिए एक विनम्र श्रद्धांजलि होगी।
महात्मा गांधी को राष्ट्रपिता भी सबसे पहले सुभाष ने ही पुकारा था।सुभाषचंद्र बोस की कुछ महत्वपूर्ण उक्तियाँ है: याद रखिये सबसे बड़ा अन्याय अन्याय सहना, गलत के साथ समझौता करना है। संघर्षों ने मुझे मनुष्य बनाया, मुझमे आत्मविश्वास उत्पन्न हुआ जो पहले मुझमे नही था। उच्च विचारों से कमजोरियां दूर होती हैं, हमें हमेशा उच्च विचार पैदा करते रहने चाहिए।सफलता हमेशा असफलता के स्तंभ पर खड़ी होती है इसलिए किसी को भी असफलता से घबराना नही चाहिए। जिसके अंदर सनक नही होती, वह कभी महान नही बन सकता। अगर जीवन मे संघर्ष न रहे हो, विपत्तियों का सामना ना करना पड़े तो जीवन का आधा स्वाद ही समाप्त हो जाता है। सफलता दूर हो सकती है पर वो मिलती जरूर है। अपनी ताकत पर भरोसा रखो, उधार की ताकत तुम्हारे लिए घातक है। आशा की कोई न कोई किरण होती है, जो हमे कभी जीवन से भटकने नही देती।
सुभाष चंद्र बोस ने 21 ऑक्टोबर 1943 कोआर्जी हुकूमते आज़ादेहिन्द की स्थापना की, आज़ाद हिंद फौज और बैंक की भी स्थापना की। इसको 10 देशों का समर्थन भी हासिल हुआ। 4 जुलाई 1943 को सिंगापुर में भारतीय स्वाधीनता सम्मेलन का आयोजन किया। अपने क्रांतिकारी जीवन मे सुभाष 11 बार जेल गए। गुलाम भारत के आज़ाद फौज़ी सुभाष द्वारा ‘दिल्ली चलो’ और ‘जय हिंद’ का नारा राष्ट्रीय नारा बन गया। सुभाष ने आस्ट्रिया मूल की एमिली शेंकल से शादी की थी और उनकी एक पुत्री अनिता बोस जो जर्मनी में रहती है। उनकी मृत्यु पर अभी भी रहस्य बरकरार है कि लगातार ताकतवर होते 18 अगस्त 1944 को नेताजी के विमान का मंचूरिया जाते हुए ताइपे में दुर्घटनाग्रस्त होना या लापता होना उनके विरुद्ध षड्यंत्र की पुष्टि करता है, 75 वर्ष इस घटना को हो चुके है फिर भी इतने आयोग इस प्रश्न को हल नही कर पाए है, जो स्थान एक सूची हृदय, निर्मलमना, देश के प्रणेता, युग पुरूष, प्रखर चिंतक, महामनीषी को मिलना चाहिए था वो अभी तक नही मिल सका। कुछ प्रश्न अनुत्तरित है जो भविष्य के गर्भ में छिपे हुए हैं।

डॉ कमल सिंह राठौड़ रिपोर्ट

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