बीकापुर, अयोध्या। बीकापुर क्षेत्र के खौंपुर-कोदैला में आयोजित सप्त दिवसीय श्रीमद्भागवत कथा का सप्तम पुष्प विसर्जित करते हुए कथाव्यास महंत दिनेशाचार्य जी महाराज ने बताया कि कथा केवल मनोरंजन के लिए नहीं अपितु मनोमंथन के लिए है।
हृदय को द्रवित और नेत्रों को सजल करने के लिए हैं। प्रभु की कथा श्रवण कर यदि आपका ह्रदय द्रवित नहीं हुआ, नेत्र सजल नहीं हुए, प्रभु के प्रति आपका प्रेम दृढ़ नहीं हुआ तो समझिए आपने कथा सुनी ही नहीं।
निर्धन होना अपराध नहीं किंतु निर्धनता में ईश्वर को भूलना अपराध हैlसुदामा जी निर्धन थे केवल इसलिए भगवान ने उनकी सेवा नहीं की बल्कि निर्धन होते हुए भी हृदय में भगवान के प्रति भक्ति, प्रेम था जिसके चलते भगवान श्री कृष्ण ने सुदामा जी का सम्मान किया क्योंकि भगवान किसी के धन वैभव और पद को नहीं देखते भगवान तो भक्तों का हृदय ही देखते हैं जिसका हृदय निर्मल होता है वह भगवान की कृपा प्राप्त करता है।
व्यास महाराज ने बताया कि सुदामा जी प्रारब्ध के चलते निर्धन जरूर थे लेकिन एक ब्राह्मण का जो सबसे बड़ा धन है ज्ञान उससे सुदामा जी परिपूर्ण थे सुदामा जी के लिए शब्द आया है ब्रह्मवित्तमः सुदामा जी ज्ञानी थे। ज्ञान का फल केवल पैसा कमाना नहीं सच्चा ज्ञानी वह है जो ईश्वर के प्रति अनुराग रखता हैl
ब्राह्मण का धन केवल भिक्षा नहीं, वास्तव में” बाभन को धन उत्तम शिक्षा” है। कथा को विराम देते हुए कथाव्यासजी ने बताया की भागवत की कथा से परीक्षित महाराज का मोक्ष को देख कर ब्रह्मा जी को आश्चर्य हुआ मुक्ति देने वाले सभी शास्त्रों का ब्रह्मा जी ने तुलनात्मक अध्ययन किया और निर्णय किया कि श्रीमद्भागवत मुक्तिशास्त्र है।
मुख्य यजमान उमाशंकर तिवारी,प्रधान कृष्णानंद दुबे,संदीप तिवारी,मनोज तिवारी,अरुण सिंह,विजय शंकर, कृष्ण कुमार,राम नारायण तिवारी एडवोकेट, बृजभूषण,चंद्र भूषण आदि गणमान्य लोग उपस्थित रहे।
रिपोर्ट- मनोज कुमार तिवारी