चित्रकूट में मौजूद है श्रीराम का प्रसाद “कामदगिरि”

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संदीप रिछारिया (वरिष्ठ संपादक )

आज सम्पूर्ण जगत का कण-कण केवल श्री राम के जन्मोत्सव की खुशियों में लीन है। ऐसे में हम आपके लिए लाए हैं चित्रकूट की महिमा का वह गान जहां पर श्रीराम का स्वरूप आज भी दिव्यता के साथ मौजूद है। हर अमावस्या पर यहां पर आने वाले लाखों भक्त यह मानते हैं कि वास्तव में श्रीराम के स्वरूप में श्रीकामदगिरि मौजूद है। इसकी पुष्टि स्वयं तुलसीदास जी महराज यह लिखकर ‘कामदगिरि भे राम प्रसादा, अवलोकत अपहरद विषादा‘ या फिर चित्रकूट सब दिन बसत प्रभु सिय लखन समेत जैसे दर्जनों दोहे इस बात का प्रमाण देते हैं कि राम की चरणरज से स्पर्शित इस भूमि के कण-कण में श्रीराम का वास है।

चित्रकूट वह स्थान है जहाँ पर श्रीराम का आगमन न केवल मर्यादा पुरुषोत्तम के रूप में हुआ बल्कि कलियुग में उन्होंने एक नही दो- दो बार गोस्वामी तुलसीदास जी महाराज को दर्शन दिए। यानी परमात्मा पूर्ण पुरुषोत्तम मर्यादा के स्वरूप श्री राम ने पहली बार वनवास काल में यहां पर आकर लंबा समय बिताया तो दूसरी बार संत तुलसीदास को दर्शन देने के लिए चित्रकूट ही चुना। मूल गुसाई चरित्र में संत तुलसीदास जी ने इसका वर्णन बड़ी ही खूबसूरती से किया है। ‘सुखद अमावस मौनिया, बुध सोलह सौ सात, जा बैठे तेहि घाट पै, बिरही होतहि पात। प्रकटेउ राम सुजान कहेउ देहु बाबा मलय, शुक धरू बपु हनुमान, पढेउ चितावनि दोहरा। चित्रकूट के घाट पै, भई संतन की भीड़, तुलसीदास चंदन घिसैं तिलक देत रघुवीर। महाभारत भी इस बात की पुष्टि करती है‘ चित्रकूट शुभे क्षेत्रे श्री राम पद भूषिते। तपष्चार विधिवत धर्मराजे युधिष्ठिरः।

हम आपको यह बताते हैं कि श्री राम ने चित्रकूट आकर कैसे और कहां पर निवास किया उनकी पर्णकुटी कहां पर बनी। इसका उल्लेख बाबा तुलसीदास ने राम चरित मानस में कुछ इस प्रकार किया है।

चित्रकूट महिमा अमित कही महामुनि गाइ।
आइ नहाए सरित बर सिय समेत दोउ भाई।

भावार्थ-महामुनि वाल्मीकिजी ने चित्रकूट की अपरिमित महिमा बखान कर कही। तब सीताजी सहित दोनों भाइयों ने आकर श्रेष्ठ नदी मंदाकिनी में स्नान किया।

रघुबर कहेउ लखन भल घाटू। करहु कतहुँ अब ठाहर ठाटू।
लखन दीख पय उतर करारा। चहुँ दिसि फिरेउ धनुष जिमि नारा।

श्री रामचन्द्रजी ने कहा- लक्ष्मण! बड़ा अच्छा घाट है। अब यहीं कहीं ठहरने की व्यवस्था करो। तब लक्ष्मणजी ने पयस्वनी नदी के उत्तर के ऊँचे किनारे को देखा और कहा कि इसके चारों ओर धनुष के जैसा एक नाला है।

नदी पनच सर सम दम दाना। सकल कलुष कलि साउज नाना।
चित्रकूट जनु अचल अहेरी। चुकइ न घात मार मुठभेरी।

नदी (मंदाकिनी) उस धनुष की प्रत्यंचा (डोरी) है और शम, दम, दान बाण हैं। कलियुग के समस्त पाप उसके अनेक हिंसक पशु (रूप निशाने) हैं। चित्रकूट ही मानो अचल शिकारी है, जिसका निशाना कभी चूकता नहीं और जो सामने से मारता है।

अस कहि लखन ठाउँ देखरावा। थलु बिलोकि रघुबर सुखु पावा।
रमेउ राम मनु देवन्ह जाना। चले सहित सुर थपति प्रधाना।

ऐसा कहकर लक्ष्मणजी ने स्थान दिखाया। स्थान को देखकर श्री रामचन्द्रजी ने सुख पाया। जब देवताओं ने जाना कि श्री रामचन्द्रजी का मन यहाँ रम गया, तब वे देवताओं के प्रधान थवई (मकान बनाने वाले) विश्वकर्मा को साथ लेकर चले।

कोल किरात बेष सब आए। रचे परन तृन सदन सुहाए।
बरनि न जाहिं मंजु दुइ साला। एक ललित लघु एक बिसाला।

सब देवता कोल-भीलों के वेष में आए और उन्होंने (दिव्य) पत्तों और घासों के सुंदर घर बना दिए। दो ऐसी सुंदर कुटिया बनाईं जिनका वर्णन नहीं हो सकता। उनमें एक बड़ी सुंदर छोटी सी थी और दूसरी बड़ी थी।यह हमारी एक छोटी सी भेंट जो यह सिद्व करती है कि हमारे वनवासी राम आज भी चित्रकूट में न केवल हमारे मंदिरों में बलिक हमारे दिलों में भी विराजते हैं। श्री राम का धरती पर आगमन सभी को सुख देने के लिए हुआ था। हमें चाहिए कि हम आज के दिन उनके मर्यादित स्वरूप का स्मरण कर राम में रमने व चिंतन करने के काम में लगें कि वर्तमान समय हम कोरोना से पीडित मानवता की सेवा में अपना क्या योगदान दे सकते हैं।

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