हमारे महान ऋषि गौतम

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देवराज इंद्र को शापित करने वाले ऋषि गौतम

  • सतयुग से कलयुग तक मिलते हैं मौजूदगी के प्रमाण

  • ब्रहमा जी पुत्री अहिल्या से हुआ था विवाह

संदीप रिछारिया

धर्मक्षेत्रे। सप्त़ऋषियों की श्रंखला के विशेष ़महर्षि गौतम सप्तर्षियों में से एक हैं। वे वैदिक काल के एक महर्षि एवं मन्त्रद्रष्टा थे। ऋग्वेद में उनके नाम से अनेक सूक्त हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार पत्नी अहिल्या थीं जो प्रातःकाल स्मरणीय पंच कन्याओं गिनी जाती हैं। अहिल्या ब्रह्मा की मानस पुत्रीं थी जो सुंदरता में अद्वितीय थी। हनुमान की माता अंजनी गौतम ऋषी और अहिल्या की पुत्री थी। दैत्य गुरु शुक्राचार्य ने देवताओं द्वारा तिरस्कृत होने के बाद अपनी दीक्षा गौतम ऋषि से पूर्ण की थी। ऋषियों के ईष्यावश गोहत्या का झूठा आरोप लगाने के बाद बारह ज्योतिर्लिंगों मैं महत्वपूर्ण त्रयम्बकेश्वर महादेव नाशिक भी गौतम ऋषि की कठोर तपस्या का फल है जहाँ गंगा माता गौतमी अथवा गोदावरी नाम से प्रकट हुईं।
उत्तरप्रदेश की गोमती नदी भी ऋषि गौतम के ही नाम से विख्यात है।

इसके अतिरिक्त राजस्थान के प्रतापगढ़ जिले में स्थित, गौतमेश्वर महादेव तीर्थ में स्थित मंदाकिनी गंगा कुंड के बारे में भी मान्यता है कि इसी कुंड में स्नान करने के पश्चात महर्षि गौतम को गौ हत्या के दोष से मुक्ति मिली थी इसके पश्चात महर्षि गौतम ने यहाँ महादेव की आराधना करके एक स्वयंभू शिवलिंग प्रकट किया था जो आज भी उन्ही के नाम पर गौतमेश्वर महादेव के नाम से जाना जाता है।

वैसे तो अहिल्याजी के बारे रामायण में वर्णन आता है कि भगवान राम के पांव लगाते ही वो पत्थ‍र से इंसान बन गई थी। लेकिन वो पत्थर कैसी बनी और अहिल्या कौन थी।

ब्रंह्मा से हुई उत्पत्ति

भगवान ब्रह्मा ने अहिल्या‍ की उत्पत्ति उच्चं गुणों के साथ की थी। लेकिन वो ऐसे गुणवान व्यक्ति की भी तलाश कर रहे थे। जो उनके बाद अहिल्या की देखभाल कर सकें। इसलिए, उन्होंने महर्षि गौतम को चुना, जिनके पास बहुत सारी बुद्धिमत्ता और ज्ञान थी। इसलिए उन्होंने महर्षि गौतम को अहिल्या के बड़े होने पर अपने साथ ले जाने के लिए कहा था।

कमधेनु की प्रसव में मदद से रीझ गईं अहिल्या
तब भगवान ब्रह्मा ने एक शर्त रखी कि जो भी सबसे पहले ब्रहमांड का एक चक्कर लगाकर आयेगा उससे ब्रह्मा अहिल्या की शादी करवा देंगे। सभी देवता और ऋषिवर दुनिया का चक्कर लगाने निकल जाते है। तभी एक घटना घटती है अहिल्या ऋषि गौतम को कामधेनु गाय के प्रसव कराने में मदद करते हुए देखती है। वो उस गाय के प्रति उनका समर्पण और प्रेम देखकर उनसे शादी करने की इच्छा जताती है।

अहिल्या और महर्षि गौतम की शादी

इस तरह अहिल्या और महर्षि गौतम की शादी हो जाती है लेकिन सभी ऋषिवर और देवता इस शादी से बुरी तरह जल जाते है। लेकिन कहते हैं कि इंद्र देवता को अहिल्या बहुत पसंद थी। ब्रह्मा जी ने जब इस अहिल्या को बनाया था, तभी से इंद्र अहिल्या के पीछे पागल थे। किन्तु इंद्र देवता को यह स्त्री जब नहीं मिली तो उन्हों अपनी कामवासना शांत करने के लिए एक जाल रचा था और उस जाल में वह खुद फँस गये थे।

इंद्र का इंद्रजाल

एक बार गौतम ऋषि की अनुपस्थिति में देवराज इन्द्र उनका वेश लेकर आश्रम में प्रवेश कर, अहिल्या के सामने प्रणय निवेदन करते हैं। अहिल्या, इन्द्र की असलियत नही जान पाईं और उन्हें गौतम ऋषि मानकर उनके साथ संबंध स्थापित करती हैं।

गौतम ऋषि का क्रोध

जब गौतम ऋषि ने इन्द्र को अपने ही वेश में अपने आश्रम से निकलते हुए देखा इसे इंद्र व अहिल्या का प्रेम संबंध समझे। क्रोधावेग में उन्होंने अपनी पत्नी अहिल्या को पत्थर बन जाने का श्राप दिया। गलती न होने के कारण भी उन्होंने ऋषि का श्राप स्वीाकार करके पूरा जीवन पत्थर बनकर गुजार दिया। जब ऋषि का गुस्सा शांत हुआ और उन्हें अपनी गलती का अहसास हुआ तो उन्होंने अहिल्या को आर्शीवाद दिया कि भगवान श्रीराम के चरणों को छू‍कर वो इस श्राप से मुक्त हो जाएंगी।

इंद्र के शरीर में निकल आई हजार योनियां

क्रोध से भरकर गौतम ऋषि ने इन्द्र से कहा ‘मूर्ख, तूने मेरी पत्नी का स्त्रीत्व भंग किया है। उसकी योनि को पाने की इच्छा मात्र के लिए तूने इतना बड़ा अपराध कर दिया। यदि तुझे स्त्री योनि को पाने की इतनी ही लालसा है तो मैं तुझे श्राप देता हूं कि अभी इसी समय तेरे पूरे शरीर पर हजार योनियां उत्पन्न हो जाएगीं। कुछ ही पलों में श्राप का प्रभाव इन्द्र के शरीर पर पड़ने लगा और उनके पूरे शरीर पर स्त्री योनियां निकल आई। ये देखकर इन्द्र आत्मग्लानिता से भर उठे। उन्होंने हाथ जोड़कर गौतम ऋषि से श्राप मुक्ति की प्रार्थना की। ऋषि ने इन्द्र पर दया करते हुए हजार योनियों को हजार आंखों में बदल दिया।
इस वजह से भगवान नहीं माने जाते है इंद्र
इन्द्र को ‘देवराज की उपाधि देने के साथ ही उन्हें देवताओं का राजा भी माना जाता है लेकिन उनकी पूजा एक भगवान के तौर पर नहीं की जाती। इन्द्र द्वारा ऐसे ही अपराधों के कारण उन्हें दूसरे देवताओं की तुलना में ज्यादा आदर- सत्कार नहीं दिया जाता

राम द्वारा उद्धार

गुरू विश्वामित्र के साथ विचरण करते हुए राम ने गौतम ऋषि के सुनसान पड़े आश्रम पहुंचे। जहां उन्हें अहिल्या रूपी पत्थर दिखा। विश्वामित्र ने राम को सारी घटना बताई, जिसे सुनकर राम ने अहिल्या का उद्धार किया।

– संदीप रिछारिया

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