KARNATAKA CHUNAV: कर्नाटक असेंबली चुनाव में कुल 72.67 फीसदी वोट पड़े

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KARNATAKA CHUNAV: कर्नाटक विधानसभा चुनाव में कुल 72.67% वोट पड़े। इलेक्शन कमीशन ने आंकड़े जारी किए। हालांकि वोटिंग परसेंट के आंकड़े गुरुवार सुबह तक अपडेट होंगे। वहीं पिछले 2018 विधानसभा चुनाव में 72% वोटिंग हुई थी। कर्नाटक में पहली बार 94,000 से अधिक सीनियर सिटिजन्स और दिव्यांगजनों ने घर से वोट डाला। कर्नाटक की 224 सीटों पर 2614 उम्मीदवार मैदान में हैं।

वोटिंग के दौरान तीन जगह हिंसा हुई। पुलिस ने बताया कि विजयपुरा के बासवाना बागेवाड़ी तालुक में लोगों ने कुछ EVM और VVPAT मशीनों को तोड़ डाला। पोलिंग अफसरों की गाड़ियों में भी तोड़फोड़ की गई। यहां अफवाह उड़ी थी कि अधिकारी मशीनें बदलकर वोटिंग में गड़बड़ी कर रहे थे।

कर्नाटक की 224 विधानसभा सीटों पर वोटिंग के लिए लंबी कतारें लगी रहीं। 10 मई को हो रही वोटिंग के लिए चुनाव आयोग और प्रशासन ने पूरी तैयारी की थी। एक चरण में होने वाले इस इलेक्शन के नतीजे 13 मई को आएंगे।

इस बार कर्नाटक भर में वोटिंग के लिए 5.2 करोड़ पात्र मतदाता और 58,282 मतदान केंद्र हैं। इनमें से 9.17 लाख मतदाता पहली बार मतदान करेंगे। चुनाव में 2,613 उम्मीदवार हैं, जिनमें से 2,427 पुरुष और 185 महिलाएं हैं। बाकि एक ‘अन्य’ श्रेणी से है।

KARNATAKA CHUNAV: बता दें कि कर्नाटक विधानसभा चुनाव के अलावा 4 राज्यों में कुछ सीटों पर उपचुनाव को लेकर भी वोटिंग होगी। जिन सीटों पर उपचुनाव होने हैं, उनमें यूपी की स्वार टांडा सीट और छानबे सीट, ओडिशा में झारसुगुड़ा, पंजाब की जालंधर लोकसभा सीट और मेघालय की सोहियोंग विधानसभा सीट शामिल हैं। पंजाब में आम आदमी पार्टी, कांग्रेस, अकाली दल और बीजेपी के बीच मुकाबला यानी की चारकोणीय लड़ाई की संभावना है। वहीं, यूपी में दोनों विधानसभा सीट पर सपा और अपना दल (एस) के बीच कांटे की लड़ाई होनी है। इसी तरह से ओडिशा और मेघालय में भी काफी दिलचस्प मुकाबला होने वाला है।

KARNATAKA CHUNAV: कर्नाटक राज्य में कांग्रेस, बीजेपी और जेडीएस की स्थिति पर एक नजर दौड़ाएं तो कर्नाटक में कांग्रेस ही ऐसी पार्टी है, जिसकी उपस्थिति राज्य भर में है। हर इलाके में कांग्रेस का अपना आधार है। यही वजह है कि कम सीटें पाने के बाद भी कांग्रेस का वोट प्रतिशत अधिक रहता है। साल 2018 में भी पार्टी को बीजेपी से दो फीसदी वोट अधिक मिले थे, लेकिन सीटें 26 कम थीं। तब कांग्रेस को सभी क्षेत्रों में सीटें तो मिलीं, मगर कोई एक ऐसा क्षेत्र नहीं मिला, जहां वह कुछ इस तरह क्लीन स्वीप कर सके।

साल 2018 के असेंबली चुनाव में JDS ने मैसूर क्षेत्र में सबसे ज्यादा सीटें हासिल की थीं। वहीं बीजेपी ने कोस्टल इलाके में क्लीन स्वीप किया था। इस बार भी ऐसा लग रहा है कि कांग्रेस वर्ष 2018 की स्थिति में है। हालांकि पार्टी ये दावा कर रही है कांग्रेस कोस्टल और मैसूर क्षेत्र में अबकी बार अच्छा करेगी।

साथ ही कांग्रेस ये दावा कर रही है कि बेंगलुरु के शहरी इलाके में भी कांग्रेस को पिछली बार के मुकाबले अधिक सीटें मिलेंगी।
KARNATAKA CHUNAV: अब जानिए कि कांग्रेस का बीजेपी या JDS की तरह कोई ऐसा मजबूत पॉकेट क्यों नहीं है? इस बारे में जानकार कहते हैं कि मैसूर में JDS इसलिए बेहतर करती है, क्योंकि उस इलाके में वोक्कालिगा बड़ी संख्या में हैं, जो पार्टी को बड़ी बढ़त देने में मदद करते हैं। ऐसे ही कोस्टल इलाके में बीजेपी को सांप्रदायिक ध्रुवीकरण का लाभ मिलता है। ऐसे में कांग्रेस के लिए इस चुनाव में भी चुनौती यही है कि उसे हर क्षेत्र में अच्छा प्रदर्शन करना होगा।

वैसे कांग्रेस को इस बार मुंबई-कर्नाटक क्षेत्र और सेंट्रल कर्नाटक में बेहतर प्रदर्शन करने की उम्मीद है। मगर 17 फीसदी तादाद वाले लिंगायत और 14 फीसदी संख्या वाले वोक्कालिगा जिस तरह से किसी एक पार्टी के समर्पित वोटर हैं, कांग्रेस के पास ऐसा कोई समर्पित वोट बैंक नहीं है। मुसलमानों का वोट कांग्रेस को मिलता तो है, लेकिन वह राज्य भर में बिखरा हुआ है। हालांकि पार्टी को ओबीसी, एससी, एसटी और ईसाई समुदायों का वोट मिलता रहा है, जिससे वह राज्य की लगभग हर सीट पर रेस में बनी रहती है।

KARNATAKA CHUNAV: भाजपा की बात करें तो बीजेपी के लिए इस चुनाव में नए नेतृत्व की दुविधा है। मुख्यमंत्री बोम्मई पार्टी का चेहरा जरूर हैं और पार्टी ने यह संकेत भी दिया कि अगर बीजेपी सत्ता में वापस आती है तो वही मुख्यमंत्री रहेंगे। लेकिन इसके पीछे बड़ा फैक्टर उनका लिंगायत समुदाय से आना है। पार्टी के लिए कड़वी सचाई यह है कि अब भी 80 साल के बीएस येदियुरप्पा उसके सबसे बड़े नेता बने हुए हैं।

भारतीय जनता पार्टी ने चुनाव प्रचार की शुरुआत में नए नेतृत्व की बदौलत चुनावी जंग लड़ने की कोशिश तो ज़रूर की, लेकिन जैसे-जैसे मतदान की तारीख नज़दीक आती गई, येदियुरप्पा पर पार्टी की निर्भरता बढ़ती गई। कहा तो यह भी गया कि बाद में टिकट वितरण तक में येदियुरप्पा की ही चली। इसी कारण बीजेपी की नई और पुरानी पीढ़ी के बीच विभाजन भी दिखा और इसे लेकर सार्वजनिक बयानबाजी भी हुई।
दरअसल, पार्टी के मुख्य रणनीतिकार और सीनियर नेता बीएल संतोष ने कर्नाटक में सीटी रवि, तेजस्वी सूर्या जैसे अपेक्षाकृत नए नेताओं को सामने लाने की कोशिश की। यहां तक कह दिया गया कि अगर बीजेपी जीती तो सीटी रवि सीएम पद के दावेदार भी हो सकते हैं। लेकिन सच यही है कि येदियुरप्पा की पार्टी पर पकड़ ज़रा भी कमज़ोर नहीं हुई है। जगदीश शेट्टार जैसे कद्दावर लिंगायत नेता के पार्टी छोड़ने से चिंता और बढ़ी। बीजेपी के पास दूसरे समुदाय से जुड़े उतने प्रभावशाली नेता नहीं हैं। यही वजह है कि अंत में आकर बीजेपी को नरेंद्र मोदी के प्रयास पर ही निर्भर रहना पड़ा।

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