कारसेवकपुरम में गुरु तत्व श्रीराम गुरु पूर्णिमा महोत्सव
अयोध्या। अंतर्राष्ट्रीय सिद्धाश्रम साधक परिवार (निखिल मंत्र विज्ञान) के सौजन्य से भगवान श्रीराम की पावन नगरी अयोध्या के कारसेवक पुरम में दो दिवसीय गुरु तत्व श्री राम गुरु पूर्णिमा महोत्सव का शुभारंभ रविवार को गणपति पूजन एवं गुरु पूजन के साथ हुआ।
इस अवसर पर देश- विदेश से हजारों की संख्या में आए निखिल शिष्यों एवं साधकों के बीच अपने संदेश में गुरुदेव श्री नंदकिशोर श्रीमाली ने गुरु एवं शिष्य के संबंधों की विस्तृत चर्चा की और गुरु की महिमा तथा उनकी मर्यादा का विस्तार से विवेचन किया। उन्होंने कहा कि गुरु शक्ति ही शिष्य के जीवन की शौर्य शक्ति है।
गुरु ही शिष्य के जीवन में आकर उनमें देवत्व के गुणों को जागृत करते हैं। गुरु की शोभा शिष्य और शिष्य की शोभा गुरु हैं। इस प्रेममय प्रकटीकरण के उत्सव को ही गुरु पूर्णिमा कहां गया है।
गुरुदेव ने कहा कि संसार के सारे संबंधों में एक बंधन अवश्य होता है, लेकिन सद्गुरु हमेशा शिष्य को स्वतंत्रता का भाव देते हैं। धर्म को जानने वाले, धर्म के अनुसार आचरण करने वाले, धर्म परायण और शास्त्रों के मूल तत्व का उपदेश देने वाले तथा अपने शिष्यों को आदेश करने वाले व्यक्ति को ही गुरु पद प्रदान किया जाता है।
गुरु वह है, जो आदेश देता है धर्म परायण का। हमारे सदगुरुदेव दादा निखिल इन्हीं सारे गुणों से परिपूर्ण संपूर्ण व्यक्तित्व थे और उन्हीं की कृपा से हमारा यह सिद्धाश्रम साधक परिवार निरंतर प्रगति की राह पर गतिशील है।उन्होंने जो बीज बोया, वह पीढ़ी दर पीढ़ी हो पल्लवित पुष्पित हो रहा है।
जीवन में रस का प्रवाह आवश्यक
उन्होंने कहा कि संसार में अच्छाई और बुराई के बीच निरंतर महाभारत चलता रहता है। नवदुर्गा के नौ रूपों में मुख्य रूप से दो ही स्वरूप हैं। एक हैं मृदु और दूसरा स्वरूप है रौद्र। दोनों ही शक्ति के भाव आपके भीतर हैं। काली और गौरी, दोनों की शक्तियां आपके भीतर विद्यमान हैं।
हमारी सारी प्रार्थनाओं में हम ईश्वर से शक्ति प्रदान करने की कामना करते हैं, प्रार्थना करते हैं। राम जी से शक्ति प्रदान करने का आशीर्वाद मांगते हैं। जैसे ही आपके भीतर काली शक्ति जागृत होती है,, आप अपनी बुद्धि से अपनी बाधाओं का शमन करने में समर्थ हो जाते हो। दूसरी शक्ति है गौरी, राधा, जो रस का स्वरूप है। अगर हम अपने जीवन में रस को ही हटा देंगे तो जीवन शुष्क हो जाएगा, जीवन में नीरसता आ जाएगी।
जीवन में आनंद रस आप अपने भीतर से ही प्राप्त कर सकते हो। इसके लिए चाहिए शौर्य। रस है जीवन का प्राण और दुर्गा है शक्ति। आप रस से युक्त होंगे तो मंत्र जप, साधना पूर्ण होगी। आप भीतर से सूखे हो तो साधना में सफलता नहीं मिलेगी। इसलिए अंदर रस का प्रवाह निरंतर होना ही चाहिए। फिर जीवन में परिवर्तन हो जाएगा।
गुरु शक्ति ही आपके जीवन की शौर्य शक्ति है। शिष्य गुरु के पास शक्ति प्राप्त करने ही आता है और भक्ति के बिना शक्ति जागृत नहीं होती। शक्ति की इच्छा को तो भगवान राम ने भी सहज भाव से स्वीकार किया था।
शक्ति को संगठित रखने का किया आह्वान
गुरुदेव श्रीमाली ने सनातन धर्मावलम्बियों से अपनी शक्ति को संगठित रखने का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि हम आर्यावर्त की संतान हैं। आज हमें यह विचार करना है कि मुट्ठी भर आक्रांताओं ने हमारी भूमि पर कैसे अधिकार कर लिया? कैसे हमारे मंदिरों को तोड़ दिया?
कैसे हमारे धर्म को उन्होंने ध्वस्त करने का प्रयास किया? क्योंकि, हमारे समाज के ही कुछ लोगों ने आक्रांताओं से गठबंधन कर लिया था और उसके विनाश का परिणाम पूरे समाज को भोगना पड़ा। लेकिन, हमारा सनातन धर्म इतना सामर्थ्यवान है कि इतने आक्रमणों का भी कोई प्रभाव नहीं पड़ा।
उन्होंने कहा कि जो अपने समूह की सलाह नहीं मानता है वह पूरे समाज के लिए विनाश के द्वार खोल देता है मुझे गर्व है आप शिष्यों पर कि अपने सनातन धर्म का झंडा लहरा रहे हैं हमें गर्व है अपने देवी-देवताओं पर अपने राम पर अपने कृष्ण पर जिनकी कृपा से, जिनके आशीर्वाद से सनातन धर्म की ध्वजा लहरा रही है।
- मनोज कुमार तिवारी