लॉकडाउन के पहले ही “लॉक” हो गई सुमन की जिंदगी

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इनपुट – गौरव अवस्थी

न्यूजडेस्क – इसे वक्त की मार कहें या बेबसी की इंतहा, जी हां जरा सोचिए कोई महिला 8 माह की गर्भवती हो और सड़क हादसे में पति की मौत हो जाए, मौत का पता भी ना चले, शव का अंतिम संस्कार लावारिस में हो जाए तो उस महिला पर क्या बीतेगी? यह भी सोचिए कि गर्भ में पल रही जिस संतान ने अभी जन्म नहीं लिया और उसके सिर से पिता का साया उठ जाए। उस बच्चे का भविष्य क्या होगा? सोचिए उन बच्चों के बारे में भी जिनकी उम्र अभी महज 5 साल और ढाई साल है ।जिनको इस बात का कोई ज्ञान नहीं है कि पिता कहां गए? आएंगे भी कि नहीं?

एक कहानी के यह तीन एंगल विस्तार से जानने के साथ चलिए हमारे साथ “शब्द यात्रा” पर

रायबरेली जनपद के अमावां ब्लाक का एक गांव है बड़ा गांव, गाँव में बड़े से मंदिर के पास एक छोटे से घर में गुज़र बसर करने वाला था और सोहन लाल साहू परिवार, रायबरेली में एक निजी फ़ैक्ट्री में काम करने वाले सोहन क़रीब साढ़े तीन माह पहले इसी साल की जनवरी में एक हादसे का शिकार हो गए, जान गई। पुलिस जान भी नहीं पाई कि इसकी जान गई, तो उसकी अर्थी को कंधा भी नसीब नहीं हुआ, लावारिस मानकर पुलिस ने अंतिम संस्कार कर दिया, एक दिन बीता दो दिन बीता। करते करते छह दिन निकल गए, घरवालों को चिंता हुई।फ़ैक्ट्री मालिक से पूंछा, जवाब सिर्फ़ इतना कि वो कब का जा चुका।अंततः सोहन की मृत्यु का सच उजागर हुआ, फ़ैक्ट्री मालिक ने शोक के दो शब्द नहीं कहे। मदद में एक हाथ भी नहीं उठा, गांव पहुंचने की सड़क जितनी खराब है, उससे कहीं ज्यादा खराब है, यहां रहने वाली सुमन की जिंदगी। उसकी ज़िंदगी के सारे के सारे “स्वप्न सुमन” पल भर में बिखर गए. जन्म के पहले ही अनाथ हुए तीसरे बच्चे के भविष्य की सोच सोच कर सुमन भी दिमागी रूप से डिस्टर्ब हो गई। उसकी मानसिक अवस्था में पति की मौत के माह बार बाद ही गर्भस्थ शिशु का जन्म हुआ। 3-3 अबोध बच्चों के साथ जीवन जी रही सुमन साहू का दुधमुहे बच्चा 2 माह का, बड़ी बेटी दीपा बमुश्किल 5 साल और बेटा नन्हकऊवा होगा ढाई साल का। इंच भर ज़मीन नहीं। आय का कोई साधन नहीं। सरकार की नज़रे इनायत नहीं यानी राशन कार्ड भी नहीं। घर का चूल्हा जले तो कैसे जले ? बच्चों का पेट भरे तो कैसे भरे? इस चिंता में सुमन दुबली लगातार दुबली होती चली जा रही है। कुछ गांव वाले न हो तो कई कई दिन चूल्हा जलने की नौबत भी ना आए. ऊपर वाले की दया और मया बस इतनी है कि रहने को छत नसीब है, कोरोना महामारी के चलते पूरे देश में लॉकडाउन के दो महीने पहले सुमन और उसके तीन छोटे छोटे बच्चों की ज़िंदगी हमेशा के लिए “लाक” हो चुकी है। कोरोना के बाद देश भर में लॉकडाउन तो समाप्त हो जाएगा लेकिन उसकी क़िस्मत का ताला तो खुलने की कोई उम्मीद भी नहीं। सुमन की यह दर्द भरी कहानी शायद आपके रोंगटे खड़े करने वाली है। फिर ऐसी स्थितियों से गुजरने वाले पर आप खुद सोचिए की गुजरती क्या होगी?

आइए, हम सब अपने-अपने छोटे दर्द भूलकर सुमन पर टूटे “पहाड़” जैसे दर्दों के बारे में सोचें..

नोट – (लेखक वरिष्ठ पत्रकार गौरव अवस्थी एक प्रतिष्ठित अखबार के ब्यूरो चीफ हैं )

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