Nari Shakti: राष्ट्रपति मुर्मू की मुहर के बाद भी नारी शक्ति को अभी नहीं मिल पाएगी शक्ति

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Nari Shakti, महिला आरक्षण बिल, नारी शक्ति वंदन अधिनियम 

Nari Shakti: राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू की मुहर के बाद नारी शक्ति का आरक्षण अभी नहीं लागू हो पाएगा। देश में जनगणना और परिसीमन के बाद ही यह कानून लागू हो पाएगा। सिंपल भाषा में समझें तो जनगणना में दो साल लगेंगे। इसके बाद ही परिसीमन संभव है। मगर हालिया कानून के तहत अगला परिसीमन 2026 से पहले नहीं हो पाएगा। ऐसे में 2027 के 8 राज्यों के विधानसभा चुनाव और 2029 के लोकसभा चुनाव के दौरान ही लोकसभा और विधानसभा में महिला रिजर्वेशन का कानून लागू हो पाएगा।

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने शुक्रवार (29 सितंबर) को महिला आरक्षण बिल (नारी शक्ति वंदन अधिनियम) को मंज़ूरी दे दी। यह विधेयक 20 सितंबर को लोकसभा और 21 सितंबर को राज्यसभा में पारित हुआ था। किसी भी विधेयक के संसद के दोनों सदनों से पारित होने के बाद उसे राष्ट्रपति की मंजूरी के लिए भेजा जाता है, ताकि वो कानून बन सके। इस कानून के लागू होने पर लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में महिलाओं को 33 फीसदी आरक्षण मिलेगा। लेकिन 2023 में होने वाले विधानसभा चुनाव और 2024 के लोकसभा चुनावों में महिला आरक्षण लागू होना संभव नहीं है। 

सरकार ने संसद में कहाकि कानून बनने के बाद पहली जनगणना और फिर परिसीमन में महिला आरक्षित सीटें तय होंगी। इसके बाद ही इसे लागू किया जा सकेगा। 2021 में होने वाली जनगणना अब तक नहीं हो सकी है। ऐसे में महिला आरक्षण 2026 से पहले लागू होने की संभावना कम है।

संसद के विशेष सत्र में नारी शक्ति वंदन अधिनियम पर चर्चा के दौरान 20 सितंबर को गृह मंत्री अमित शाह ने लोकसभा में महिला आरक्षण पर बहस के दौरान कहा था कि 2024 लोकसभा चुनाव के बाद बनने वाली नई सरकार सरकार जनगणना और परिसीमन की प्रक्रिया शुरू कर देगी। जनगणना को पूरे होने में एक साल का समय लग सकता है। इसके बाद परिसीमन की कार्रवाई शुरू हो सकेगी। सुप्रीम कोर्ट के एक न्यायाधीश, चुनाव आयोग का एक प्रतिनिधि और प्रत्येक राजनीतिक दल का एक प्रतिनिधि परिसीमन आयोग का हिस्सा होगा, जैसा कि कानून कहता है।

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 81 कहता है कि देश में लोकसभा सांसदों की संख्या 550 से ज्यादा नहीं हो सकती। हालांकि, संविधान ये भी कहता है कि हर 10 लाख आबादी पर एक सांसद होना चाहिए। आखिरी बार 1971 की जनगणना के आधार पर परिसीमन हुआ था। इसके बाद ही सीटों की संख्या 543 तय हुई थीं। अगर हर 550 सीटों की शर्त को खत्म कर दें और हर 10 लाख आबादी पर एक सांसद वाले नियम को लागू करें तो इस स्थिति में इस समय कुल 1425 सांसद होंगे।

इस समय देश की आबादी 142.57 करोड़ से ज्यादा है। अगर हर 10 लाख आबादी पर एक सांसद के हिसाब से बंटवारा हो तो 142.57/10,00,000= 1,425 होता है। हालांकि, ये सिर्फ अनुमान है। ये संख्या कम ज्यादा भी हो सकती है। क्योंकि नए संसद भवन में भी लोकसभा सदस्य में 888 और राज्यसभा में 384 सांसद ही बैठ सकते हैं। यानी कि दोनों सदनों में कुल सांसदों के बैठने की संख्या 1272 ही है। 

जनगणना और परिसीमन के बाद ही यह कानून लागू हो पाएगा। जनगणना में करीब दो साल लगेंगे। इसके बाद ही परिसीमन संभव है, लेकिन मौजूदा कानून के तहत अगला परिसीमन 2026 से पहले नहीं किया जा सकता हैं ऐसे में 2027 के 8 राज्यों के विधानसभा चुनाव व 2029 के लोकसभा चुनाव के दौरान ही यह लागू हो पाएगा।

2026 के परिसीमन में तय होगा कि कौन सी सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित होंगी। इसके बाद जब जब परिसीमन होगा। उस हिसाब से सीटें बदलती रहेंगी।

महिला आरक्षण बिल को परिसीमन और जनगणना से जोड़ा गया है। यही बातें कानून बनने के बाद भी इसे लागू करने में आड़े आएगी। दरअसल, दोनों ही प्रक्रिया बेहद जटिल और धीमी गति से चलने वाली है। 2021 की जनगणना की प्रक्रिया डिजिटल तरीके से होनी है। लेकिन हर एंट्री के सत्यापन के लिए मौके पर जाना पड़ेगा। इसी तरह परिसीमन में डेढ़ से दो साल का वक्त लगने की संभावना है। क्योंकि आयोग हर निर्वाचन क्षेत्र में जनसुनवाई आयोजित करेगा।

महिला आरक्षण जनगणना और परिसीमन के बाद लागू होगा। दक्षिण के राज्यों में आबादी उत्तर के मुकाबले कम है। इसलिए दक्षिण के मुकाबले उत्तर में दोगुनी सीटें बढ़ सकती हैं। नीचे दिया गया अनुमान लोकसभा की अधिकतम 888 सीटों पर आधारित है।

परिसीमन वह प्रक्रिया है जिसमें लोकसभा, विधानसभा व स्थानीय निकाय की सीटों की सीमाएं तय की जाती हैं। चूंकि लोकसभा-विधानसभा में एक निश्चित आबादी के लिए प्रतिनिधित्व होता है। आबादी में बदलाव से यह स्थिति बदल जाती है, इसलिए हर जनगणना के बाद ये प्रक्रिया होती है।

इसकी कवायद सुप्रीम कोर्ट के रिटा. जज की अध्यक्षता में की जाती है। इसके लिए एक परिसीमन आयोग का गठन किया जाता है। इसे संसद में कानून पारित कर गठित किया जाता है। इस आयोग के आदेश को मानना कानूनी रूप से बाध्यकारी होता है। इसे किसी कोर्ट में चुनौती नहीं दी जाती है। संसद भी इसके आदेश में संशोधन का सुझाव नहीं दे सकती है।

साल 2021 में होने वाली दशकीय जनगणना कोविड के कारण टल गई थी। जून 2023 में भारत के जनगणना रजिस्ट्रार जनरल ने जनगणना के लिए जिला, तहसील, कस्बे और गांवों की प्रशासनिक सीमाएं तय करने की तिथि 1 जनवरी 2024 तक बढ़ा दी। इस सीमाओं के तय होने के तीन माह बाद जनगणना शुरू होती है लेकिन उसी दौरान देश में लोकसभा चुनाव की घोषणा होगी। इसलिए उस वक्त ये संभव नहीं होगी।

जनगणना के बाद परिसीमन प्रक्रिया होगी। सुप्रीम कोर्ट में जब नए संसद भवन को बड़ा बनाने को लेकर चुनौती का मामला आया तो केंद्र ने हलफनामे देकर यह संभावना जताई कि अगले परिसीमन में लोकसभा की सीटें 543 से 888 और राज्यसभा की 245 से बढ़कर 384 हो सकती है।

परिसीमन आयोग अपनी ड्राफ्ट रिपोर्ट गज़ट में प्रकाशित करता है। आम आदमी से मिले फीडबैक से जुड़ी ज़रूरी बदलाव के बाद फाइनल रिपोर्ट तैयार होती है। परिसीमन आयोग की सिफारिशें राष्ट्रपति द्वारा तय तिथि पर लागू होती है। रिपोर्ट की प्रतियां लोकसभा और विधानसभाओं में रखी जाती हैं। लेकिन इसमें किसी प्रकार के कोई संशोधन की अनुमति नहीं होती है।

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