जब अभिभावकों ने पुस्तक और स्कूल ड्रेस खरीद ली तब खुली प्रशासन की नींद

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वाराणसी में जिला विद्यालय निरीक्षक ने स्कूलों को पत्र निर्गत कर विशिष्ट दुकान से अभिभावकों को पुस्तक और स्कूल ड्रेस ख़रीदने पर रोक लगाया।

स्कूलों के खिलाफ शिकायत मिलने पर यह कहावत तो आपने जरूर सुनी होगी ‘अब पछताए होत का जब चिड़िया चुग गई खेत’, यह कहावत शिक्षा विभाग के उस आदेश पर सटीक बैठती है जिसमें स्कूल खुल जाने के बाद जिला विद्यालय निरीक्षक अवध किशोर सिंह ने निजी स्कूलों के एकाधिकार बाध्यकारी मनमानी के खिलाफ मिली शिकायत पर जांच कर पत्र निर्गत की है।

वाराणसी ,  प्राइवेट स्कूलों में अप्रैल शुरू होते ही नया शैक्षणिक सत्र शुरू हो चुका है और ऐसे में अधिकांश बच्चों  के अभिभावकों ने पुस्तकें और ड्रेस स्कूल के बताए अनुसार जगहों से खरीद ली हैं। इसके बाद अब जिला प्रशासन की नींद टूटी है और जिला विद्यालय निरीक्षक अवध किशोर सिंह ने सामाजिक कार्यकर्ता राजकुमार गुप्ता सहित ऐसे कई अभिभावकों के शिकायत पर विशिष्ट दुकान से किताब कापी और ड्रेस ख़रीदने यानी स्कूलों के बाध्यकारी एकाधिकार के खिलाफ जांच कर यह आदेश दिए हैं। इधर सामाजिक कार्यकर्ताओं का कहना है कि अब इस आदेश और जांच से क्या फायदा जब अभिभावक पहले ही लुट चुके हैं। ऐसे में यह कहावत बिलकुल सही है कि अब पछताए होत का जब चिड़िया चुग गई खेत।

पुस्तक और ड्रेस को लेकर उ०प्र० स्ववित्तपोषित स्वतंत्र विद्यालय (शुल्क विनियमन) अधिनियम, 2018 है।

उ०प्र० स्ववित्तपोषित स्वतंत्र विद्यालय (शुल्क विनियमन) अधिनियम, 2018 के अध्याय-2 विद्यालयों में प्रवेश एवं शुल्क के बिंदु एवं निधि-3 (10) के अनुसार ‘किसी छात्र को पुस्तकें, जूते मोज़े व यूनिफ़ॉर्म आदि किसी विशिष्ट दुकान से क्रय करने के लिए बाध्य नही किया जाएगा’ का उल्लेख है।

कई स्कूलों के खिलाफ आई शिकायत

उत्तर प्रदेश शासन ने प्रदेश के निजी विद्यालय फीस एवं अन्य विषयों के उत्तर प्रदेश स्ववित्तपोषित अधिनियम 2018 के तहत आदेश जारी किया था कि जो भी निजी स्कूल पुस्तक और ड्रेस के नाम पर अभिभावकों को परेशान कर रहे हैं उनके खिलाफ अभिभावक जिला प्रशासन में शिकायत कर सकते हैं। शिकायत के बाद जिला प्रशासन ऐसे स्कूलों के खिलाफ कार्रवाई करेगा। जिस बावत जिला विद्यालय निरीक्षक अवध किशोर सिंह के आदेश के बावजूद वाराणसी में जिला प्रशासन को लगातार शिकायतें पहुंच रहीं हैं और कई स्कूल जांच के दायरे में भी आ गए हैं।

स्कूल शुरू होने के पहले करनी थी कार्रवाई

अभिभावकों का कहना है कि स्कूल 1 अप्रैल से शुरू हो जाते हैं और पुस्तक और ड्रेस खरीदने की प्रक्रिया 15 मार्च से ही शुरू हो जाती है ऐसी स्थिति में जब यह आदेश और कार्रवाई शुरू हुई तब तक ज्यादातर लोग ड्रेस और पाठ्य पुस्तक खरीद चुके थे। ऐसी स्थिति में यह फैसला बहुत लेट है और इसका फायदा लोगों को नहीं मिलेगा। यह जांच शक के दायरे में है।

एनसीईआरटी क्यों लागू नहीं करते

एक शिकायतकर्ता और वाराणसी के सामाजिक कार्यकर्ता राजकुमार गुप्ता का कहना है कि “पाठ्यपुस्तक के मामले में सरकार को एनसीईआरटी की पाठ्यपुस्तकें कोर्स में शामिल करवाने की बाध्यता करनी चाहिए। इससे न केवल शिक्षा में एकरूपता आएगी बल्कि कम दामों में लोगों को पाठ्य पुस्तकें मिल सकेंगी। एनसीईआरटी की पुस्तकों की कीमत की तुलना में बाहर मिलने वाली किताबों में 10 गुने तक का फर्क है। एनसीईआरटी की पुस्तक 10 गुने कम दाम पर मिलती हैं जबकि निजी प्रकाशक की पुस्तकें 10 गुना महंगे दामों पर मिलती हैं। एनसीईआरटी की कक्षा 8 की गणित की पुस्तक की कीमत मात्र ₹65 है और इसी क्लास की निजी प्रकाशक की पुस्तक की कीमत साढ़े 500 है”।

रिपोर्ट – राजकुमार गुप्ता

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