वट सावित्री व्रत

16

सुहागिनों ने मांगा अखंड सुहाग का वरदान

पनवाड़ी , ज्येष्ठ मास की अमावस्या पर गुरुवार को बट सावित्री व्रत आस्था और भक्ति के साथ संपन्न हुआ। इस दौरान सौभाग्यवती महिलाओं ने बरगद वृक्ष की पूजा अर्चना कर अखंड सुहाग की कामना की। हिंदू धर्म ग्रंथों के अनुसार बरगद में त्रिदेव अर्थात ब्रह्मा, विष्णु और महेश का वास होता है। करवाचौथ के बाद सबसे कठिन माने जाने वाले इस व्रत में सुहागिन महिलाएं निर्जला रहकर वट वृक्ष का पूजन करती हैं। भीषण गर्मी के बीच ज्येष्ठ मास की अमावस्या के दिन मनाए जाने वाले इस पर्व का विशेष महत्व है। कहा जाता है कि मद्र देश की राजकुमारी सावित्री ने यह जानते हुए भी सत्यवान अल्पायु है, उससे विवाह किया। शादी के साल भर बाद नारद ऋषि द्वारा बताए गए मृत्यु के दिन सावित्री ने बरगद की विधिवत पूजा कर वृक्ष के चारों ओर परिक्रमा कर कच्चे सूत का धागा बांध दिया।

इसी दौरान सत्यवान अचेत होकर पृथ्वी पर गिर पड़े। मान्यता है कि इस व्रत के प्रभाव से सावित्री ने यमराज को अपने पति सत्यवान के प्राण वापस करने पर विवश कर दिया था। सत्यवान की आत्मा रहित देह बरगद के नीचे पड़ी थी और वहीं उसे पुनर्जन्म प्राप्त हुआ। धार्मिक मान्यताओं के साथ साथ इस व्रत में पर्यावरण संरक्षण का संदेश छिपा हुआ है। वट वृक्ष आकार में बेहद विशाल होते हैं। ये पेड़ पूरे साल राहगीरों को छाया प्रदान करने में सक्षम होते हैं। वट वृक्ष की औसत उम्र 150 साल से भी अधिक मानी जाती है। यह पेड़ न सिर्फ राहगीरों को छाया, बल्कि बहुत बड़े पैमाने पर पक्षियों और जंतुओं को आश्रय प्रदान करता है।

वट वृक्ष के आसपास प्रदूषण का स्तर स्वत: कम हो जाता है। भारतीय संस्कृति में प्रकृति को ईश्वर और ईश्वर को प्रकृति के तौर पर चित्रित किया गया है। यही वजह है कि ईश्वर की पूजा की बात आती है तो प्रकृति इनसे अलग नहीं रह जाती है। खासकर हिदू उपासना पद्धति में सूर्य, चंद्र, धरती, नौ ग्रह, नदी, पर्वत के साथ ही वायु, अग्नि, जल की भी पूजा होती है। इसी तरह पीपल, बरगद, बेल, आम, नीम, आंवला, अशोक, लाल चंदन, केला, शमी और तुलसी जैसे पेड़-पौधों की भी उपासना हिदू करते रहे हैं। कुल मिलाकर ऐसे लोकाचारों के जरिए विद्वानों ने पर्यावरण संरक्षण का एक दीर्घकालिक और प्रभावी प्रबंध कर दिया है।

रिपोर्ट- राकेश कुमार अग्रवाल

Click