गौरव जी की मदर्स डे स्पेशल कविता: मां

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मां! तेरे रूप हजार..
आकाश की ऊंचाइयां
समंदर की गहराइयां
भी नहीं नाप पातीं,
प्रार्थना से ज्यादा
पवित्र तेरा प्यार,
मां तेरे रूप हजार..

फूलों की कोमलता
लहरों सी कंपनशीलता,
सब धुंधला जाती जब
छलके तेरा दुलार,
मां तेरे रूप हजार..

वसुंधरा की कोमलता
युधिष्ठिर की उदारता
नहीं कर पाती मुकाबला
जब मिल जाता तेरा द्वार
मां तेरे रूप हजार..

सूर्य की गरमी
चंद्र की नरमी
पड़ जाती है फीकी,
पाकर तेरी फुहार,
मां तेरे रूप हजार..

हार में क्या जीत में
प्रीत में क्या मीत में
हर बंद में, हर गीत में
तेरी मीठी थपकियों से
बदल जाता है संसार,
मां तेरे रूप हजार..

राम ने लिया
कृष्ण ने लिया
तेरी कोख का सहारा
करने को उपकार,
मां तेरे रूप हजार…

साभार : गौरव अवस्थी (वरिष्ठ पत्रकार)
रायबरेली (उप्र)

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