राकेश कुमार अग्रवाल
महाराष्ट्र के नागपुर के 85 वर्षीय नारायण भाऊराव दाभाडकर को एक हफ्ते पहले तक भले चुनिंदा लोगों के अलावा कोई नहीं जानता था लेकिन आज देश के तमाम लोग नारायण भाऊराव को बडी शिद्दत से याद कर रहे हैं . क्योंकि नारायण भाऊराव अपने जीवन की अंतिम वेला में जो करके गए हैं वह सोचने भर से इंसान की रूह कांप सकती है .
85 साल के नारायण भाऊराव के कोरोना पाॅजिटिव होने के बाद उनका ऑक्सीजन लेवल घटकर 60 तक आ गया था . उनके दामाद और बेटी ने तमाम आरजू मिन्नत के बाद इंदिरा गांधी शासकीय हाॅस्पिटल में जैसे तैसे एक बेड का जुगाड कर उनको भर्ती करा दिया था . नारायण ने एक दिन देखा कि एक महिला अपने 40 वर्षीय पति को भर्ती कराने के लिए अस्पताल प्रबंधन से गिडगिडा रही है . जबकि प्रबंधन बेड न होने का हवाला देकर भर्ती करने से मना कर रहे थे . उस महिला का दर्द और पति को बचाने की गुहार को देखकर नारायण भाऊराव को रहा नहीं गया और नारायण भाऊराव ड्यूटी पर तैनात डाॅक्टर से बोले कि मेरी उम्र 85 साल की है . मैं अपनी जिंदगी जी चुका हूं . अब और कितने दिन जी पाऊंगा . आप एक काम करिए मेरे बेड को उस महिला के पति को दे दीजिए . मेरे से ज्यादा बेड की आवश्यकता उनको है . अगर उस महिला के पति को कुछ हो गया तो बच्चे अनाथ हो जाएगें . अस्पताल प्रशासन ने उस महिला के पति को बेड देने से पहले बाकायदा नारायण भाऊराव से पत्र लिखवाया कि मैं अपना बेड स्वेच्छा से दूसरे मरीज को दे रहा हूं . इसके बाद नारायण भाऊराव हास्पिटल से अपने घर चले गए . जहां तीन दिन बाद भाऊराव का निधन हो गया . लेकिन तब तक नारायण भाऊराव के एक छोटे से निर्णय ने उन्हें सब की आँखों का तारा अवश्य बना दिया . आज पूरा देश नारायण भाऊराव द्वारा इस संकट काल में लिए गए उनके निर्णय का कायल हो गया है .
एक तरफ देश के तमाम लोग अपनी जान पर खेलकर नारायण भाऊराव की तरह बढ चढकर पीडितों और उनके परिजनों की मदद के लिए आगे आ रहे हैं वहीं दूसरी ओर ऐसे कालाबाजारियों की भी कमी नहीं है जो नैतिकता और मानवीयता को ताक पर रखकर दोनों हाथों से बटोरने में लगे हैं . रेमेडिसिवर इंजेक्शन व ऑक्सीजन सिलिण्डर को लेकर जिस बेहयाई से कालाबाजारी हुई है इससे कोई अनजान नहीं है . और तो और सामान्य दवायें बाजार से गायब हैं . मेडीकल उपकरण नहीं मिल रहे . कीवी जैसे फल की कीमतें आसमान छू रही होंगी . दो तीन दिन तक मीडिया और टीवी चैनलों पर आप केवल किसी प्रोडक्ट को गुणों की खान बताते हुए उसे कोरोना महामारी में रामवाण बताते हुए खबर चला दीजिए अगले ही दिन से वह वस्तु बाजार से गायब हो जाएगी . उसकी कमी हो जाएगी और उसकी कीमतें आसमान छूने लगेंगी .
यह देश में एक ओर जब कोरोना के कहर के कारण त्राहिमाम और बदहवाशी का आलम है . इस विकट काल में ऐसे लोग भी बडी संख्या में निकल कर आ रहे हैं जो घोर निराशा के इस दौर में आशा की किरण बन कर उभर रहे हैं . वे न केवल उम्मीद का उजाला बन रहे हैं बल्कि समाज को एक नई राह भी दिखा रहे हैं . ऐसे लोग डूबते के लिए तिनके का सहारा बनकर सामने आ रहे हैं .
बुंदेलखंड के पिछडे हमीरपुर जिले के भरुआ सुमेरपुर में रिमझिम इस्पात की फैक्ट्री इस समय ऑक्सीजन की आपूर्ति करने में जी जान से जुटी है . कंपनी के एमडी के निर्देश पर महज एक रुपए लेकर ऑक्सीजन सिलिंडर दिया जा रहा है . और तो और कंपनी ने सरकार को पत्र लिखकर दूसरा ऑक्सीजन प्लांट चालू करने के लिए अनुमति मांगी है ताकि वे भरपूर मात्रा में पूरी क्षमता के साथ ऑक्सीजन उपलब्ध करा सकें .
हमीरपुर के युवाओं , समाजसेवियों और जागरूक लोगों ने तो वाटसएप के माध्यम से कोविड फाइटर्स ग्रुप ही बना डाला . मदद की अपील का परिणाम यह हुआ कि नगर के समाजसेवी जावेद हबीब ने तीन लाख रुपए की आर्थिक सहायता दे दी . यह कोविड फाइटर ग्रुप अब तक पांच लाख रुपए इकट्ठे भी कर चुका है . एवं इकट्ठे किए गए फंड से कोविड अस्पतालों में ऑक्सीजन सिलिण्डर पहुंचाने का काम करेगा .
सरकारी आँकडों के मुताबिक देश में मौतों की संख्या दो लाख पार कर चुकी है . केवल सरकार और प्रशासन इस महामारी से मुकाबिल होने में अपने को असहाय पा रहा है . ऐसे में यदि हर शहर , कस्बों से समाजसेवियों की टोलियां रेडक्रास सोसायटी की तरह सक्रिय होकर कोविड प्रोटोकाल का पालन करते हुए शासन प्रशासन की सक्रियता से मदद करें तो न केवल भय के माहौल से लोगोें को बाहर निकालने में मदद मिलेगी . बल्कि लोगों की छोटी छोटी मदद भी बूंद बूंद से घडा भरने के समान होगी .
मशहूर शायर और गजलकार दुष्यंत कुमार ने शायद ऐसे ही वक्त के लिए लिखा था कि
कौन कहता है कि आसमां में सूराख नहीं हो सकता
एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारो…
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