१. यमद्वितीया अर्थात भैय्यादूज
असामायिक अर्थात अकालमृत्यु न आए, इसलिए यमदेवता का पूजन करने के तीन दिनों में से कार्तिक शुक्ल द्वितीया एक है। यह दीपोत्सव पर्व का समापन दिन है। यमद्वितीया’ एवं
भैय्यादूज’ के नाम से भी यह पर्व परिचित है। इन तीन दिनों में से यह एक दिन है। इन दिनों में भूलोक में यम तरंगें अधिक मात्रा में आती हैं। इन दिनों यमादि देवताओं के निमित्त किया गया कोई भी कर्म अल्प समय में फलित होता है। इसलिए कार्तिक शुक्ल द्वितीया की तिथि पर यमदेव का पूजन करते हैं। चौकी पर रखे चावल के तीन पुंजों पर तीन सुपारियां रखते हैं। चौपाए पर चावल के तीन छोटे छोटे पुंजों पर तीन सुपारियां रखी जाती हैं।
२. कार्तिक शुक्ल द्वितीया को यमद्वितीया‘ और
भैय्यादूज‘ कहने के कारण
कार्तिक शुक्ल द्वितीया की तिथि पर वायुमंडल में यमतरंगों के संचार के कारण वातावरण तप्त ऊर्जा से प्रभारित रहता है। ये तरंगें नीचे की दिशा में प्रवाहित होती हैं। इन तरंगोंके कारण विविध कष्ट हो सकते हैं, जैसे अपमृत्यु होना, दुर्घटना होना, स्मृतिभ्रंश होने से अचानक पागलपन का दौरा पडना, मिरगी समान दौरे पडना अर्थात फिट्स आना अथवा हाथ में लिये हुए कार्य में अनेक बाधाएं आना। भूलोक में संचार करने वाली यमतरंगों को प्रतिबंधित करने के लिए यमादि देवताओं का पूजन करते हैं।
पृथ्वी यमकी बहन का रूप है। इस दिन यमतरंगें पृथ्वी की कक्षा में आती हैं। इसलिए पृथ्वी की कक्षा में यमतरंगों के प्रवेश के संबंध में कहते हैं कि, कार्तिक शुक्ल द्वितीया की तिथि पर यम अपने घर से बहन के घर अर्थात पृथ्वीरूपी भूलोक में प्रवेश करते हैं। इसलिए इस दिन को यम–द्वितीया के नाम से जानते हैं। यमदेवता के अपनी बहन के घर जाने के प्रतीक स्वरूप प्रत्येक घर का पुरुष अपने ही घर पर पत्नी द्वारा बनाए गए भोजन का न सेवन कर बहन के घर जाकर भोजन करता है। बहन द्वारा यमदेवता का सम्मान करने के प्रतीक स्वरूप यह दिन `भैय्यादूज‘ के नाम से भी प्रचलित है।
३. बहन द्वारा भाई का औक्षण(आरती) करने की पद्धति
भोजन से पूर्व बहन भाईका औक्षण करती है। इसमें वह प्रथम भाईको कुमकुम तिलक एवं अक्षत लगाती है। तदुपरांत भाई के मुख के चारों ओर अर्धगोलाकार आकृति में तीन बार सुपारी एवं अंगूठी घुमाती है। इसके उपरांत अर्धगोलाकार में तीन बार आरती उतारती है। उपरांत उपहार देकर भाई का सम्मान करती है।
शास्त्र की जानकारी हो, तो कोई भी धार्मिक कृति मन:पूर्वक एवं श्रद्धापूर्वक की जाती है। परिणामत: उससे लाभ भी अधिक प्राप्त होता है।
४. बहन द्वारा भाई का औक्षण करने के सूक्ष्म-स्तरीय परिणाम
औक्षण करते समय बहन में भाव का वलय जागृत होता है। ब्रह्मांड से चैतन्य का प्रवाह औक्षण करने वाली बहन की ओर आकर्षित होता है। बहन में इस चैतन्य का वलय एकत्रित होता है। बहन के हाथों से चैतन्य तरंगें ताम्रपात्र की ओर प्रवाहित होकर, उसमें चैतन्य का वलय जागृत होता है। भाई की ओर ईश्वरीय चैतन्य का प्रवाह आकर्षित होता है तथा उसमें चैतन्य के वलय की उत्पत्ति होती है।
औक्षण करनेके लिए उपयोग में लाए गए तेल के दीप में ईश्वरीय शक्ति का प्रवाह आकर्षित होता है। औक्षण करते समय दीप को अर्धवर्तुलाकार घुमाने से दीप के सर्व ओर शक्ति का कार्यरत वलय उत्पन्न होता है। इस वलय द्वारा शक्ति की कार्यरत तरंगें भाई की ओर प्रक्षेपित होती हैं। भाई की सूर्यनाडी कार्यरत होती है तथा उसमें शक्ति का वलय उत्पन्न होता है। भाई की देह में शक्ति के कणों का संचार होता है तथा उसकी देह के सर्व ओर सुरक्षा कवच बनता है।
बहन द्वारा भाई का औक्षण करने के कारण वातावरण भी शक्ति के कणों से संचारित होता है। औक्षण करने के कारण पाताल एवं वायुमंडल से आक्रमण करने वाली अनिष्ट शक्तियों से भाई का रक्षण होता है। भाई में भाव का वलय जागृत होता है।
इससे स्पष्ट होता है, कि भाईदूज के दिन बहन द्वारा भाईका औक्षण किए जाने के कारण बहन तथा भाई दोनों को लाभ प्राप्त होता है।
५. यमादि देवताओंका पूजन करनेके उपरांत बहन द्वारा भाव सहित भाई का औक्षण करनेसे होने वाले लाभ
इस दिन बहनें भाई के रूपमें यमदेव का औक्षण कर उनका आवाहन करती हैं। उनका यथोचित आदर सहित सम्मान करती हैं और भूलोक में संचार करने वाली यम तरंगों पर तथा पितृलोक की अतृप्त आत्माओं को प्रतिबंधित करने के लिए उनसे प्रार्थना करती हैं।
परिजनों को यम तरंगोंके कारण होने वाले कष्ट घटते हैं। यमतरंगों से परिजनों की रक्षा होती है। वास्तु का वायुमंडल शुद्ध बनता है। पृथ्वी का वातावरण सीमित समय के लिए यातना रहित अर्थात आनंददायी रहता है। औक्षण के उपरांत भाई बहनके हाथ से बना भोजन ग्रहण करता है। ऐसा बताया गया है, कि सगी बहन न हो, तो भाईदूज के दिन चचेरी, ममेरी किसी भी बहनके घर जाकर अथवा किसी परिचित स्त्री को बहन मानकर उसके घर भोजन करना चाहिए।
६. भाई का बहन को उपहार देना
भोजन के उपरांत भाई यथाशक्ति वस्त्राभूषण, द्रव्य इत्यादि उपहार देकर बहन का सम्मान करता है। यह उपहार सात्त्विक हो, तो अधिक योग्य है। जैसे साधना संबंधी, धर्मसंबंधी ग्रंथ, देवता पूजन हेतु उपयुक्त वस्त्र इत्यादि। कुछ स्थानों पर स्त्रियां सायंकाल में चंद्रमा का औक्षण कर उसके उपरांत ही भाईका औक्षण करती हैं। भाई न हो, तो कुछ स्थानों पर बहन चंद्रमा को भाई मानकर उनका औक्षण करती है।
७. भाईदूजके दिन स्त्रियोंद्वारा चंद्रमा का औक्षण करने के परिणाम
स्त्री द्वारा चंद्रमा का आवाहन करनेसे चंद्रतरंगें कार्यरत होती हैं। ये तरंगें वायुमंडल में प्रवेश करती हैं। इन तरंगों की शीतलता के कारण ऊर्जामयी यम तरंगें शांत होती हैं तथा वातावरण की दाहकता घटती है। इससे यमदेव का क्षोभ भी मिटता है। इसके उपरांत वातावरण प्रसन्न अर्थात सुखद बनता है। वातावरण की इस प्रसन्नता के कारण स्त्रियों के अनाहत चक्र की जागृति होती है। परिणाम स्वरूप यमदेवता के उद्देश्य से भाई के पूजन की विधि द्वारा भाव बढने में सहायता मिलती है तथा इष्ट फल प्राप्ति होती है।
८. भाईदूज मनाने से भाई एवं बहन को प्राप्त लाभ
यमद्वितीया अर्थात भाईदूज के दिन ब्रह्मांड से आनंद की तरंगोंका प्रक्षेपण होता है। इन तरंगों का सभी जीवों को अन्य दिनों की तुलना में ३० प्रतिशत अधिक लाभ होता है। इसलिए सर्वत्र आनंद का वातावरण रहता है।
९. बहन में जागृत देवीतत्त्व का लाभ भाई को मिलना
इस दिन स्त्री में देवीतत्त्व जागृत रहता है। इसका लाभ भाई को उसके भावानुसार मिलता है। भाई साधना करता हो, तो उसे आध्यात्मिक स्तर पर लाभ मिलता है। वह साधना न करता हो, तो उसे व्यावहारिक लाभ मिलता है। भाई कामकाज संभालते हुए साधना करता हो, तो उसे दोनों स्तर पर पचास–पचास प्रतिशत लाभ मिलता है।
१०. बहन द्वारा की गई प्रार्थना के कारण भाई-बहन का लेन-देन घट जाना
यमद्वितीया की तिथि पर बहन अपने भाई के कल्याण के लिए प्रार्थना करती है। इसका फल भाई को बहन के भावानुसार प्राप्त होता है। इसलिए बहन का भाई के साथ लेन-देन अंशतः घट जाता है। इसलिए यह दिन एक अर्थ से लेन-देन घटाने के लिए होता है।
११. भाईदूज के कारण बहन को प्राप्त लाभ
बहन का प्रारब्ध घट जाना। भाईदूज के दिन भाई में शिवतत्त्व जागृत होता है। इससे बहन का प्रारब्ध एक सहस्त्रांश प्रतिशत घट जाता है। भाईदूज के दिन शास्त्र में बताए अनुसार कृति करने के लाभ हमने समझ लिए। इन सूत्रों से हिंदू धर्म में बताए पर्वो उत्सवों का महत्त्व समझ में आता है।
अनुज मौर्य /मनीष श्रीवास्तव की रिपोर्ट