राकेश कुमार अग्रवाल
पांच राज्यों के चुनाव परिणामों में जैसा कि संभावना जताई जा रही थी कमोवेश वैसे ही रहे . ममता बनर्जी ने जीत की हैट्रिक लगाकर उन सभी कयासों को धता बता दी जो इस बार ममता को कमजोर आँक रहे थे . भाजपा के लिए यह चुनाव कहीं खुशी कहीं गम जैसे रहे . अलबत्ता कांग्रेस के लिए यह चुनाव भी कोई उत्साह जगाने वाले नहीं रहे . तीन प्रमुख राज्यों में एक तरह से क्षेत्रीय दलों का जलवा रहा .
जिन चार राज्यों एवं एक केन्द्र शासित प्रदेश में चुनाव हुआ था उनमें सभी की निगाहें पश्चिमी बंगाल के चुनाव परिणामों पर लगी थीं . भारतीय जनता पार्टी ने बंगाल विजय करने के लिए अपना सर्वस्व झोंक दिया था . पार्टी ने बंगाल में जोरदार प्रदर्शन भी किया लेकिन सत्ता की चाबी हासिल करने के लिए यह प्रदर्शन नाकाफी रहा . चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर को साथ में लेकर टीएमसी नेत्री ममता बनर्जी ने जो चुनावी व्यूह रचना की उसका परिणाम भी दीदी को लिए आशानुरूप रहा जब दीदी ने पिछले चुनावों की तरह प्रदर्शन करते हुए लगभग दो तिहाई सीटें हथियाने में कामयाब रहीं . इस तरह ममता जीत की हैट्रिक मारकर तीसरी बार मुख्यमंत्री बनने जा रही हैं . ममता अब जयललिता , मायावती , राबडी देवी और और शीला दीक्षित की तरह तीसरी बार मुख्यमंत्री बनेंगीं . भाजपा ने जिस तरह से बंगाल का चुनाव लडा वह अपने आप में पूरी तरह उसके मिजाज के अनुरूप हाई वोल्टेज था . इसका फायदा भी भाजपा को मिला . भाजपा ने 2016 के चुनावों में महज तीन सीटें हासिल की थीं हालांकि भाजपा 3 सीटों से तीन अंकों वाली पार्टी बनने का सपना पाले थी लेकिन ऐसा हो न सका . फिर भी 25 गुना से अधिक सीटें हासिल करना भाजपा ही नहीं किसी भी राजनीतिक दल के लिए यह एक बडी उपलब्धि से कम नहीं है . बंगाल चुनावों की जो सबसे बडी खूबी रही वह यह थी कि पूरा चुनाव भाजपा बनाम टीएमसी हो गया था . जिसका खामियाजा भाजपा को उठाना पडा . यदि यही मुकाबला त्रिकोणीय होता तो भाजपा की सीटों की संख्या तीन अंकों तक भी पहुंच सकती थी . ममता बनर्जी के पैर में बंधा प्लास्टर और एक पैर से घायल ममता का पूरे चुनाव में प्रचार करने के लिए आना टीएमसी के पक्ष में भावनात्मक रूप से झुकाव ले गया . अल्पसंख्यक मतदाताओं का एकतरफा सपोर्ट ममता को मिलने को बाद उनकी जीत की राह प्रशस्त हो गई थी . आजादी के बाद से लगातार 22 साल तक बंगाल की कमान संभालने वाली कांग्रेस का राज्य से एक तरह से सूपडा साफ हो गया है . भाजपा ने बंगाल में लंबी छलांग लगाकर दूसरे नंबर की व मुख्य विपक्षी पार्टी बनने की हैसियत हासिल कर ली है . असम में पार्टी ने सत्ता में पुनर्वापसी कर यह संकेत दे दिया है कि राज्य का मतदाता उसके साथ है . पूर्वोत्तर के एक बडे राज्य में लगातार दूसरी बार सरकार बनाना भाजपा की स्वीकारोक्ति पर मतदाताओं ने मोहर लगा दी है .
भाजपा खेमे के लिए तीसरी खुशी केन्द्र शासित प्रदेश पुदुच्चेरी से आई जहां एनडीए बहुमत हासिल कर सरकार बनाने जा रहा है . केरल में चुनाव परिणाम पिछले चुनावों का दोहराव बन गया जहां एलडीएफ और यूडीएफ दोनों पार्टियां का प्रदर्शन लगभग 2016 की तरह रहा . केरल में अगर नेतृत्व परिवर्तन न हुआ तो पिनराई विजयन फिर से मुख्यमंत्री बनने जा रहे हैं . अलबत्ता केरल में भाजपा जरूर थोडा बेहतर स्थिति में रही .
ठेठ दक्षिण भारतीय राज्य तमिलनाडु में सत्ता की अदला बदली का मिजाज रहा है . इस बार भी तमिलनाडु का चुनाव परिणाम वैसा ही रहा . एआईएडीएमके फिर से सत्ता पाने की चाह में सत्ता गंवा बैठी . द्रविण मुन्नेत्र कडगम ने पिछले बार की 98 सीटों के मुकाबले इस बार लगभग पूर्ण बहुमत हासिल कर लिया है . एआईएडीएमके को इन चुनावों में मुंह की खानी पडी है . इन चुनाव परिणामों का राष्ट्रीय राजनीति में क्या फर्क पडेगा इसके लिए थोडा इंतजार करना मुनासिब होगा . लेकिन ममता और प्रशांत किशोर की टीम पूरी चुनावी महफिल लूटने में जरूर सफल रही है .
और अब …वोटर के मन की बात
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