क्या मुख्यमंत्री पद की शपथ का छक्का मार पाएंगे नीतीश कुमार

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राकेश कुमार अग्रवाल
आज बिहार में दूसरे चरण का मतदान होने जा रहा है इसी केे साथ यह कयासबाजी भी जोर पकड चुकी है कि बिहार में नया बल्लेबाज मुख्यमंत्री पद की ओपनिंग करेगा या बिहारी राजनीति के चाणक्य नीतीश कुमार शपथ ग्रहण का छक्का मारेंगे . एक तरह से बिहार चुनाव अनुभवी बनाम फ्रेशर का चुनाव होने जा रहा है .
राजनीतिक परिवार में जन्मे तेजस्वी राजनीति में आने से पहले क्रिकेटर थे .
देखा जाए तो गत तीस वर्षों से बिहार की राजनीति में जेपी आंदोलन से निकले दो युवा नेताओं का वर्चस्व चल रहा है . लालू प्रसाद यादव और नीतीश कुमार के इर्द गिर्द बिहार की राजनीति की कमान है . लालू प्रसाद यादव ने माई समीकरण बनाकर 1990 से 1997 तक बिहार के मुख्यमंत्री पद की शोभा बढाई . इसके बाद उनकी पत्नी राबडी देवी को मुख्यमंत्री पद विरासत में तब मिल गया जब चारा घोटाले में नाम आने के कारण लालू प्रसाद यादव को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना पड गया .
इन तीस वर्षों में बिहार की राजनीति में केवल इतना बदलाव आया है कि कुछ चेहरे बदल गए हैं . लालू प्रसाद यादव जेल में हैं तो उनकी पत्नी और बिहार की पूर्व मुख्यमंत्री राबडी देवी राजनीति के नेपथ्य में चली गई हैं . अब पार्टी की कमान उनके क्रिकेटर बेटे तेजस्वी के हाथ में है . जबकि नीतीश कुमार खुद ताल ठोके मैदान में फिर से मुख्यमंत्री का सपना पाल कर डटे हुए हैं .
70 साल के राजनीतिक इतिहास में बिहार अब तक 33 मुख्यमंत्रियों को देख चुका है . जिसका सीधा तात्पर्य यह है कि बिहार राजनीतिक स्थिरता की दृष्टि से सबसे संवेदनशील राज्य है . इस राज्य में किसी मुख्यमंत्री का अपना पांच साल का कार्यकाल पूरा करना बडी घटना मानी जाती है . 1968 में तो बिहार ने राजनीतिक अस्थिरता का चरमोत्कर्ष देखा था जब महज 5 माह में बिहार में महामाया प्रसाद सिन्हा , सतीश प्रसाद सिंह , बीपी मंडल , और भोला पासवान शास्त्री ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली . इसके बावजूद वहां पर राष्ट्रपति शासन लगाना पडा था . स्वयं नीतीश कुमार जब मार्च 2000 में पहली बार मुख्यमंत्री बने थे तब उन्हें शपथ ग्रहण के आठवें दिन बहुमत साबित करने में असफल रहने पर इस्तीफा देना पडा था . लेकिन इसके बाद से नीतीश कुमार ने पीछे मुडकर नहीं देखा .
लालू – राबडी के बेटे तेजस्वी व नीतीश कुमार मुख्यमंत्री पद के स्वभाविक दावेदार हैं लेकिन इसके बावजूद बिहार में मुख्यमंत्री पद के दावेदारों की संख्या आधा दर्जन तक पहुंच गई है . नीतीश एनडीए का नेतृत्व कर रहे हैं तो तेजस्वी महागठबंधन की ओर से मुख्यमंत्री के दावेदार हैं . लोक जनशक्ति पार्टी के युवा नेता चिराग पासवान जिन्होंने फिल्म अभिनेता बनने के बाद राजनीति की राह पकडी भी मुख्यमंत्री पद का दावा ठोके हुए हैं. हालांकि उनके लिए फिलहाल यह दूर की कौडी है . ग्रेंड डेमोक्रेटिक सेक्युलर फ्रंट ( जीडीएसएफ ) के उपेन्द्र कुशवाहा , पांच साल में बिहार को सिंगापुर बनाने का दावा करने वाले प्रगतिशील लोकतांत्रिक गठबंधन ( पीडीए ) के पप्पू यादव के अलावा लंदन स्कूल आफ इकोनोमिक्स की छात्रा रहीं राजनीति का नया चेहरा पुष्पम प्रिया अपनी नवगठित प्लूरल्स पार्टी के साथ मुख्यमंत्री की स्वयंभू दावेदार भी हैं . तेजस्वी प्रताप यादव , चिराग पासवान व पुष्पम प्रिया राजनीति के नए व युवा चेहरे हैं . ये दावेदार इन चुनावों में कितना आगे जा पाते हैं ये तो चुनाव परिणाम तय करेंगे लेकिन बिहार में भविष्य की राजनीति की बागडोर युवाओं के हाथों में होगी यह जरूर संकेत देते हैं . फिलहाल बिहार में मुख्यमंत्री पद के जितने भी दावेदार हैं उस सूची से यह तो स्पष्ट होता है कि बिहार में एक बार फिर पिछडा वर्ग से ही कोई नेता मुख्यमंत्री का पद सुशोभित करेगा . चुनाव पूर्व सर्वेक्षण यदि सही साबित हुए तो एनडीए गठबंधन फिर से सरकार बनाने जा रहा है . नीतीश ने साफ सुथरी सरकार देकर सुशासन बाबू की पदवी पाई . लालू और राबडी के समय में जो विषम हालात बिहार में पैदा हुए थे उससे उन्होंने बिहार को बाहर निकाला . नीतीश की सबसे बडी खूबी यह है कि वे जोड तोड के उस्ताद हैं . आधुनिक राजनीति का यह सबसे बडा गुण माना जाता है . पहली बार आठ दिन में गिरी सरकार के बाद नीतीश ने बिहार के 31 वें मुख्यमंत्री के रूप में 2005 से 2010 तक भाजपा से गठबंधन कर सफलता पूर्वक कार्यकाल पूरा किया था . 32 वे मुख्यमंत्री के रूप में फिर उन्होंने भाजपा के साथ मिलकर सरकार बनाई थी . इसके बाद पिछले चुनावों में उन्होंने राजद व कांग्रेस के गठबंधन के साथ जुगलबंदी कर मुख्यमंत्री पद संभाला . लेकिन फरवरी में गठबंधन से निकलकर वापस भाजपा के बगलगीर हो गए . न केवल उन्होंने अपनी कुर्सी बचाई बल्कि बिहार की राजनीति की धुरी भी बने रहे .
बिहार के बंटवारे के बाद झारखंड के अलग राज्य के रूप में अस्तित्व में आने के बाद से बिहार में विधानसभा सीटों की संख्या 324 से घटकर 243 पर आ गई है. बिहार का मतदाता परिवर्तन चाहता है या मुख्यमंत्री के रूप में नए चेहरे को देखना चाहता है यह तो मतगणना के बाद पता चलेगा लेकिन इतना तो तय है कि युवा जोश पर अभी भी अनुभवी राजनीतिज्ञ भारी पड रहा है .

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