राकेश कुमार अग्रवाल
जनता दल यूनाइटेड की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष व बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने यह कहकर कि अब मुझे नहीं रहना मुख्यमंत्री , एनडीए गठबंधन जिसे चाहे बना दे सीएम . यह कहकर नीतीश कुमार ने बिहार में एक नई बहस छेड दी है . उन्होंने पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद से भी इस्तीफा दे दिया . ऐसे में बिहार में क्या नेतृत्व का संकट पैदा हो सकता है ? क्या नीतीश कुमार सक्रिय राजनीति से विदा ले रहे हैं ? क्या बिहार से दिग्गज राजनीतिज्ञों की विदाई हो रही है ? क्या नीतीश कुमार अपने लिए शांति सुकून वाली नई भूमिका की तलाश में हैं ? क्या जदयू पार्टी एनडीए से अलग होने जा रही है ? नीतीश कुमार नहीं तो कौन बनेगा बिहार का नया मुख्यमंत्री ? यह मुख्यमंत्री जनता दल यूनाइटेड का होगा या भाजपा का जैसे तमाम सवाल फिजा में तैरने लगे हैं .
70 वर्षीय नीतीश कुमार को सुशासन बाबू के नाम से भी जाना जाता है . संपूर्ण क्रांति के महानायक जयप्रकाश नारायण से प्रेरित होकर राजनीति में आए इलेक्ट्रिकल इंजीनियर नीतीश कुमार 1980 से सक्रिय राजनीति में हैं . छह बार बिहार के मुख्यमंत्री पद को सुशोभित करने वाले नीतीश कुमार पहली बार 1985 में चुनकर बिहार विधानसभा पहुंचने वाले नीतीश हालांकि 1977 में जनता पार्टी के टिकट पर चुनाव लडे थे लेकिन उन्हें चुनाव में हार का सामना करना पडा था . 1989 में वे युवा लोकदल अध्यक्ष बनाए गए . दो साल बाद ही उन्हें 1989 में जनता दल का महासचिव चुन लिया गया . नीतीश कुमार को 1990 में पहली बार केन्द्रीय मंत्रिमंडल में शामिल होने का मौका मिला . उन्हें बतौर कृषि राज्य मंत्री मंत्रिमंडल में शामिल किया . वे रेल मंत्री व भूतल एवं परिवहन मंत्री भी रह चुके हैं . अगस्त 1999 में गैसाल में हुई ट्रेन दुर्घटना की नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए उन्होंने रेल मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था . 24 नवम्बर 2005 को वे पहली बार बिहार के मुख्यमंत्री बने .
हाल ही में सम्पन्न बिहार विधानसभा चुनाव में जनता दल यूनाईटेड का प्रदर्शन काफी निराशाजनक रहा है . पार्टी को महज 43 सीटों से संतोष करना पडा जबकि राष्ट्रीय जनता दल व भाजपा ने उससे कहीं ज्यादा सीटों पर सफलता हासिल की . लेकिन भाजपा ने चुनाव पूर्व गठबंधन के आधार पर नीतीश को मुख्यमंत्री पद के लिए नामित किया . हालांकि नीतीश चाहते तो चुनाव परिणामों को आधार बताकर तब भी सत्ता से किनाराकशी कर भाजपा के किसी नेता को या फिर अपनी ही पार्टी के किसी वरिष्ठ नेता को मुख्यमंत्री पद के लिए नामित कर अपना बडप्पन दिखा सकते थे . लेकिन राजनीति के बारे में कहा जाता है कि नेता मरते दम तक कुर्सी नहीं छोडना चाहता है . देखा जाए तो नीतीश कुमार को सक्रिय राजनीति में 40 साल से अधिक हो गए हैं . ऐसा भी हो सकता है कि नीतीश जोड गुणा भाग की इस राजनीति से उकता गए हों . एवं अब राजनीति से ब्रेक लेना चाहते हों . नीतीश कुमार यदि वाकई बिहार की राजनीति से विदाई लेते हैं तो बिहार की राजनीति का पर्याय रहे नीतीश , लालू और रामविलास पासवान के बिना बिहार को आगे बढना होगा . रामविलास पासवान और लालू प्रसाद यादव के बेटे पहले से ही राजनीति में कूद पडे हैं और बिहार में अपनी राजनीतिक जमीन व जडें दोनों बनाने में लगे हैं . कुर्मी नेता नीतीश कुमार को जातियों की गणित बिठाने में महारत हासिल है . उन्होंने मूल्यों की राजनीति भी करने की कोशिश की है . रेल दुर्घटना के बाद रेल मंत्री पद से इस्तीफा देना हो या फिर आम चुनावों में अपनी पार्टी के खराब प्रदर्शन पर 17 मई 2004 को इसकी नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए उन्होंने इस्तीफा दे दिया था . बिहार में पूर्ण शराबबंदी को लगा करना हो या फिर भ्रष्ट अधिकारियों व कर्मचारियों की संपक्ति जब्त करना नीतीश कुमार के कडे फैसलों में शामिल रहे हैं . राष्ट्रीय जनता दल की 15 साल पुरानी सरकार को 2005 में उखाड फेंकने का श्रेय भी नीतीश कुमार को मिला था . बीमारू राज्यों में सिरमौर बिहार को पटरी पर लाने में नीतीश कुमार के नेतृत्व की अनदेखी नहीं की जा सकती है . ईज ऑफ डूइंग बिजनेस हो , या गरीबी दर को घटाना , सडक निर्माण हो या फिर बिजली आपूर्ति या फिर प्रति व्यक्ति आय बढाना नीतीश तमाम मोरचों पर बेहतर प्रदर्शन करने में कामयाब रहे हैं . नीतीश के अध्यक्ष पद छोडने के पीछे पार्टी के विस्तारीकरण को मुख्य वजह बताया जा रहा है . क्योंकि एक साथ वे दो पदों पर सहजता से काम नहीं कर पा रहे हैं . हालांकि इस संभावना से भी इंकार नहीं किया जा सकता कि हो सकता है कि नीतीश सक्रिय राजनीति से विदा ले लें . यह भी हो सकता है कि मुख्यमंत्री पद त्यागने के बाद वे राजभवन की राजनीति करें . भाजपा को उन्हें किसी भी राज्य में बतौर राज्यपाल पुनर्वासित करने में दिक्कत नहीं हो सकती है . इससे भाजपा को बिहार में अपना मुख्यमंत्री बिठाने का मौका मिल सकता है . और नीतीश से भी संबंधों की मधुरता बनी रह सकती है . सक्रिय राजनीति से नीतीश वाकई विदा लेना चाहते हैं या फिर यह एक पासा है जिसे नीतीश ने अध्यक्ष पद पर अपने विश्वस्त को बिठाने के लिए फेंका है ? नव वर्ष में बिहार और नीतीश कुमार की राजनीति का नया स्वरूप देखने को मिले इस पर अब सभी की निगाहें होंगी .