राकेश कुमार अग्रवाल
बुंदेलखंड का अतीत जितना गौरवशाली रहा है उसका वर्तमान उतना ही बदहाल है . देश में बुंदेलखंड का जिक्र छिडते ही गरीबी , बीमारी , अशिक्षा , भुखमरी , पलायन , डकैतों का इलाका , पीने को पानी नहीं , सिंचाई को पानी नहीं , उद्योग धंधों का अभाव बुंदेलखंड को लेकर बस कुछ ऐसी ही तसवीर लोगों के जेहन में उभर कर आती है .
जबकि हकीकत यह है कि बुंदेलखंड का इतिहास अपने आप में प्रेरक और रोमांचकारी रहा है . चाहे वह किसी भी काल में रहा हो . जिसकी तुलना किसी अन्य क्षेत्र से नहीं की जा सकती है . चाहे साहित्यिक क्षेत्र हो सामाजिक या फिर राजनीतिक या शैक्षणिक , सांस्कृतिक , कलात्मक , प्राकृतिक , पर्यटन , धार्मिक तथा भौगोलिक दृष्टि से भी बुंदेलखंड बड़ा परिपूर्ण रहा है .
साहित्य की दृष्टि से देखा जाए तो बुंदेलखंड लेखकों , कवियों और रचनाकारों की उर्वर भूमि रहा है . बुंदेलखंड ने रचनाकारों को जमकर खाद पानी दिया है . अतीत की बात करें तो महर्षि वाल्मीकि , महर्षि वेद व्यास रहे हों या फिर गोस्वामी तुलसीदास , बिहारी , केशव , ईसुरी , रत्नाकर , रायप्रवीण , पद्माकर , मुंशी अजमेरी सुभद्रा कुमारी चौहान , राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त , सियारामशरण गुप्त , डॉ रामकुमार वर्मा , डॉ रामविलास शर्मा , वृंदावन लाल वर्मा सेठ गोविंददास , घासीराम व्यास कवींद्र नाथूराम माहौर आदि ने साहित्य में अपनी जो पहचान बनाई आज भी सभी को उन पर नाज है . संगीत के क्षेत्र की बात करें तो संगीत सम्राट तानसेन रहे हों या बैजू बावरा या मृदंगाचार्य आदिल खां सभी ने बुंदेलखंड की गरिमा में चार चांद लगाए हैं .
खेलों में विशेषकर कुश्ती में गामा जैसा पहलवान दिया हो या फिर हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद , कैप्टन रूप सिंह , बिलियर्ड्स में अशोक शांडिल्य , महिला हाकी में नेहा सिंह , अब्दुल अजीज , तुषार खांडेकर सभी का वास्ता बुंदेलखंड से रहा है .
कला के क्षेत्र में चित्रकार कालीचरण तथा मूर्तिकार मास्टर रूद्र नारायण बुंदेलखंड की ही देन है आज हम जब अतीत का स्मरण करते हैं तो हम सभी भाव विभोर हो जाते हैं . और हम उत्साह से भर जाते हैं . खजुराहो के मंदिरों का शिल्प देखने के लिए पूरे विश्व के लोग यहां खिचे चले आते हैं . खजुराहो के अलावा देवगढ़ , अजय गढ़ , चंदेरी , ग्वालियर , कालिंजर, महोबा आदि अनेकों स्थान हैं जो पुरातत्व की दृष्टि से उत्कृष्ट कलाकृतियां से सुसज्जित हैं .
धार्मिक दृष्टि से देखा जाए तो हिंदुओं के आराध्य राम व शिव के धाम यहां पर हैं तो मुस्लिम और जैन धर्मावलंबियों के लिए भी यहां पर बहुत कुछ है . वनवास काल में राम ने साढे ग्यारह वर्ष चित्रकूट में बिताए तो राजा के रूप में राम यदि कहीं विराजमान हैं तो वह है ओरछा . शिव का धाम कालिंजर , जटाशंकर और कुंडेश्वर है तो मातृ शक्ति के लिए मैहर और महोबा में मां चंडिका मंदिर है . जैन धर्मावलंबियों के लिए सोनागिरि है .
बुंदेलखंड की खनिज और प्राकृतिक संपदा ही वह थाती है जिस पर सरकारों और जनप्रतिनिधियों की नजर रहती है . क्योंकि यहां पन्ना में हीरा है तो भेड़ाघाट का संगमरमर , ललितपुर का ग्रेनाइट इमारती पत्थर , बांदा में सोना व यूरेनियम , तालबेहट व महोबा का गौरा पत्थर , केन नदी का शजर , चांदी , मैग्नीज , जस्ता , तांबा , लोहा , अभ्रक आदि मूल्यवान खनिजों की बुंदेलखंड के भूगर्भ में प्रचुर मात्रा में मौजूद है .
स्वतंत्रता संग्राम में रानी लक्ष्मीबाई से लेकर बुंदेलखंड के सेनानियों की महती भूमिका से कोई इंकार नहीं कर सकता .
लेकिन अंग्रेजों की बांटो और राज करो की नीति पर न केवल बुंदेलखंड को बांटा गया बल्कि यूपी और एमपी में इसको विभाजित कर दिया गया . सत्ता की राजनीति ने बुंदेलखंड के साथ न्याय करने के बजाए इसे दो राज्यों के बीच में फुटबाल बना दिया . यहां के वाशिंदे बूढे मां बाप को गांवों में छोड महानगरों में पलायन को मजूबर हैं मानव की प्रगति न के बराबर है . तिस पर इसे डाकू ग्रस्त क्षेत्र घोषित करके इसको कलंकित करने का भी प्रयास किया जाता है जबकि अधिकारी , नेताओं और ठेकेदारों की तिकडी बुंदेलखंड में किस कदर डकैती डालती आ रही है यह किसी से छिपा नहीं है . निर्धनता , अशिक्षा बेकारी , राजनीतिक उपेक्षा तथा तिरस्कार यही बुंदेलखंड का हासिल है . आजादी के 7 दशक बाद भी बुंदेलखंड का भूभाग कराह रहा है . भारत के अन्य क्षेत्रों के लोग बुंदेलखंड का नाम सुनते ही इसे गवांरू इलाका समझते हैं . उत्तर प्रदेश तथा मध्य प्रदेश जैसे विशालकाय राज्यों में फंसा बुंदेलखंड का भूभाग इन प्रदेशों की उन्नत क्षेत्रों के समक्ष और अधिक कमजोर होता जा रहा है उन क्षेत्रों के राजनीतिज्ञ राज्य सरकारों पर अपना प्रभाव डालकर विकास का अधिकांश धन अपने-अपने क्षेत्रों में ले जाते हैं . बुंदेलखंड का भूभाग आशा भरी नजरों से अपनी अपनी सरकारों की ओर निहार रहा है . क्योंकि केन्द्र के साथ ही उत्तर प्रदेश व मध्य प्रदेश तीनों जगह भाजपा की सरकार है ऐसे में अभी नहीं तो कभी नहीं वाले हालात हैं . बुंदेलखंड वासियों के साथ भारत के समस्त राजनीतिक चिंतकों को इस विषय पर गंभीरता पूर्वक विचार विमर्श कर उचित निर्णय करना चाहिए जिससे गौरवशाली बुंदेल भूमि के निवासी भारत के विकास की मुख्यधारा से जुड़ सकें . जरूरी है कि बुंदेलखंड वासियों के दर्द को महसूस किया जाए ना कि उन्हें अलगाववाद के नजरिए से देखा जाए .