चुनाव परिणाम तय करेंगे भाजपा की साख

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राकेश कुमार अग्रवाल
चार राज्यों एवं एक केन्द्र शासित प्रदेश के चुनाव पूरे शबाब पर एवं अंतिम दौर में हैं . अब चुनाव प्रचार व मतदान से कहीं ज्यादा सभी की निगाहें मतगणना व चुनाव परिणाम पर केन्द्रित होती जा रही हैं . इन चुनावों को 2024 में होने वाले आम चुनाव की रिहर्सल माना जा रहा है .
चुनाव परिणाम जहां एक ओर पश्चिमी बंगाल में तृणमूल कांग्रेस के राजनीतिक भविष्य का निर्धारण करेंगे . तो तमिलनाडु में बिना अम्मा व कलईनार की मौजूदगी में हो रहे चुनावों में यह भी निर्धारण करेंगे कि जनता किसकी विरासत को राज्य की बागडोर सौंपने जा रही है . कांग्रेस का राजनीतिक भविष्य भी बहुत हद तक इन चुनावों के परिणामों पर निर्भर है . दूसरी तरफ तीसरी बार केन्द्र की सत्ता में काबिज होने का सपना देख रही भाजपा के लिए ये चुनाव उसके चुनावी मैनेजमेंट की सबसे बडी परीक्षा बन गए हैं . भाजपा ने पश्चिमी बंगाल और असम में जिस तरह अपनी पूरी ताकत झोंकी है उसके अपेक्षित परिणाम न आने पर भाजपा के लिए भी करारा झटका लग सकता है . ये चुनाव परिणाम दूरगामी प्रभाव छोडेंगे . यदि भाजपा बंगाल और असम में सत्ता हासिल करती है तो भाजपा की साख इन चुनाव परिणामों से बढ जाएगी . और यदि चुनाव परिणाम आशा के अनुरूप न रहे तो भाजपा की साख को करारा झटका भी लग सकता है . और इसका सीधा असर 2024 के आम चुनावों पर होगा .
गत तीन वर्षों में जिन राज्यों में भी विधानसभा चुनाव हुए हैं उनमें भाजपा का परिणाम अपेक्षा के अनुरूप नहीं रहा है . 2018 में तीन राज्यों में चुनाव हुए थे . इनमें मध्यप्रदेश , राजस्थान और छत्तीसगढ में शामिल हैं . और तीनों जगह सत्तारूढ होने के बावजूद भाजपा को तीनों राज्यों में हार का सामना करना पडा था . 2019 में भी चार राज्यों दिल्ली , झारखंड , महाराष्ट्र और हरियाणा में चुनाव हुए थे . इनमें दिल्ली में भाजपा को बुरी तरह मात खानी पडी थी . झारखंड में भी भाजपा के हाथ से सत्ता निकल गई . महाराष्ट्र में ज्यादा सीटें हासिल करने के बाद भी भाजपा सत्ता से महरूम रही . हरियाणा में जरूर गठबंधन कर भाजपा सत्ता बचाने में सफल रही . बिहार विधानसभा के चुनाव परिणाम भाजपा के लिए जरूर उत्साही रहे . जहां भाजपा ने जदयू से न केवल ज्यादा सीटें जीतीं बल्कि फिर से गठबंधन की सरकार बनाने में सफल बनी रही . अलबत्ता इन चुनावों में राजद के तेजस्वी यादव ने शानदार टक्कर जरूर दी थी .
पश्चिमी बंगाल राज्य इन चुनावों में सबसे हाॅट स्टेट बना हुआ है . मीडिया का भी पूरा फोकस बंगाल चुनावों पर है . भाजपा ने तो जिस तरह से पूरी ताकत बंगाल फतह करने के लिए झोंकी है वह चुनाव मैनेजमेंट का बडा पाठ बनने वाला है जो भविष्य में राजनीति विज्ञान के साथ चुनावों के लिए सभी के लिए नजीर बन सकता है .
बंगाल फतह का मंसूबा पाले भाजपा ने इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए पूरे बंगाल में अपनी पार्टी के एक सैकडा से अधिक राष्ट्रीय नेता व संगठन के पदाधिकारियों को उतार दिया है . प्रधानमंत्री मोदी , गृह मंत्री अमित शाह , भाजपा अध्यक्ष जे पी नड्डा , यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ , एमपी के सीेएम शिवराज सिंह दर्जनों जनसभायें संबोधित कर चुके हैं . चुनावी रैलियों और जनसभाओं को संबोधित करने के लिए पार्टी के पास बडे नेताओं और वक्ताओं की लम्बी कतार है . इसके अलावा अपने जमाने के मशहूर डांसिंग स्टार मिथुन चक्रवर्ती के अलावा मनोज तिवारी , रविकिशन व पूर्व क्रिकेटर गौतम गंभीर भी जनसभायें कर रहे हैं . भाजपा ने बाकायदा रणनीति बनाकर चुनाव लडा है . भाजपा तीन सीटों से छलांग लेकर कहां तक पहुंचेगी यह तो दो मई को होने वाली मतगणना बताएगी लेकिन इतना तो तय है कि भाजपा का बंगाल में ग्राफ बढना तय है . लेकिन सत्ता की दहलीज तक भाजपा बंगाल में पहुंच पाएगी इसमें जरूर संशय है .
असम में भाजपा के समक्ष सत्ता बरकरार रखने की चुनौती है . असम में तरुण गोगोई के निधन के बाद कांग्रेस पार्टी में जो शून्य पैदा हुआ है पार्टी अभी तक उसकी भरपाई नहीं कर पाई है . वहां भी तमाम दल चुनाव मैदान में हैं . यहां पर भाजपा के चांस तो बेहतर हैं . जहां तक केरल का सवाल है भाजपा इस राज्य में अभी अपनी जडें जमाने की कोशिश कर रही है . पार्टी ने मेट्रो मैन के नाम से मशहूर वयोवृद्ध रेलवे इंजीनियर ई . श्रीधरन पर दांव लगाकर चुनावी जमीन पुख्ता करने की रणनीति पर दांव लगाया है . केरल में कांग्रेस और लेफ्ट पार्टी का दबदबा रहा है ऐसे में यहां चुनावी सफलता हासिल करने में भाजपा को अभी वक्त लगेगा .
तमिलनाडु और पुडुचेरी में भाजपा बेहतर स्थिति में नहीं है . ऐसे में भाजपा के लिए पूरा दारोमदार असम और पश्चिमी बंगाल पर टिका है . यदि इन राज्यों में भाजपा फतह हासिल करती है तो 2024 के चुनावों में पार्टी को जोरदार बूस्ट मिलेगा . यदि पार्टी का चुनाव परिणामों में निराशाजनक प्रदर्शन रहा तो न केवल उसके लिए यह एक बडा झटका होगा बल्कि नए सिरे से विपक्षी एकजुटता की रणनीति भी बनने लगेगी .

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