रिपोर्ट – राकेश कुमार अग्रवाल
जब जब भी उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव की बेला नजदीक आती है पृथक बुंदेलखंड राज्य के गठन की मांग का गुब्बारा हवा में छोड दिया जाता है . कुछ महीने इस मुद्दे पर धार देने की कोशिश की जाती है . चुनाव खत्म होते ही बुंदेलखंड राज्य का मुद्दा ठंडे बस्ते में डाल दिया जाता है . एक बार फिर उत्तर प्रदेश चुनावी मुहाने पर है . ऐसे में पूर्व सांसद व भाजपा नेता गंगाचरण राजपूत ने फिर से पृथक बुंदेलखंड राज्य की मांग को हवा दी है . आइए सबसे पहले तो बुंदेलखंड को जाना जाए उसके बारे में जाना जाए .
बुंदेलखंड भारत के मध्य में स्थित होने के कारण भारत का ह्रदय प्रदेश कहलाता है इसकी अपनी ऐतिहासिक पृष्ठभूमि तथा भौगोलिक परिस्थितियां रहीं है। जिसके कारण इस क्षेत्र पर समूचा भारतवर्ष नाज करता है । लगभग 1.60 लाख वर्ग किमी0 क्षेत्र को अपने में समेटे इस क्षेत्र की जनसंख्या आज लगभग तीन करोड़ है। यह क्षेत्र सदियों से अपनी वीरता और शौर्य के लिए जाना गया ।आजादी के पूर्व यह क्षेत्र मुगलों और अंग्रेजों को सदैव हलाकान किए रहा जिसके कारण यहां पर शासन करने का उनका स्वप्न सपना ही बना रहा . वहीं स्वतंत्रता के पश्चात यहां के नागरिकों के परिश्रम , क्षमता, राजनैतिक विद्वेषों और शूर वीरता के कारण देसी शासकों ने भी इसे उपेक्षित ही रखा . इसे उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश जैसे बड़े राज्यों के नियंत्रण में दो टुकड़ों में विभक्त कर दिए जाने से यहां के वासी एकजुट हुए बिना कभी अपने विकास और उन्नति की परिकल्पना भी न कर सकते . आज बुंदेलखंड के लोग राजनेताओं के सियासी दांवपेचों में उलझ कर रह गए । परिणामस्वरूप इस क्षेत्र का विकास अवरुद्ध हो कर रह गया . जबकि भारत के अन्य राज्य निरंतर तरक्की करते रहे।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि –
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बुंदेलखंड का इतिहास सदियों पुराना है त्रेता में भी इसका वर्णन है जब चित्रकूट में निवास के दौरान पुरुषोत्तम राम पर्णकुटी बना कर रहे। वाल्मीकि रामायण में कई स्थलों पर इसका उल्लेख है। पूर्व में क्षेत्र बुंदेलखंड कहलाता था तथा यहां बुंदेलों का शासन रहा । इससे पूर्व यहां अनेक प्रतापी राजा हुए जिनमें चेदि वंश के जयशक्ति और विजयशक्ति महाराज , आदि के नाम शूरवीरों के रूप में आज भी इतिहास में दर्ज है।
आजादी की लड़ाई में इस धरती ने झांसी की रानी लक्ष्मीबाई और इससे पूर्व आल्हा-ऊदल और छत्रसाल जैसे शूरवीर दिए जिन्होंने बुंदेलखंड की अस्मिता के लिए अपने प्राणों की बाजी लगा दी लेकिन अपनी धरती मां का आंचल मैला नहीं होने दिया।
भौगोलिक स्थितियां व परिवेश –
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समस्त बुंदेलखंड भूभाग विंध्यपर्वत की उपत्यकाओं में बसा हुआ है। इसकी समस्त नदियां विंध्याचल से अर्थात दक्षिण से उत्तर की ओर इसी की धरती में यमुना में समाहित हो जाती हैं । इस क्षेत्र की जन सम्पदा का उपयोग स्वतंत्र भारत की सरकारें आज तक नहीं कर पाई। यहां की भूमि ऊंची नीची और क्षेत्र पठारी होने के कारण यहां पर जल के स्रोत केवल भूमिगत स्रोत ही थे हालांकि यहां तमाम नदियां भी दी । उत्तर प्रदेश के झांसी , ललितपुर , जालौन , बांदा , हमीरपुर महोबा तथा चित्रकूट व मध्य प्रदेश में सोलह – जिनमें दतिया , पन्ना , सागर , दमोह , टीकमगढ़ तथा छतरपुर , सतना , चित्रकूट , मैहर तथा नागौद , भिंड जिले के लहार , दबोह , मिहौना व आलमपुर , जबलपुर की कटनी , शिवपुरी की करेरा , पिछोर व खनियाधाना , नरसिंहपुर की गाड़रवारा, गुना की मुंगावली तथा चंदेरी, विदिशा की गंज बासौदा , ग्वालियर की भांडेर , रायसेन की बरेली, आदि तहसीलें समाहित हैं। एवं मुरैना की भौगोलिक परिस्थितियों के कारण इसका बुंदेलखंड में शामिल होना स्वाभाविक है।
बुंदेलखंड की आर्थिक दशा
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भरपूर खनिज संपदा और पश्चिमी प्रवृत्ति होने के बावजूद बुंदेलखंड की आर्थिक दशा मुगल शासन के बाद से पिछडती चली गई । पहले मुगलों ने फिर अंग्रेजों ने इस धरती को और यहां के निवासियों को स्वाधीनता हेतु युद्ध में उलझाए रखा। इसी कारण यहां के नागरिक निरंतर विपन्न होते चले गए। आजादी के बाद से केंद्र व राज्य सरकारों ने इस क्षेत्र की उन्नति और विकास पर ध्यान न देने के फल स्वरुप यहां के वासी गरीब होते चले गए और उनकी परंपरागत आय का साधन कृषि वांछित सुविधाएं न मिलने से निरंतर कम होती चली गई। ग्रामीणों की कृषि सिंचाई एवं शहरी नागरिकों को उद्योग , कारखाने, यातायात के साधनों में शून्यता के कारण आजीविका हेतु दिल्ली , पंजाब , हरियाणा, मुंबई जैसे बड़े शहरों एवं सम्पन्न क्षेत्रों में फुटपाथों पर रहने को मजबूर होना पड़ा।
क्रमश : ………जारी