गतांक से जारी
राकेश कुमार अग्रवाल
बुंदेलखंड का भाषाई व सांस्कृतिक स्वरूप
बुंदेलखंड का साहित्य सरकारी संरक्षण न मिलने के बावजूद समृद्ध रहा है , और इस धरती ने ऐसे साहित्य रत्न पैदा किए जिन्होंने समूचे विश्व में भारत का नाम ऊंचा किया । इनमें महर्षि वाल्मीकि , वेद व्यास , कवि केशव , तुलसीदास , मैथिलीशरण गुप्त , वृंदावन लाल वर्मा , भूषण , बिहारी , मतिराम , घनश्यामदास पांडे , घासीराम व्यास , सेवकेंद्र त्रिपाठी जैसी साहित्यिक विभूतियां उदाहरणार्थ मौजूद हैं । बुंदेली भाषा भी अपने समय में एक परिपूर्ण भाषा थी जिसमें ईसुरी जैसे कवियों ने रचनाएं रचकर भारतीय जनमानस के मन में अपना घर बनाया ।
बुंदेलखंड के लोक नृत्यों व लोक गायन का भी वैभवशाली स्थान है । आज बुंदेली साहित्य एवं भाषा का निरंतर पतन हो रहा है और सरकार इस के उत्थान की ओर से आंखें मूंदे हुए है ।
प्रशासनिक व राजनैतिक बुंदेलखंड –
…………………………………………
आज उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश जैसे बड़े राज्यों में विभक्त होने के कारण बुंदेलखंड का भारतवर्ष में कोई राजनीतिक अस्तित्व नहीं है . इस कारण यहां के जनप्रतिनिधियों की भी कोई सुनवाई सरकार में नहीं है । यदि बुंदेलखंड का एकीकरण कर पृथक राज्य का दर्जा दे दिया जाए तो यह क्षेत्र एक प्रबल राजनीतिक नेतृत्व दे सकता है और अपने विकास के लिए जरूरी संसाधन मुहैया करा सकता है।
बुंदेलखंड की शैक्षणिक स्थिति –
……………………………………
आज बुंदेलखंड में सामान्य एवं उच्च शिक्षा के आधुनिक विद्यालयों की संख्या नाममात्र की है । पूरे झांसी मंडल के लिए एकमात्र बुंदेलखंड विश्वविद्यालय व एक मात्र इंजीनियरिंग कॉलेज है। लगभग यही हाल मध्यप्रदेश के बुंदेलखंड का है शिक्षा के साधनों के अभाव में यहां जागरूकता की कमी और शिक्षित व अशिक्षित बेरोजगारों की भारी फौज है। तकनीकी शिक्षा , औद्योगिक शिक्षा व उद्योगों का अभाव व विश्वविद्यालय स्तर पर विज्ञान अनुसंधान के साधनों की कमी के कारण यहां का युवा भ्रमित हो रहा है फलस्वरुप यहां पर अपराध , दस्यु समस्या आज भी वजूद बनाए हुए है।
सिंचाई व खनिज संपदा –
…………………………..
बुंदेलखंड में जल संसाधनों व खनिज संसाधनों की प्रचुरता के बावजूद इनका सदुपयोग न किए जाने के कारण यहां पर प्राकृतिक संसाधन या तो नष्ट हो रहे हैं या इन की अधिकता के कारण प्राकृतिक आपदाएं आती रहती हैं । बुंदेलखंड में यमुना , नर्मदा , केन , धसान , टोंस , जामनी , सिंध , चंबल जैसी नदियां हैं , किंतु इन पर बांध न होने के कारण अथवा जगह-जगह चेकडैम के अभाव में इनका पानी भरकर अन्य जगह चला जाता है । बरसात में केन , यमुना , बेतवा जैसी नदियों में बाढ़ के कारण भारी तबाही होती है किंतु कृषि में इनकी अथाह जलराशि का उपयोग नहीं हो पाता । इसी प्रकार यहां खनिजों की भी कमी नहीं है । पन्ना में हीरा , झांसी-ललितपुर में ग्रेनाइट व अभ्रक , गौरा पत्थर , सीमेंट का पत्थर आदि से लेकर प्रत्येक खनिज यहां बहुतायात में पाया जाता है , किंतु उनका उचित खनन न होने के कारण यह क्षेत्र विपन्न ही बना हुआ है। उदाहरणार्थ पन्ना में हीरे निकलते हैं लेकिन उनकी फिनिशिंग व कटिंग के संयंत्र सूरत में लगे हैं। इसी प्रकार यहां का ग्रेनाइट बम्बई , कानपुर , दिल्ली जैसे बड़े शहरों में भेजा जाता है जहां उसे तराश कर टाईल्स एवं मार्बल बनाया जाता है तथा निर्यात के द्वारा लाखों-करोड़ों की विदेशी मुद्रा भारत सरकार को मिलती है । जिसके विपरीत बुंदेलखंड क्षेत्र में रायल्टी तक के कोष का व्यय नहीं होता है ।
बुंदेलखंड में यातायात –
…………..………………
बुंदेलखंड में यातायात के साधन न के बराबर है। इसके कई जिलों में रेल मार्ग ही नहीं है । सड़कों का उचित रख-रखाव नहीं है। आवागमन के उपयुक्त पुलों , पुलियों की स्थिति अत्यंत दयनीय है । यातायात की कमी के कारण इस क्षेत्र का व्यापार व उद्योग सर्वाधिक प्रभावित हुआ है। इसी प्रकार पर्यटन के लिए अनेकों प्राकृतिक स्थल अपने गर्भ में संजोए बुंदेलखंड की प्राकृतिक हरीतिमा और सौंदर्य के दर्शन यातायात के अभाव में दुर्लभ है। लगभग 25 वर्षों से घोषित कटनी- उरई , रेल लाइने केवल आश्वासनों के ठंडे बस्ते में पड़ी है। खजुराहो में एयरपोर्ट है तो फ्लाइट कनेक्टिविटी न के बराबर है . चित्रकूट का एयरपोर्ट 15 वर्ष बाद भी चालू नहीं हो सका है . बुंदेलखंड एक्सप्रेस वे व झांसी – खजुराहो फोर लेन निर्माण अभी भी निर्माणाधीन है .
बुंदेलखंड में व्यापार व उद्योग –
…………………….……………
उत्तर प्रदेश व मध्य प्रदेश में विभक्त होने के कारण इस क्षेत्र में व्यापारियों के लिए अधिक अवसर नहीं है। व्यापारिक दृष्टि से सर्वाधिक उपयुक्त झांसी जिला तीन ओर से मध्यप्रदेश से घिरा होने के कारण व्यापारिक दृष्टि से यह टापू की तरह है . यहां पर अनेकों उद्योग बाजार के अभाव में दम तोड़ रहे हैं। उद्योगों व व्यापारियों के लिए अनेकों कठिनाइयों है जिनका निराकरण बुंदेलखंड राज्य बने बिना नहीं हो सकता । अनुदानों के प्रलोभन के कारण सैकडों उद्योग लगे परंतु पर्याप्त शासकीय संरक्षण न मिल पाने के कारण बंद हो गए अथवा बंद होते जा रहे हैं।
क्रमश: ———— जारी