अधिकारियों के गैर जिम्मेदाराना रवैये का वास्तविक सच

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न्यूजडेस्क – पूरे उत्तर प्रदेश में शायद ही कोई ऐसा जनपद हो जहां आवारा पशुओं में किसानों को खून के आंसू रुलाने पर मजबूर न कर रखा हो, मगर कागजो पर गौशाला और अधिकारियों के रवैये ने ऐसा सफेद झूंठ करके लीपापोती का चलन चलाया है जिससे न्याय की उम्मीद तो क्या न्याय शब्द जनता की नजरों से दूर लगने लगा है और सरकार के अधिकारी जमकर सरकार और जनता के बीच दूरी बनाने के लिए एक मजबूत विपक्ष की तरह कार्य कर रहे हैं।
सच वीवीआईपी जिले के कांग्रेसी तमगे का
बात करते हैं उत्तर प्रदेश के वीवीआईपी जिले रायबरेली की, जहां कभी इंदिरा जी जीत कर देश का नेतृत्व करने पहुंची कभी सोनिया गांधी ने देश के कद्दावर नेता के रूप में जिले के प्रतिनिधि के रूप में दिल्ली तक का सफर तय किया मगर बदलाव के सफर की बात करें तो देश का अन्नदाता यानी किसान अपनी दुर्दशा पर आज भी आंसू बहा रहा है, जिले को सिर्फ वीवीआईपी का दर्जा मिला मगर विकास के नाम पर सिर्फ छलावा हुआ, जिले को जनता आज भी उसी तरह त्रस्त है जैसे उसको इसी तरह का जीवन जीने के लिए ही पैदा होना पड़ा है।
हाल – ए – किसान या आम आदमी का दर्द
वीवीआईपी कल्चर की बात हो और किसान और आम आदमी का जिक्र न हो तो शायद थोड़ा बेमानी होगा मगर जिले का अन्नदाता किसान आज इस तरह परेशान है जिसकी परिकल्पना अपने बड़े बड़े बंगले में सोने वाले सीएम डिप्टी सीएम जी , मंत्री जी, विधायक जी, या फिर अफसरशाही के सचिव साहिबान या कलक्टर और उपजिलाधिकारी सरीखे अन्य अधिकारी सपने में नहीं कर सकते हैं, जिले के आम आदमी के दर्द में अनुभव की कहानी ऐसी है कि जिसकी परिकल्पना वातानुकूलित बंगले के अधिकारियों द्वारा नहीं कि जा सकती है।
न्याय की आस में सरकार से गुजारिश
किसानो को सड़कों पर बैठे परेशान देखकर मन मे खयाल आया कि आखिर क्यों न इसकी आवाज उठाई जाए फिर क्या जिले के अधिकारियों से गुजारिश की गई, सीएम साहब द्वारा शिकायतो के निस्तारण के लिए चलाए गए igrs पोर्टल पर बड़े साहबो को सम्बोधित शिकायत करते हुए हमने भी आवारा जानवरो से निजात पाने के लिए एक शिकायत दर्ज करा डाली, निस्तारण की नियत तिथि तक रोज आख्या देखने के लिए पोर्टल चेक करते करते सारे अरमान उस समय धराशायी रह गए जब उस पर पशुधन विभाग के अधिकारियों ने रिपोर्ट दी कि आप ग्राम सभा मे गैशाला बनवाने का प्रस्ताव ग्राम सभा मे जाकर करें या खुद गौशाला बनवाने के किये आवेदन कर दें, सरकार के ऐसे गैर जिम्मेदाराना जवाब से फिर से सरकार से भरोसा उठ गया।
अब डीएम साहिबा ने किया है निर्देशित
पूरे मामलों को लगभग एक सप्ताह बीतने को है, सीएम साहब की हेल्पलाइन से फोन आया कि निस्तारण से आप कितना सन्तुष्ट हैं, तो हमने बताया कि निस्तारण तो पूर्णतयः झूंठे और काल्पनिक हैं, अचानक बिजली के रोस्टर से समझ आया कि आज रात को तो पानी लगाने भी खेत जाना है, पहुंच गए आठ बजे लगभग तो अगल बगल के खेतों में महिलाएं खेत को आवारा पशुओ से रखवाली के कियव बैठी हैं और अपने खेतों में तो सिर्फ जानवरो द्वारा चरे गए गेंहू के ठूंठ खड़े हैं, मन मसोस कर डीएम साहिब सहित अन्य माननीयों को टैग करके फिर ट्विटर पर गुहार लगाई तो डीएम साहिबा ने कार्यवाही के निर्देश जारी किए हैं अब न्याय की उम्मीद फिर से लम्बित ही है।
आखिर किस लिए हैं जिम्मेदार
बात अगर igrs पर शिकायत निस्तारण की जाए तो दर्जनों शिकायतो के बाद किसी भी शिकायत का निस्तारण सच व पारदर्शी तरीके से नहीं हुआ, दूरभाष संख्या 8808859449 और 8400007376 से स्वयं द्वारा की गई जनसुनवाई शिकायतो पर हमेशा ही झूंठी आख्या पढ़ने को मिली, एक शिकायत में ऐसा गजब निस्तारण हुआ कि पूँछिये ही न, सरकार के जिम्मेदार क्या ऑफिस में बैठकर झूंठी अखया लगाने के लिए ही बैठे हुए हैं।
सड़क नक्श से गायब है जनाब 
डलमऊ तहसील क्षेत्र स्थित थुलरई गांव में ही उपरोक्त नम्बरो से ही igrs पर सूर्यकांत के दरवाजे से आदित्य गुप्ता के घर के पास तक सड़क के गढ्ढे भरवाने की शिकायत की तो सड़क से सम्बंधित कई विभागों ने फोन कर पूंछा और आख्या दे दी कि ये सड़क का कहीं उल्लेख ही नहीं पहली बार निर्माण के दौरान इसको गलती से एक किलोमीटर तक किसी ने बना दिया था।
बात सिंचाई विभाग की करें तो ग्राम सभा थुलरई में ही जब नहर की पटरी बनवाने , सिल्ट सफाई की एक दर्जन से अधिक शिकायते की गई तो एक ही आख्या देखते देखते यह स्पष्ट कर दिया गया कि इस शिकायत का वास्तविक निस्तारण सम्भव नही अतः यह निस्तारित कर दी जाए, ऐसे ही दर्जनों किस्से खुद के हैं जिनको अगर संज्ञान में किया जाए तो दर्जनों अधिकारी निलंबित हो और किसानों के चेहरे पर मुस्कान दिखे मगर अभी भी सिर्फ उम्मीद पर ही दुनिया कायम है वाली कहावत चरितार्थ होती दिख रही है।
सिस्टम इतना लाचार क्यों
बात रायबरेली जिले के igrs निस्तारण की करी जाए तो पता चलेगा कि कभी निस्तारण में पहले स्थान तक पहुंच चुका जिला आज नीचे से किस स्थान में है इसका पता तो सूची देखने के बाद मिलेगा, तो बड़ा सवाल यह है झूठे निस्तारण करके डीएम की साख पर बट्टा लगाने वाले एसीएम, एसडीओ, सीवीओ, पशु चिकित्सा अधिकारी या फिर सिंचाई विभव के जिम्मेदार, क्यो सिस्टम को इतना लाचार दिखा रहे हैं, क्या आम आदमी का जन्म इसीलिए हुआ है कि वह शिकायत के साथ पैदा हो और उसी चिंताओं में फंसकर मृत्यु को प्राप्त हो जाए, ऐसे लाचार सिस्टम को देखकर तो शर्म भी शरमा रही होगी मगर लाखों रूपये के वेतन भोगी इस तरफ ध्यान देने के लिए आजीवन मुहूर्त ही खोजते फिरेंगे।
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