देशी बीज संरक्षण, संवर्धन व तकनीक के संबंध में आरआरए नेटवर्क द्वारा एनजीओ के साथ की गई बैठक

31

महोबा , अरुणोदय संस्थान कार्यालय में आरआरए नेटवर्क द्वारा जनपद के संस्था प्रमुखों व प्रगतिशील किसानों के साथ बैठक का आयोजन किया गया। सर्वप्रथम आरआरए से आये राजीव गुप्ता द्वारा सभी उपस्थित संस्था प्रमुखों व प्रगतिशील किसानों के साथ परिचय किया गया। इसके उपरांत क्षेत्र की मौजूदा स्थिति के बारे में बातचीत की गई तदुपरान्त उन्होंने आरआरए के उद्देश्यों के संबंध में विस्तार से बताया। उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा कि हम किसानों व संस्था प्रमुखों के साथ मिलकर पुराने देशी बीजों के संरक्षण व संवर्धन तथा नई तकनीकी के द्वारा किस प्रकार से बीज तैयार कर सकें इसके संबंध में हमारी संस्था काम करती है।

हमारा यही उद्देश्य है कि आपके जनपद में भी संस्था प्रमुखों के साथ मिलकर क्षेत्र में पुराने बीजों का संवर्धन हो सके और हम लोग आपस में मिलकर बीज तैयार करने की तकनीक भी सीखें जिससे हमें कृषि कार्य करने में कोई दिक्कत न हो और हम आत्मनिर्भर बने। ग्रामोंति संस्थान से रुद्र प्रताप मिश्र ने भी अपने अनुभव साझा किये उन्होंने बताया कि पहले हमारे किसान कठिया गेहूं, अलसी, चना तीनों को मिलाकर बोते थे और उससे अच्छा उत्पादन भी प्राप्त करते थे जिससे स्वास्थ्य भी अच्छा रहता था क्योंकि इसमें किसी प्रकार के कीटनाशक का प्रयोग नहीं होता था आज भी क्षेत्र के कई किसान मिश्रित फसल कर रहे हैं और कई लोगों के पास कठिया गेहूं का बीज भी उपलब्ध है।

आधारशिला संस्था से अमित तिवारी ने भी अपने अनुभव साझा करते हुए बताया कि आज भी हमारे क्षेत्र का किसान मेहनत कर रहा है और उनके पास जो भी पुराने बीज हैं उनकी वह खेती कर रहा है लेकिन वह अपनी तकनीकी से कर रहा है यदि आपके द्वारा जो तकनीक बताई जा रही है कि बीजों को किस प्रकार से तैयार करना है तो निश्चित रूप से क्षेत्र के किसान लाभ प्राप्त कर सकेंगे। पथिक फाउंडेशन से देवेंद्र अरज़रिया द्वारा बताया गया कि खरीफ फसल व रवि फसल के साथ-साथ हमारे क्षेत्र के किसान सब्जी की खेती भी करते हैं उसमें भी कई किसान आज भी देशी बीजों का इस्तेमाल कर उत्पादन कर रहे हैं लेकिन यदि उन्हें इस प्रकार से प्रशिक्षण दिया जाए कि वह किस प्रकार से अपने द्वारा और अधिक बीजों का उत्पादन कर सके और बीज तैयार कर सकें।

क्षेत्र के प्रगतिशील किसान रमेश दादा जो स्वयं थुरट गांव में प्राकतिक केंद्र चला रहे हैं और क्षेत्र के किसानों को अपने स्तर से प्रशिक्षित भी कर रहे हैं इन्होंने अपने अनुभव साझा करते हुए बताया कि वह स्वयं देसी खाद तैयार कर रहें। लगभग पांच एकड़ में प्राकृतिक खेती भी कर रहे। किसी प्रकार से डीएपी यूरिया का प्रयोग कठिया गेहूं की फसल में प्रयोग नहीं किया गया है इसके साथ ही प्राकृतिक केंद्र में अरुणोदय संस्थान के सहयोग से देशी प्राकृतिक खाद जिसमें अमृत पानी, घन जीवामृत, नीमास्त्र आदि को तैयार कर किसानों को उपलब्ध कराया जा रहा है। जिसके अच्छे परिणाम सामने आ रहे हैं इसके साथ ही उन्होंने बताया कि मेरे पास कई प्रजातियों के देसी बीज उपलब्ध हैं।

अंत में अरुणोदय संस्थान के संस्था प्रमुख अभिषेक मिश्रा द्वारा भी अपने अनुभव साझा करते हुए बताया कि पहले हमारे क्षेत्र के किसान खेतों में जाकर फसल  देखकर के उत्तम बीजों का चयन कर लेते थे खेत में देखकर ही उन्हें अंदाजा लग जाता था कि कौन सा पौधा पुष्ट है और उन पौधों को वह खेत से निकालकर उत्तम बीज तैयार कर लेते थे किसानों का मानना था की जो बीज पुष्ट होगा उसी से अधिक उत्पादन हो सकता है और वह ऐसे पौधों का चयन कर बीज तैयार करते थे आज भी क्षेत्र में कई किसान ऐसा कर रहे इसके साथ ही उन्होंने आर आर ए नेटवर्क से आए राजीव गुप्ता सहित जिले के संस्था प्रमुखों व क्षेत्र के किसानों का आभार प्रकट किया और कहा कि हम लोग मिलकर इस पर काम करेंगे। बैठक में देवेंद्र चौरसिया, रमेश यादव , मलखान , ज्योति आदि लोग उपस्थित रहे।

रिपोर्ट- राकेश कुमार अग्रवाल

Click