राघव चेतन राय चुप रहकर काम करने वालों में थे – पद्मश्री शीला झुनझुनवाला
राघव चेतन की कहानियों में कविता का अनुशासन मिलता है – ममता कालिया
दिल्ली के इंडिया इंटरनेशनल सेंटर के सेमिनार हाल में “राघवचेतन राय रचना समग्र” पुस्तक का लोकार्पण और इस पर परिचर्चा हुई। इसके लिए दो सत्र में परिचर्चा रखी गई। प्रथम सत्र में कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे वरिष्ठ कवि अशोक वाजपेयी, मुख्य अतिथि लोकप्रिय रचनाकार ममता कालिया, वक्ताओं में वरिष्ठ पत्रकार अरविंद कुमार सिंह, आजकल पत्रिका के संपादक राकेशरेणु, वरिष्ठ कवि नरेंद्र पुण्डरीक, आयकर आयुक्त रश्मिता झा थे।
राघवचेतन राय रचना समग्र के लोकार्पण और परिचर्चा के पहले सत्र के अध्यक्ष कवि -आलोचक साहित्यकार अशोक वाजपेयी ने अध्यक्षीय संबोधन में कहा कि कविता के कुछ काम होते हैं एक काम है याद रखना और याद दिलाना। हमारा वक्त ऐसा है जहां याद पर बड़ा हमला है। आप भूल जाएं आप सिर्फ वही याद रखें जो आस-पास हो रहा है। कविता का एक काम तो यह है कि आपको भूलने से रोकना है। कविता का दूसरा काम है कि अनदेखे को धकेल कर देखने के अहाते में ले आना।
कविता का तीसरा काम है कि वह भाषा को वहां ले जाती है जहां वह पहले ना गई हो। और शब्दों की चमक उसमें तब पैदा होती है जहां भाषा पहले ना गई हो। कविता बचाती है, याद को बचाती है, शब्दों को बचाती है, भाषा को बचाती है, छवियों को बचाती है। कविता क्या करती है कि कविताओं से आप अधिक सुनने लगते हैं ,अधिक महसूस करने लगते हैं और राघव चेतन राय की कविताओं में यही विशेषताएं हमें दिखाई और सुनाई पड़ती हैं।
राघवचेतन की सूक्ष्म दृष्टि यह बताती है कि राघवचेतन वैश्विक दृष्टि के कवि हैं।इनकी कविताओं में आये शब्द पाठक को चमत्कृत करते हैं।यह कवि कविता की बारीकियों को समझकर कविताएँ लिखता है।
इस अवसर पर मुख्य अतिथि ममता कालिया ने कहा कि राघवचेतन मूल रूप से कवि थे और उन्होंने जो कहानियां लिखीं हैं उनमें कविता का अनुशासन और माधुर्य मिलता है।राघव चेतन राय की कहानियां 60 और 70 के दशक के आसपास की हैं। जब लोग फिल्मों से प्रेम करना सीखते थे। उसके बाद राजभाषा हिंदी ,भोजपुरी और इंग्लिश को एक साथ मिलाकर उनके क्षेत्र के लोग बोलचाल में कैसे प्रयोग करते थे।
इनकी कहानियों में विचित्र पात्रों की भरमार है। सच तो यह है कहानी सुचित्र लोगों से बनती भी नहीं ।वह बिचित्र लोगों से ही बनती है और तभी कहानी में जान होती है। राघव चेतन राय की कहानियां और उनके पात्र बहुत विशिष्ट हैं और विचित्र भी । उनकी कहानियां कहीं-कहीं अंग्रेजी की कहानियों की याद दिलाती है और बहुत मजबूत शैली में लिखी गई हैं
वरिष्ठ कवि नरेंद्र पुण्डरीक ने उनकी कविताओं में लोक-जीवन पर बात करते हुए केदारनाथ अग्रवाल को याद किया।राघवचेतन राय पूर्ण रूप से पूर्णकालिक मौलिक रचनाकार थे। किसी खास सांचे से उनके निर्मित नहीं थी ।वह मिथकों पर लिखते हुए भी प्रगतिशील और समकालीन थे। वह अपने समय और जीवन को शब्दों में जीने वाले बहुत ही गंभीर रचनाकार थे।
रचना का जो रचता है वह उसका प्रति संसार होता है ।उसका वह पूर्ण उसे नियंता होता है। उसमें उसका राग अनुराग खुशी और नाराजगी होती है और यथास्थिति प्रतिरोध की झलक भी होती है जिसमें उसका रास्ता दिप दिप करता है। उनकी कविताएं इसकी गवाह हैं।वरिष्ठ पत्रकार अरविंद कुमार सिंह ने राघवचेतन राय के संपादकीय व्यक्तित्व पर प्रकाश डाला।
आजकल पत्रिका के प्रधान संपादक और कवि राकेशरेणु ने राघवचेतन राय के द्वारा अनुवादित कविताओं के परिप्रेक्ष्य में अपनी बात रखते हुए विदेशी कवियों की कविताओं के महत्त्व को रेखांकित किया।उनका मानना था कि अच्छे अनुवाद से कविता की जीवंतता बनी रहती है।इस पुस्तक में लगभग 14 कविताओं विदेशी कवियों के अनुवाद हैं संकलित किए गए हैं। आपको उनके समय का जो वैश्विक परिदृश्य है उसकी एक संतुलित वानगी मिल जाती।
आयकर आयुक्त रश्मिता झा ने राघवचेतन राय की स्वरचित हिंदी से अंग्रेजी में किए गए अनुवाद पर अपनी बात रखी और उन दिनों को याद किया जब वे आर.के.सिंह के सहयोगी के रूप में असिस्टेंट आयकर कमिश्नर के पद पर काम किया था।राघवचेतन राय जिन्हें मैं आर.के.सिंह के रूप में जानती हूं वे प्रकृति प्रेमी थे और साहित्य में कविता के साथ अन्य विधाओं से जुड़े हुए थे ।
राघवचेतन राय रचना समग्र के संपादक कवि श्रीधर मिश्र ने इस रचना समग्र के पुस्तकाकार होने की रचना यात्रा पर प्रकाश डाला।पुस्तक की संकलनकर्ता और कार्यक्रम की संयोजिका कुसुमलता सिंह ने पुस्तक में अपनी बात रखते हुए “पीछे मुड़कर देखते हुए” शीर्षक में कहा है कि विवाह के समय मैं केवल हाईस्कूल पास थी। यह राघवचेतन राय ही थे जिन्होंने मुझमें साहित्य की नीव डाली। इस सत्र का संचालन नीरज कुमार मिश्र ने किया।
दूसरे सत्र में कार्यक्रम की अध्यक्षता पद्मश्री शीला झुनझुनवाला ने करते हुए कहा कि राघवचेतन राय चुप रह कर काम करने वालों में थे। मुख्य अतिथि क्षमा शर्मा ने कहा कि राघवचेतन राय की बाल कविताओं को बाल साहित्य में महत्वपूर्ण योगदान बताया।
वरिष्ठ कवि हेमंत कुकरेती ने राघवचेतन राय की कविताओं पर बोलते हुए कहा कि इनकी कविताओं में हमारा समय ध्वनित होता है।इनकी कविताओं को पढ़ते हुए कहा जा सकता है कि इनकी कविताओं का फलक बहुत विस्तृत है।राघवचेतन बिना शोर शराबे के अपने कविकर्म के9 आगे बढ़ाते हैं।सच्चा कवि वही है जिसकी कविताओं में कवि कम उसकी कविता ज्यादा बोले।
वरिष्ठ आलोचक प्रो.अनिल राय ने राघवचेतन राय के लेख “कबीर का सच” पर बोलते हुए कहा कि इनकी रचनाओं में हमें कबीर का प्रभाव दिखाई देता है।कबीर की सामाजिक चिंता राघवचेतन राय की अपनी चिंता भी है।यही वजह है कि यह लेखक खुद को कबीर के ज्यादा नज़दीक पता है।
राघवचेतन राय कबीर की तरह सभी को जागृत करने का आह्वान करते हैं।
सामाजिक विसंगतियों पर जिस तरह कबीर चिंतित थे,राघवचेतन की भी वही चिंता थी। ककसाड़ पत्रिका के संपादक डॉ.राजाराम त्रिपाठी ने राघवचेतन राय की रचनाओं को समग्रता से देखते हुए उनके अनछुए पहलुओं पर प्रकाश डाला।
दूसरे सत्र का संचालन डॉ.अमित सिंह ने किया और धन्यवाद ज्ञापन साधना अग्रवाल ने दिया। आयोजन के अंत में कवि प्रवीण कुमार और शालिनी जैन ने कवि राघवचेतन राय की एक एक कविताओं का पाठ किया।
यह आयोजन लेखिका और संपादक कुसुमलता सिंह ने किया। उन्होंने अपने स्वर्गीय पति राघवचेतन राय की रचनाओं का संचयन किया। राघवचेतन राय का मूल नाम राघवेन्द्र कुमार सिंह था और वे 1968 बैच के भारतीय राजस्व सेवा के अधिकारी थे।
उनके तीन कविता संग्रह ” वह गिरी बेचने वाला लड़का”,”बहनें अब घर में नहीं हैं”,”वंचितों का निर्वाचन क्षेत्र” प्रकाशित हुए हैं। राघवचेतन राय रचना समग्र के संपादक युवा कवि और जनधर्मी आलोचक श्रीधर मिश्र हैं। पुस्तक का प्रकाशन लिटिल बर्ड प्रकाशन दिल्ली से हुआ है।
रिपोर्ट- राकेश कुमार अग्रवाल