चित्रकूट । कोविड-19 के दृष्टिगत शिक्षण एवं अध्ययन पद्धतियों में नीतिगत बदलाव एवं विकल्प विषय पर एक कार्यशाला का आयोजन महात्मा गांधी चित्रकूट ग्रामोदय विश्वविद्यालय चित्रकूट के अभियांत्रिकी एवं प्रौद्योगिकी संकाय के तत्वावधान में किया गया। विषय प्रवेश करते हुए कार्यशाला के आयोजन सचिव इं राजेश सिन्हा ने बताया कि विश्वव्यापी महामारी कोरोना ने शिक्षण व अध्ययन पद्धतियों में काफी बदलाव लाया है तथा ऑनलाइन प्लेटफॉर्म था उपयोग काफी बढ़ा है ,अध्ययन व अध्यापन के कई सारे विकल्प मिले हैं तथा इनमें से शिक्षकों एवं छात्रों के लिए क्या उपयुक्त विकल्प हो सकते हैं जिसमें समस्याएं कम से कम हो , सुरक्षा से जुड़े हुए पहलू तथा नैतिकता से जुड़े हुए पहलुओं पर भी इस कार्यशाला में विचार किया जाना है।इस कार्यशाला की अध्यक्षता कर रहे ग्रामोदय विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो नरेश चंद्र गौतम ने अपने उद्बोधन में कहा हमारी पद्धतियां ऋषि मुनियों के काल से ही समय के हिसाब से बदलती रही है। अभी कुछ समय पहले तक चौक बोर्ड से पढ़ाई होती थी , धीरे-धीरे व्हाइट बोर्ड व मारकर की बात आ गई । तकनीक के समावेश से पी पी टी के उपयोग से अध्यापन कार्य प्रारंभ हुआ । छात्रों के हाथ में आज मोबाइल है जिससे वह इंटरनेट के उपयोग से बहुत सारे विषयों का अध्ययन एक साथ कर सकते हैं तथा कई सारी जानकारियां आसानी से प्राप्त कर सकते हैं। कोरोना ने अध्ययन व अध्यापन का तरीका बदला है और यह भी देखने में आया है कि जो छात्र पढ़ना नहीं चाहते थे वह भी पढ़ने लगे। यह व्यवस्था आगे भी चलती रहेगी । प्रो गौतम ने बताया कि हमारे विश्वविद्यालय में 2015 से ही वर्चुअल कक्षाएं चल रही है और बीएसडब्ल्यू का पूर्ण पाठ्यक्रम इसी आधार पर चलाया जा रहा है । व्हाट्सएप ग्रुप के माध्यम से भी कक्षाएं चल रही हैं। हमें इन सब चीजों का मानकीकरण करना पड़ेगा तथा इस कार्यशाला से मेरी उम्मीद यही है कि सभी विषयों पर विस्तार से चर्चा हो तथा गहन चिंतन व मंथन के बाद व्यावहारिक रूप से उपयुक्त पद्धति कौन सी हो, ये इस कार्यशाला से निकल कर आये। विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति ज्ञानेंद्र सिंह ने अपने उद्बोधन में कहा कि दूरवर्ती कक्षाओं में इस तरह की तकनीक का प्रयोग काफी पहले से चला आ रहा है और अभी कोरोना के कारण सभी विश्वविद्यालयों ने अपने नियमित कक्षाओं में भी इसे अपनाया है। इस बिंदु पर भी विचार करना होगा कि यदि 6 -7 घंटे के लिए नियमित कक्षाएं ऐसे प्लेटफार्म पर आयोजित होती है तो उससे छात्रों को जो समस्याएं आएंगी उन पर भी विचार किया जाए। तकनीक काफी अच्छी होनी चाहिए तथा विषय वस्तु की गुणवत्ता भी , तभी इस तरह की कक्षाओं का लाभ मिल सकता है। रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय जबलपुर के कुलपति प्रो कपिल देव मिश्र ने अपने उद्बोधन में कहा कि तकनीक व कौशल में समय के साथ बदलाव आते रहते हैं।परीक्षा ,परिणाम ,अध्यापन ,व प्लेसमेंट सभी के लिए ऑनलाइन पद्धतियों का प्रयोग हो रहा है और यह काफी अच्छा है लेकिन इसी पर निर्भरता नहीं रह सकती।हमें इस बिंदु पर भी विचार करना पड़ेगा कि मानवीय संबंधों को बेहतर बनाने में भी इसका उपयोग हो सके तथा छात्रों के लिए जिस पद्धति का उनके शरीर, मन, बुद्धि, आत्मा सभी में सकारात्मक परिवर्तन आ सके ऐसी पद्धति का ही इस्तेमाल किया जाना चाहिए और इन बिंदुओं पर गहन चिंतन व मंथन होना चाहिए ।अभियांत्रिकी एवं प्रौद्योगिकी संकाय के वरिष्ठ शिक्षक इं के पी मिश्रा ने कहा कि वर्चुअल प्लेटफॉर्म अभी हमारी मजबूरी है लेकिन परंपरागत पढ़ाई का स्थान यह नहीं ले सकता क्योंकि इसमें हृदय से हृदय का संगम नहीं हो पाता । बहुत सारे छात्र बिजली और इंटरनेट की समस्याओं के कारण ऐसी कक्षाओं से जुड़ नहीं पाते, उनके लिए भी सोचना पड़ेगा। अधिष्ठाता डॉ आंजनेय पांडे ने कहा कि शिक्षा गर्भ काल से ही प्रारंभ हो जाता है ।औपचारिक शिक्षा के मॉडल में प्रत्यक्ष शिक्षा की बात होती है लेकिन शिक्षक अपना ज्ञान अप्रत्यक्ष विधि से भी छात्रों तक पहुंचा सकता है ,ऐसा इस कोरोना काल में देखा गया है ।औद्योगिक क्रांति के पूर्व तकनीक छोटे छोटे स्तर पर उपलब्ध थी जिसका प्रयोग सभी लोग कर सकते थे लेकिन औद्योगिक क्रांति के बाद जटिल यंत्र आए और यंत्रों के हिसाब से कुशलता की बात होने लगी। अभी हाल तक कंप्यूटर का प्रयोग कुछ वर्गों तक ही सीमित था लेकिन अब इसका प्रयोग बढ़ता चला जा रहा है । इसी प्रकार ई लर्निंग एवं टीचिंग के प्रयोग में शुरुआती तौर पर कुछ दिक्कतें आई है लेकिन इसके काफी सकारात्मक पक्ष भी है ।ऑनलाइन जोड़ने से देश काल का भेद समाप्त हो जाता है और छात्रों को कुछ सुविधाएं भी मिली है ।शिक्षकों को भी घर से कार्य करने की छूट मिलने से अध्यापन की गुणवत्ता भी बढ़ी है। प्रथम तकनीकी सत्र में बोलते हुए प्रबंधन संकाय के अधिष्ठाता बक्सर अमरजीत सिंह ने ई लर्निंग के कई पहलुओं पर विस्तार से चर्चा की तथा इस बात पर बल दिया कि इस तरह के शिक्षण कार्यक्रमों के लिए भी कुछ नीतिगत निर्णय लिए जाने की जरूरत है,ठीक उसी प्रकार जिस प्रकार महाभारत युद्ध के समय में युद्ध प्रारंभ करने के पूर्व युद्ध के कुछ नियम बनाए गए थे । अपने अनुभव को बताते हुए प्रो सिंह ने कहा कि बीएसडब्ल्यू पाठ्यक्रम में 2015 से इस तकनीक का प्रयोग किया जा रहा है लेकिन किसी भी कक्षा में लगभग साढे 300 केंद्रों में से 113 केंद्रों से ज्यादा की उपस्थिति किसी एक दिन में संभव नहीं हो पाई तथा नैतिक पहलुओं से संबंधित भी कई प्रकार की दिक्कतें आईं है। हार्डवेयर एवं सॉफ्टवेयर किसी भी पहलू को नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिए तथा प्रत्येक छात्र की समस्या का किस प्रकार समाधान हो सके इस पर भी विशेष ध्यान देने की जरूरत है। इलाहाबाद से जुड़े डॉक्टर जेएस भदोरिया मैं ऑनलाइन कक्षाओं के सामाजिक पक्षों को सामने रखा इसके कारण कुछ छात्रों में अकेलेपन की समस्या आ रही है कथा मूल्यांकन के समय में उचित कम अंक मिलने पर छात्रों को छात्रों में तनाव उत्पन्न हो रहा है ऑफिस के कुछ सकर्मक पोहा भी पड़े हैं हालांकि इसके कुछ सकारात्मक प्रभाव भी पड़े हैं छात्रों में सुनने की क्षमता का विकास हो रहा है तकनीकी सत्रों में देश के विभिन्न जगहों से जुड़े कई विद्वानों का व्याख्यान हुआ जिसमें अमरकंटक के डॉ अमित सोनी, न्यूज़ीलैंड की इं स्वेता अग्रवाल, बस्तर विश्वविद्यालय के डॉ शरद नेमा, रक्षा मंत्रालय के इं दयानंद शर्मा ,सांची यूनिवर्सिटी के कृपाल सिंह वर्मा, एमिटी विश्वविद्यालय के डॉ पारस पोरवाल जगदलपुर के डॉ शिव रंजन सरकार ,भारत हेवी इलेक्ट्रिकल्स लिमिटेड की शिखा सक्सेना तथा ग्रामोदय विश्वविद्यालय के प्रो भरत मिश्रा प्रमुख रहे। कार्यशाला के आयोजन सचिव इं राजेश सिन्हा तथा सह सचिव डॉक्टर गोविंद सिंह रहे ।अभियांत्रिकी एवं प्रौद्योगिकी संकाय के इं विवेक सिंह तथा इं नीरज कुमार ने संपूर्ण कार्यशाला था तकनीकी प्रबंधन किया।
वर्चुअल कक्षा के साथ सामंजस्य बनाने की ज़रूरत – प्रो नरेश चंद्र गौतम
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